श्री चोवाराम वर्मा के दोहा
*छत्तीसगढ़ के तीरथ धाम*(दोहा)
चंदखुरी श्री राम के, ममा गाँव तो आय ।
छत्तीसगढ़ म जी तभे, भाँचा पाँव पराय ।।
कुस राजा कसडोल के, त्रेता जुग के बात ।
रहिस राज लव के लवन, सूर्यवंस बिख्यात ।।
सिरपुर मा मंदिर हवय,ईंटे ईंट बनाय ।
जग मा अबड़ प्रसिद्ध हे, लछिमन मंदिर ताय ।।
राजिम मेला घूम ले, अउ बाबा के धाम ।
सिवरीनारायण हवय, जिहाँ बिराजे राम ।।
गंगा मइया झलमला , हवय जिला बालोद ।
पाटेस्वर मा हे बनत, मंदिर धरती खोद ।।
दाई हे दन्तेस्वरी, दन्तेवाड़ा स्थान ।
देवी हा छाहित रथे, जुग जुग ले हे मान ।।
भोरमदेव ला देख के, संगी तैंहा आव ।
खजुराहो जाबे कहाँ, ओइसने ए ठाँव ।।
डोंगरगढ़ बमलेस्वरी, रतनपुरी महमाय ।
जग जननी के कर दरस, दुख जावय बिसराय ।।
काँसी सहीं खरौद हे, राजिम हमर प्रयाग ।
महानदी मा स्नान कर, अपन जगा ले भाग ।।
मंदिर हे भाँचा ममा, बारसूर हे गाँव ।
दरसन करव गनेस के, उपर पहाड़ी ठाँव ।।
घपटे घन जंगल हवय, बस्तर जेन कहाय ।
चित्रकोट झरना जिहाँ , करमा गीत सुनाय ।।
पावन धाम गिरौद हे, झंडा हा फहराय ।
जय बोलत सतनाम के, दरसन बर सब आय ।।
आरंग हा इतिहास मा, मंदिर नगर कहाय ।
जैनी मन आथे इहाँ , मूर्ति देख हरसाय ।।
लवकुस जन्में हेँ जिहाँ, तुरतुरिया हे नाम ।
बालमिकी रचना रचिस , सुमर सुमर के राम ।।
*भाजी पाला*(दोहा)
डार अमारी राँध ले, बखरी के तैँ चेंच ।
खाही भइया माँग के, लमा लमा के घेंच ।।
भाजी हवय मछेरिया ,मछरी असन सुवाद ।
साकाहारी जेन हे, तेकर बर परसाद ।।
मुनगा भाजी जी हवय, अबड़े गुन के खान ।
कतको रोग ल ए हरय, खावव दवा समान ।।
मुनगा भाजी ला सुखो, बुकनी करके छान ।
सीसी मा भरके रखव, पाबे कहाँ दुकान ।।
रोज रोज दीदी कथे, मुनगा भाजी लान ।
आरा पारा मोर ले , होगे हें हलकान ।।
तिनपनिया भाजी बिसा, चटनी कस भुँजवाय ।
एखर स्वाद ला पा जथे, भात ल आगर खाय ।।
गुजगुजहा होथे अबड़, पेट ल देथे झार ।
कजरा भाजी वो हरे, जामै भर्री खार ।।
खीसा पइसा धर बने, जाना तैं ह बजार ।
करमत्ता के संग मा, ले भाजी बोहार ।।
*सब्जी*(दोहा)
परवर आलू अउ मटर, कुंदरु संग मिलाय ।
सुक्खा राँधे बिन रसा, देखत मुँह पंछाय ।।
रमझाझर रमकेरिया, अड़बड़ झोर मिठाय ।
चेर्रा चेर्रा ला तको, चुहक चुहक सब खाय ।।
लउकी सेमी कोंहड़ा, तुमा तरोई साग ।
पाचन हो जाथे बने, जाय बिमारी भाग ।।
गुनकारी होथे जरी, रेसा के भरमार ।
बने भितरहिन राँधथे , रखिया बरी ला डार ।।
बाँबी सेमी ला कहूँ , राँधय तिली बघार ।
अइसन तिरिया ला मिलय, घर भर के सत्कार ।।
आलू मुनगा संग मा, भाँटा हा लपटाय ।
सँघरा मिलथे जब चना, ताकत घात बताय ।।
राँध करेला छोल के, सुक्खा भूँज बघार ।
चानी चानी मा भरे, सेहत के भंडार ।।
चना दार के संग मा , लउकी अबड़ मिठाय ।
फोरन डारे गोंदली, देखत मुँह पंछाय ।।
खट्टा राँध मसूर ला, देवय बहू परोस ।
सास ससुर खुस हो जथे, छमा करय सब दोस ।।
*मेला मड़ई*(दोहा)
मेला मा मनिहार के ,लगथे अबड़ दुकान ।
मोल भाव नारी करे, लेवय तभे समान ।।
फुग्गा चसमा देख के, छोटू हाथ लमाय ।
नोनी गुड़िया लेय बर, दाई ल गोहराय ।।
पागा कलगी साज के, नाचय दोहा पार ।
राउत बाजा मा बिधुन, मानय गाँव तिहार ।।
नाचय दोहा पार के, घेरा गोल बनाय ।
रिंगी चिंगी लाठी धरे, राउत सोभा पाय ।।
रच रच बाजय ढेलवा , बइठइया मुसकाय ।
कतको झन देखत रथें, झूले मा डर्राय ।।
पूजा कातिक देव के, कर लव भाई आज ।
मेला पुन्नी के परब, सुग्घर हमर रिवाज ।।
रचनाकार - चोवाराम वर्मा
हथबन्ध (भाटापारा) छत्तीसगढ़
*छत्तीसगढ़ के तीरथ धाम*(दोहा)
चंदखुरी श्री राम के, ममा गाँव तो आय ।
छत्तीसगढ़ म जी तभे, भाँचा पाँव पराय ।।
कुस राजा कसडोल के, त्रेता जुग के बात ।
रहिस राज लव के लवन, सूर्यवंस बिख्यात ।।
सिरपुर मा मंदिर हवय,ईंटे ईंट बनाय ।
जग मा अबड़ प्रसिद्ध हे, लछिमन मंदिर ताय ।।
राजिम मेला घूम ले, अउ बाबा के धाम ।
सिवरीनारायण हवय, जिहाँ बिराजे राम ।।
गंगा मइया झलमला , हवय जिला बालोद ।
पाटेस्वर मा हे बनत, मंदिर धरती खोद ।।
दाई हे दन्तेस्वरी, दन्तेवाड़ा स्थान ।
देवी हा छाहित रथे, जुग जुग ले हे मान ।।
भोरमदेव ला देख के, संगी तैंहा आव ।
खजुराहो जाबे कहाँ, ओइसने ए ठाँव ।।
डोंगरगढ़ बमलेस्वरी, रतनपुरी महमाय ।
जग जननी के कर दरस, दुख जावय बिसराय ।।
काँसी सहीं खरौद हे, राजिम हमर प्रयाग ।
महानदी मा स्नान कर, अपन जगा ले भाग ।।
मंदिर हे भाँचा ममा, बारसूर हे गाँव ।
दरसन करव गनेस के, उपर पहाड़ी ठाँव ।।
घपटे घन जंगल हवय, बस्तर जेन कहाय ।
चित्रकोट झरना जिहाँ , करमा गीत सुनाय ।।
पावन धाम गिरौद हे, झंडा हा फहराय ।
जय बोलत सतनाम के, दरसन बर सब आय ।।
आरंग हा इतिहास मा, मंदिर नगर कहाय ।
जैनी मन आथे इहाँ , मूर्ति देख हरसाय ।।
लवकुस जन्में हेँ जिहाँ, तुरतुरिया हे नाम ।
बालमिकी रचना रचिस , सुमर सुमर के राम ।।
*भाजी पाला*(दोहा)
डार अमारी राँध ले, बखरी के तैँ चेंच ।
खाही भइया माँग के, लमा लमा के घेंच ।।
भाजी हवय मछेरिया ,मछरी असन सुवाद ।
साकाहारी जेन हे, तेकर बर परसाद ।।
मुनगा भाजी जी हवय, अबड़े गुन के खान ।
कतको रोग ल ए हरय, खावव दवा समान ।।
मुनगा भाजी ला सुखो, बुकनी करके छान ।
सीसी मा भरके रखव, पाबे कहाँ दुकान ।।
रोज रोज दीदी कथे, मुनगा भाजी लान ।
आरा पारा मोर ले , होगे हें हलकान ।।
तिनपनिया भाजी बिसा, चटनी कस भुँजवाय ।
एखर स्वाद ला पा जथे, भात ल आगर खाय ।।
गुजगुजहा होथे अबड़, पेट ल देथे झार ।
कजरा भाजी वो हरे, जामै भर्री खार ।।
खीसा पइसा धर बने, जाना तैं ह बजार ।
करमत्ता के संग मा, ले भाजी बोहार ।।
*सब्जी*(दोहा)
परवर आलू अउ मटर, कुंदरु संग मिलाय ।
सुक्खा राँधे बिन रसा, देखत मुँह पंछाय ।।
रमझाझर रमकेरिया, अड़बड़ झोर मिठाय ।
चेर्रा चेर्रा ला तको, चुहक चुहक सब खाय ।।
लउकी सेमी कोंहड़ा, तुमा तरोई साग ।
पाचन हो जाथे बने, जाय बिमारी भाग ।।
गुनकारी होथे जरी, रेसा के भरमार ।
बने भितरहिन राँधथे , रखिया बरी ला डार ।।
बाँबी सेमी ला कहूँ , राँधय तिली बघार ।
अइसन तिरिया ला मिलय, घर भर के सत्कार ।।
आलू मुनगा संग मा, भाँटा हा लपटाय ।
सँघरा मिलथे जब चना, ताकत घात बताय ।।
राँध करेला छोल के, सुक्खा भूँज बघार ।
चानी चानी मा भरे, सेहत के भंडार ।।
चना दार के संग मा , लउकी अबड़ मिठाय ।
फोरन डारे गोंदली, देखत मुँह पंछाय ।।
खट्टा राँध मसूर ला, देवय बहू परोस ।
सास ससुर खुस हो जथे, छमा करय सब दोस ।।
*मेला मड़ई*(दोहा)
मेला मा मनिहार के ,लगथे अबड़ दुकान ।
मोल भाव नारी करे, लेवय तभे समान ।।
फुग्गा चसमा देख के, छोटू हाथ लमाय ।
नोनी गुड़िया लेय बर, दाई ल गोहराय ।।
पागा कलगी साज के, नाचय दोहा पार ।
राउत बाजा मा बिधुन, मानय गाँव तिहार ।।
नाचय दोहा पार के, घेरा गोल बनाय ।
रिंगी चिंगी लाठी धरे, राउत सोभा पाय ।।
रच रच बाजय ढेलवा , बइठइया मुसकाय ।
कतको झन देखत रथें, झूले मा डर्राय ।।
पूजा कातिक देव के, कर लव भाई आज ।
मेला पुन्नी के परब, सुग्घर हमर रिवाज ।।
रचनाकार - चोवाराम वर्मा
हथबन्ध (भाटापारा) छत्तीसगढ़
बड़े भैया बड़ सुग्घर दोहालरी हे।
ReplyDeleteबड़े भैयाजी!!
ReplyDeleteबड़ सुग्घर दोहालरी हावय।
भैया जी सूर्य ला दीपक दिखाना जैसे लगत हे हमर कमेंट हा
ReplyDeleteबेहतरीन भैया जी
भैया जी सूर्य ला दीपक दिखाना जैसे लगत हे हमर कमेंट हा
ReplyDeleteबेहतरीन भैया जी
धन्यवाद आदरणीया आशा बहिनी जी।
Deleteवाह्ह्ह्ह्ह् भइया हमर छत्तीसगढ़ के सुग्घर धरोहर के वर्णन करे हावव ,
ReplyDeleteसुग्घर दोहावली
बादल भैय्या आपके दोहा पढ़के मन गदगद होगे।
ReplyDeleteप्रणाम
मेला मड़ई, भाजी पाला,तीरथ धाम के सुग्घर बरनन करे हव बादल भैया साधुवाद ।
ReplyDeleteमेला मड़ई, भाजी पाला,तीरथ धाम के सुग्घर बरनन करे हव बादल भैया साधुवाद ।
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ तीरथ, भाजी पाला, सब्जी दोहा,मेला मड़ई..... गजब के दोहा भईया जी..... मन खुश होगे
ReplyDeleteवाह चोवा भइया बहुत सुन्दर दोहा आपके पढ़े ला मालिस सुग्घर वर्णन भाजी पाला, मेला मड़ई,तिरथ धाम के।
ReplyDeleteचोवाराम जी, सुग्घर दोहावली।
ReplyDeleteसादर नमन गुरुदेव।छंद के खजाना मा स्थान पाके रचना सार्थक होगे।
Deleteअबड़ सुघ्घर दोहा भैया
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली बादल सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली बादल सर।सादर बधाई
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-08-2017) को "पुनः नया अध्याय" (चर्चा अंक 2707) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी
Deleteसुघ्घर दोहावली।।
ReplyDeleteसुघ्घर दोहावली।।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार दोहावली हे,गुरुदेव बादल जी। छत्तीसगढ़ के धरोहर तीरथ धाम ,भाजी पाला , अउ मड़ई मेला विषय मा बहुत सुग्घर सुग्घर दोहा लिखे हव।अंतस ले बधाई।
ReplyDeleteछंद के खजाना मा स्थान पाके मोर दोहा मन के सृजन सार्थक होगे।हम सब साधक मन बर सुग्घर उदिम करइया श्रद्धेय गुरुदेव निगम जी ला सादर नमन हे।
ReplyDeleteआप सब झन ला घलो हार्दिक धन्यवाद हे जेन मन मोर दोहा ला पढ़ गुन के अपन बहुमूल्य विचार प्रेषित करे हव।सादर आभार।
चोवा राम "बादल"
वाह वाह बहुँत सुग्घर दोहावली बादल भैया।बधाई हो।
ReplyDeleteचोवा भाई के सुघ्घर दोहा
ReplyDelete