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Saturday, August 19, 2017

श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे


श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे

मोर परिचय

नाँदगाँव के तीर मा,खैरझिटी  हे गाँव।
नाँव मोर जीतेंद्र हे,लोधी लइका आँव।

अगम बहल दाई ददा,बंदौं निसदिन पाँव।
भाई  हेबे  चार झन, बड़का  मैंहर  आँव।

मोर संगिनी वंदना,भरे भरे हे कक्ष।
पुष्पित  बेटा हे बड़े,छोटे  हेबे दक्ष।

मोरो घर परिवार  के,हरे किसानी नेंव।
काम करे बर कोरबा,आके मैं बस गेंव।

नान्हे  कद के आदमी,  हवे   रंग   हा   गौर।
लिखथौं मनके बात ला,माथ नहीं कुछु मौर।

छा नइ जानौं छंद के,सीखे  के  हे  आस।
निगम सरन आये हवौं,बइठे हौं बन दास।

                जिनगी

होके   मनखे   जात   तैं,जिनगी  दिये उझार।
फोकट के अँटियात हस,धरम करम ला बार।

जिनगी  जेखर  देन ए,उही  जही जी लेज।
दूसर बर काँटा बिछा,अपन बना झन सेज।

मानवता  के  रंग  ला,झन  देबे  धोवान।
जिनगी हरे तिहार जी,मया रंग मा सान।

जिनगी अपन सँवार ले,करले बढ़िया काम।
कारज  बिन  काखर बता,बगरे हावय नाम।

संगत  गाँजा  मंद के,जिनगी दीही बोर।
संगत संत समाज के,भाग जगाही तोर।

बोली  हा  बाँटत  हवे, एला ओला घाव।
जिनगी पानी फोटका,तभो बढ़े हे भाव।

           मनखे

काया  माया  मा फँसे, हाँस  हाँस इतराय।
लउठी थेभा जब बने,मनखे तब पछताय।

मनखे बिसरागेस तैं,अपन चाल अउ ढाल।
आज लगत हे बड़ बने,काली बनही काल।

बनके मनखे टेटका,बदलत रहिथे रंग।
दया  मया  ला  छोड़ के,रेंगे माया संग।

मनखे माया जोड़ के,अब्बड़ करे गुमान।
चाल ढाल ला देख के,पछताये भगवान।

रुपिया खातिर रूप ला,बदले मनखे रोज।
कौड़ी कौड़ी जोड़ के,खुश हे माया खोज।

भीतर मइल भराय हे,बाहिर छीचे इत्र।
देखावा  के  रंग  मा,मनखे रँगे विचित्र।

कोन  रंग मनखे धरे,रोजे वो अँटियाय।
दया  मया के रंग मा,कभू रंग नइ पाय।

रंगबाज  मनखे  मिले, मिलथे  ढोंगी  चोर।
बढ़िया मनखे हे कहाँ,खोजय मन हा मोर।

मनखे माया मा मरे,स्वारथ मा चपकाय।
पापी के संगत करे,बिरथा जनम गँवाय।

तोरे  खोदे  खोंचका,जाबे  तिहीं झपाय।
सबला संगी मान ले,बैरी कौने आय।

मनखे देखव नाम बर,पर के खींचे पाँव।
गिनहा रद्दा  मा भला,कइसे  होही नाँव।

जिनगी भर सिर लाद के,लोभ मोह ला ढोय।
माया छिन भर के मजा,मनखे  रहि रहि रोय।

हालत  देख  समाज  के,तोर  मोर हे छाय।
मनखे एक समाज ए,कोन भला समझाय।

         गौरैय्या

चींव चींव कहि गात हे,गौरैय्या हा गीत।
दल  के  दल  आये हवे, दाना देबे छीत।

कनकी  चाँउर खात हे,गौरैय्या  धर  चोंच।
अपन पेट ला खुद भरे, मानुस तैंहर सोंच।

परवा  मा  झाला  रहे,कूद  कूद बड़ गाय।
बनगे छत के अब ठियाँ,गौरैय्या नइ आय।

गौरैय्या  फुदकत रहे,गाँव गली अउ खोर।
फेर आज रहिथे कहाँ,खोजत हे मन मोर।

कभू खोर ता घर  कभू ,छानी मा चढ़ जाय।
चींव चींव चहकत हवे,गौरैय्या मन भाय।

बइठे  बइठे   पेड़   मा ,गौरैय्या    हा   रोय।
गरमी जाड़ असाड़ मा,दुख अब्बड़ हे होय।

हरँव  चिरँइयाँ   नानकुन , गौरैय्या  हे   नाँव।
फुदकत चहकत खोजथौं,महूँ अपन बर छाँव।

झाला  कहाँ बनाँव मैं,परवा हे ना पेड़।
चारो मूड़ा छत सजे,देखँव आँखी तेंड़।

बिता बिता बर देख ले,माते हे बड़ लूट।
जघा मोर बर नइ दिखे,रोवँव मैंहा फूट।

गिरे  मूसला  धार  जल, मोर  पिटाई  होय।
कभू सुखावँव घाम मा,पानी बिन मन रोय।

गरमी घाम असाड़ मा,दाँव लगे हे साख।
संख्या हमर सिरात हे,टूटत हावय पाँख।

बइठे  रहिथों  जाड़ मा,ओढ़े  कोनो पात।
भारी दुख ला झेलथों,मैंहा दिन अउ रात।

कोन डारही चोंच मा , दाना  पानी  लान।
साँस चलत ले घूमथों,नइ हे मीत मितान।

पाबे  मरे  कछार  मा,मरे  मिलौं  मैं मेड़।
मर मरके मैं हौं जियत,कटके भारी पेड़।

आँधी अंधड़ आय जब,हले पेड़ के डाल।
टूटे  डारा  पान बड़, होवय   बारा   हाल।

गिरे  परे   हे  अधमरा,लेवत हे बस साँस।
गौरैय्या खग जाति के,होवत हावय नास।

चिरई  चोंच  उलाय हे, दाना  देबे   डार।
माटी मा हे बिस मिले,खाही काला यार।

माटी  मा  छीचत हवे,रंग रंग के खाद।
जिनगी चिरई जात के,होवत हे बर्बाद।

चिरई  अँगना  आय  हे,दाना  देबे  छीत।
पानी रखबे घाम मा,जिनगी जाही जीत।

गौरैय्या चिरई हरौं,फुदकत रहिहौं खोर।
चींव चींव  चहकत रहूँ,नाँव लेत मैं तोर।

                   मँय

पड़के मँय के फेर मा,मँय का कर डारेंव।
नइ तो होइस जीत गा,उल्टा  सब  हारेंव।

कतको झन ला चाब दिस,मँय नाम के साँप।
तोर  मोर  कहिके   लड़े, इंच  इंच  ला  नाप।

मँय  मनखे  बर मोह ए,बदले नीयत ढंग।
चक्कर मा मँय मोर के,होथे अब्बड़ जंग।

सेवा  खातिर  मँय  नहीं,ना  दुखिया  के  तीर।
मँय कहिके तैं जा निकल,गढ़ सबके तकदीर।

करबे   बूता   तैं   बने, होही   तोरो    नाम।
काबर तैंहा नइ कहस,मँय करहूँ सत काम।

मँय मँय कहिके तैं  लड़े, का  लेबे  धन जोड़।
बढ़ आघू उपकार कर,मँय मँय के रट छोड़।

चिथही चोला ला गजब,मँय नाम के चील।
अपन समझ झन पाल तैं,आजे दे गा ढील।

वो मूरख  मनखे हरे,रहिथे मँय के साथ।
मँय के माया देख ले,स्वारथ उपजे माथ।

मँय मा नइ तो कुछु मिले,सबके धरले हाथ।
मनखे  बनके तैं रहा,मिलके चल सब साथ।


      जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

@@@@@@करम@@@@@@@

करम  सार  हावय इँहा,जेखर  हे  दू  भेद।
बने  करम ला राख लौ,गिनहा ला दे खेद।

बिना करम के फल कहाँ,मिलथे मानुष सोच।
बने   करम   करते   रहा,बिना  करे   संकोच।

करे  करम  हरदम  बने,जाने  जेहर  मोल।
जिनगी ला सार्थक करे,बोले बढ़िया बोल।

करम  करे  जेहर   बने,ओखर  बगरे नाम।
करम बनावय भाग ला,करम करे बदनाम।

करम  मान नाँगर जुड़ा,सत  के  बइला फाँद।
छीच मया ला खेत भर,खन इरसा कस काँद।

काया बर करले करम,करम हवे जग सार।
जीत करम ले हे मिले, मिले  करम ले हार।

करम सरग के फइरका,करम नरक के द्वार।
करम गढ़े जी  भाग ला,देवय  करम  उजार।  

बने करम कर देख ले,अड़बड़ मिलथे मान।
हिरदे  घलो हिताय बड़,बाढ़े अड़बड़ शान।

मिल जाये जब गुरु बने,वो सत करम पढ़ाय।
जिनगी  बने  सँवार   के,बॉट  सोझ  देखाय।

हाथ   धरे  गुरुदेव  के,जावव जिनगी जीत।
धरम करम कर ले बने,बाँट मया अउ मीत।

करम जगावय भाग ला,लेगय गुरु भवपार।
बने  करम बिन जिन्दगी,सोज्झे  हे  बेकार।

##############ज्ञान#############

ज्ञान रहे ले साथ मा ,बाढ़य जग मा शान।
माथ  ऊँचा  हरदम रहे,मिले  बने सम्मान।

बोह भले सिर ज्ञान ला,माया मोह उतार।
आघू मा जी ज्ञान के,धन बल जाथे हार।

लोभ मोह बर फोकटे,झन कर जादा हाय।
बड़े बड़े धनवान मन ,खोजत  फिरथे राय।

ज्ञान मिले सत के बने,जिनगी तब मुस्काय।
आफत  बेरा  मा  सबे,ज्ञान काम बड़ आय।

विनय मिले बड़ ज्ञान ले ,मोह ले अहंकार।
ज्ञान  जीत  के  मंत्र  ए, मोह हरे खुद हार।

गुरुपद पारस  ताय जी,लोहा होवय सोन।
जावय नइ नजदीक जे,मूरख ए सिरतोन।

बाँट  बाँट  के  ज्ञान  ला,करे जेन निरमान।
वो पद देख पखार ले,गुरुपद पंकज जान।

अइसन  गुरुवर  के  चरण,बंदौं बारम्बार।
जेन ज्ञान के जोत ले,मेटय सब अँधियार।

&&&&&&&&नसा&&&&&&&&&

दूध  पियइया  बेटवा ,ढोंके  आज  शराब।
बोरे तनमन ला अपन,सब बर बने खराब।

सुनता बाँट तिहार मा,झन पी गाँजा मंद।
जादा लाहो लेव झन,जिनगी हावय चंद।

नसा करइया हे अबड़,बढ़  गेहे  अपराध।
छोड़व मउहा मंद ला,झनकर एखर साध।

दरुहा गँजहा मंदहा,का का नइ कहिलाय।
पी  खाके  उंडे   परे, कोनो हा  नइ  भाय।

गाँजा चरस अफीम मा,काबर गय तैं डूब।
जिनगी  हो  जाही  नरक,रोबे  बाबू  खूब।

फइसन कह सिगरेट ला,पीयत आय न लाज।
खेस खेस बड़ खाँसबे,बिगड़ जही सब काज।

गुटका  हवस दबाय तैं,बने  हवस  जी  मूक।
गली खोर मइला करे,पिचिर पिचिर गा थूक।

काया  ला   कठवा  करे,अउ  पाले  तैं   घून।
खोधर खोधर के खा दिही,हाड़ा रही न खून।

नसा नास कर देत हे, राजा हो या रंक।
नसा देख  फैलात हे,सबो खूंट आतंक।

टूटे  घर   परिवार    हा, टूटे  सगा   समाज।
चीथ चीथ के खा दिही,नसा हरे गया बाज।

घर  दुवार  बेंचाय के,नौबत  हावय आय।
मूरख माने नइ तभो,कोन भला समझाय।

नसा करइया चेत जा,आजे  दे  गा छोड़।
हड़हा होय शरीर हा,खपे हाथ अउ गोड़।

एती ओती  देख ले,नसा  बंद  के जोर।
बिहना करे विरोध जे,संझा बनगे चोर।

कइसे छुटही मंद हा,अबड़ बोलथस बोल।
काबर पीये  के  समय,नीयत  जाथे  डोल।

संगत  कर  गुरुदेव  के,छोड़व  मदिरा मास।
जिनगी ला तैं हाथ मा,कार करत हस नास।

नसा  करे ले रोज के,बिगड़े तन के तंत्र।
जाके गुरुवर पाँव मा,ले जिनगी के मंत्र।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

29 comments:

  1. वाह जितेंद्र जी प्रशंसनीय दोहा

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  2. वाह जितेंद्र जी प्रशंसनीय दोहा

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  3. बहुतेच सुग्घर दोहालरी वर्मा जी।

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  4. वाह्ह्ह्ह्ह् जितेन्द्र जी सुंदर दोहावली

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  5. सुघ्घर जितेन्द्र जी

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  6. सुघ्घर जितेन्द्र जी

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  7. गुरुदेव के सादर चरण बंदत,आप सबो ला सधन्यवाद,पायलागी

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  8. जितेंद्र जी, सुग्घर दोहावली

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  9. बहूत सुघ्घर दोहावली जितेंद्र भाई

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  10. बहुत सुग्घर दोहा जितेंद्र भाई

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  11. बहुत खूब!! लिखते रहो,आगे बढ़ते रहो।।

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  12. बहुत खूब!! लिखते रहो,आगे बढ़ते रहो।।

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  13. बहुत सुग्घर खैरझिटिया सर।सादर बधाई

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  14. बहुत सुग्घर खैरझिटिया सर।सादर बधाई

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  15. खैरझिटिया स्पेशल
    नेक सलाह अउ संदेश धरे सुग्घर दोहा वर्मा जी

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  16. बहुत सुग्घर दोहावली हे,जितेन्द्र भैया जी

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  17. आपके सबो दोहा शानदार हे जितेन्द्र भैया

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  18. बहुत सुन्दर दोहा भइया जी

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  19. अब्बड़ सुग्घर दोहा खैरझिटिहा गुरुदेव

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  20. आप सबो के श्री चरण म सादर बंदन

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  21. बड़ सुग्घर सुग्घर दोहा गुरुदेव

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  22. शानदार गुरुदेव

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