घाम घरी के फर- सार छंद
किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।
रंग रूप अउ स्वाद देख सुन, लड्डू फूटय मन मा।।
पिकरी गंगाअमली आमा, कैत बेल फर डूमर।
जोत्था जोत्था छींद देख के, तन मन जाथें झूमर।।
झुलत कोकवानी अमली हा, डारे खलल लगन मा।
किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।
तेंदू तीरे अपने कोती, चार खार मा नाँचै।
कोसम कारी कुरुलू कोवा, कखरो ले नइ बाँचै।
डिहीं डोंगरी के ये फर मन, राज करै जन जन मा।
किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।
पके पपीता लीची लिमुवा, लाल कलिंदर चानी।
खीरा ककड़ी खरबुज अंगुर, करथे पूर्ती पानी।।
जर बुखार लू ला दुरिहाके, ठंडक लाथे तन मा।
किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment