श्री सूर्यकान्त गुप्ता के दोहा
बेटी ला शिक्षा अउ सन्सकार दौ
बिन शिक्षा सँसकार के, जिनगी बिरथा जान।
मानुस तन हम पाय हन, बन के रहन सुजान।।
बेटा अउ बेटी घलो, शिक्षा के हकदार।
संस्कार के आज हे, दूनो ला दरकार।।
नर नारी बिन जगत के, रचना कइसे होय।
लानत बेटी कोंख मा , मनखे काबर रोय।।
दाई देवी मान के, पूजौ पथरा चित्र।
घर मा ओकर प्रान के, काबर भूखे मित्र।।
**************************
परियावरन बचाव
चीरत हौ का समझ के, मोरद्ध्वज के पूत।
काटे पेड़ जियाय बर, नइ आवय प्रभु दूत।।
रूख राइ काटौ मती, सोचौ पेड़ लगाय।
बिना पेड़ के जान लौ, जिनगी हे असहाय।।
बिन जंगल के हे मरें, पशु पक्षी तैं जान।
बाग बगइचा के बिना, होही मरे बिहान।।
आनन फानन मा सबो, कानन उजड़त जात।
करनी कुदरत ला तुँहर, एको नई सुहात।।
पीये बर पानी नही, कइसे फसल उगाँय।
बाढ़े गरमी घाम मा, मूड़ी कहाँ लुकाँय।।
जँउहर तीपन घाम के, परबत बरफ ढहाय।
परलय ओ केदार के, कउने सकय भुलाय।।
एती बर बाढ़त हवै, उद्यम अउ उद्योग।
धुँगिया धुर्रा मा घिरे, अनवासत हन रोग।।
खलिहावौ झन देस ला, जंगल झाड़ी काट।
सरग सही धरती हमर, परदूसन मत पाट।।
करौ परन तुम आज ले, रोजे पेड़ लगाव।
बिनती "सूरज" के हवै, परियावरन बचाव।।
**************************
मनखे के तेवर
तेवर मनखे के चढ़ै, सम्हले ना सम्हलाय।
चिटिकुन गलती देख के, नानी याद कराय।।
भय भीतर माढ़े रथे, तभे उपजथे क्रोध।
जब अंतस मा झांकथे, होथे एकर बोध।।
बड़े बड़े विद्वान के, अलग अलग हे झुंड।
सुधा पान स्नान बर, जघा जघा हे कुंड।।
गुस्सा ले बढ़के कथें, करौ क्षमा के दान।
गलती बर जी डांट दौ, समझ तनिक नादान।।
जय जोहार......
सूर्यकांत गुप्ता
1009 सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)
बेटी ला शिक्षा अउ सन्सकार दौ
बिन शिक्षा सँसकार के, जिनगी बिरथा जान।
मानुस तन हम पाय हन, बन के रहन सुजान।।
बेटा अउ बेटी घलो, शिक्षा के हकदार।
संस्कार के आज हे, दूनो ला दरकार।।
नर नारी बिन जगत के, रचना कइसे होय।
लानत बेटी कोंख मा , मनखे काबर रोय।।
दाई देवी मान के, पूजौ पथरा चित्र।
घर मा ओकर प्रान के, काबर भूखे मित्र।।
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परियावरन बचाव
चीरत हौ का समझ के, मोरद्ध्वज के पूत।
काटे पेड़ जियाय बर, नइ आवय प्रभु दूत।।
रूख राइ काटौ मती, सोचौ पेड़ लगाय।
बिना पेड़ के जान लौ, जिनगी हे असहाय।।
बिन जंगल के हे मरें, पशु पक्षी तैं जान।
बाग बगइचा के बिना, होही मरे बिहान।।
आनन फानन मा सबो, कानन उजड़त जात।
करनी कुदरत ला तुँहर, एको नई सुहात।।
पीये बर पानी नही, कइसे फसल उगाँय।
बाढ़े गरमी घाम मा, मूड़ी कहाँ लुकाँय।।
जँउहर तीपन घाम के, परबत बरफ ढहाय।
परलय ओ केदार के, कउने सकय भुलाय।।
एती बर बाढ़त हवै, उद्यम अउ उद्योग।
धुँगिया धुर्रा मा घिरे, अनवासत हन रोग।।
खलिहावौ झन देस ला, जंगल झाड़ी काट।
सरग सही धरती हमर, परदूसन मत पाट।।
करौ परन तुम आज ले, रोजे पेड़ लगाव।
बिनती "सूरज" के हवै, परियावरन बचाव।।
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मनखे के तेवर
तेवर मनखे के चढ़ै, सम्हले ना सम्हलाय।
चिटिकुन गलती देख के, नानी याद कराय।।
भय भीतर माढ़े रथे, तभे उपजथे क्रोध।
जब अंतस मा झांकथे, होथे एकर बोध।।
बड़े बड़े विद्वान के, अलग अलग हे झुंड।
सुधा पान स्नान बर, जघा जघा हे कुंड।।
गुस्सा ले बढ़के कथें, करौ क्षमा के दान।
गलती बर जी डांट दौ, समझ तनिक नादान।।
जय जोहार......
सूर्यकांत गुप्ता
1009 सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)
बेटी अउ पर्यावरण बचाय के सुग्घर संदेश भैया
ReplyDeleteबेटी अउ पर्यावरण बचाय के सुग्घर संदेश भैया
ReplyDeleteसूर्यकान्त जी, लाजवाब दोहावली ।
ReplyDeleteसूरज भैया के प्रखर दोहावली
ReplyDeleteइंखर उजाला ला दिया हा का कहि सकत हे ।
सादर नमन भैया जी अनुपम सृजन बर
सुघ्घर दोहा सिरजन आदरणीय।।
ReplyDeleteसुघ्घर दोहा सिरजन आदरणीय।।
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् भइया बढ़िया संदेश परक दोहावली
ReplyDeleteलेखनी ला सादर प्रणाम
सूर्यकांत भईया अतका बढ़िया दोहा पढ़ के मजा आगे मन अघागे 😊🙏💓🌹🌸🌻🌼🌺🌈🌅
ReplyDeleteसूर्यकांत भईया अतका बढ़िया दोहा पढ़ के मजा आगे मन अघागे 😊🙏💓🌹🌸🌻🌼🌺🌈🌅
ReplyDeleteमोर मयारुक भैया अउ गुरुदेव श्रद्धेय अरुण निगम जी ल सादर प्रणाम अउ सँगे सँग मोर बड़कू अउ नान्हें भाई बहिनी मन ल घलो प्रणाम/आशीर्वाद देत उँखर सुग्घर प्रतिक्रिया बर अंतस ले आभार प्रकट धन्यवाद देथौं....
ReplyDeleteसादर
लाजवाब दोहावली भैयाजी।सादर बधाई
ReplyDeleteलाजवाब दोहावली भैयाजी।सादर बधाई
ReplyDeleteप्रेरणादायी दोहा मन बर सूर्या जी ला हार्दिक शुभकामना।
ReplyDeleteसुग्घर भावपूर्ण दोहावली हे , गुरुदेव गुप्ता जी। ।बधाई
ReplyDeleteसुघ्घर गीत।
ReplyDeleteसुघ्घर गीत।
ReplyDeleteआदरणीय सूर्यकांत भैया जी के लाजवाब दोहावली
ReplyDeleteजबरदस्त दोहावली भैया जी।
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