राखी
डी पी लहरे: सार छन्द गीत
(राखी)
रंग बिरंगी राखी धर के,बहिनी मइके आथे।
चंदन टीका माथ लगाके,राखी ला पहिराथे।।
भाई-बहिनी के नाता हा,जग मा होथे पावन।
सदा बरसथे दया मया हा,होथे सुख के सावन।।
रक्षा करके बहिनी मन के,भाई फरज निभाथे।
रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।
बँधे रहय ए मया डोर हा,बहिनी के ए आसा।
भाई के मन मा नइ देखय,बहिनी कभू निरासा।।
सुख होवय चाहे दुख होवय,भाई संग निभाथे।।
रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।
अबड़ मयारू बहिनी होथे,जइसे सुख के सागर।
खुशी लुटाथे भाई मन बर,दया मया ला आगर।।
भाई के खुशहाली खातिर,निशदिन दुआ मनाथे।
रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।
डी.पी.लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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आशा देशमुख: राखी
सुख के बरसा होत हे, पावन आय तिहार।
बहिनी अंचरा मा धरे,आशीष मया दुलार।।
कुलकत हें सब बहिनी भाई, राखी से हे भरे कलाई।।
चन्दन टीका चावल रोली ।मया दुलार लुटावत बोली।।
खीर मिठाई भर भर थारी। बहिनी भैया के घर द्वारी।।
सुख के बरसा होवन लागे। हरियर हरियर सुख हा छागे।।
राखी होथे पबरित डोरी। आये पुन्नी पाख अँजोरी।।
सावन महिना हे बड़ भागी। शिव सँग मन होथे बैरागी।।
दुख से रक्षा करथे राखी। चहके घर घर सुख के पाँखी।।
राजा बलि कस सबके भाई। बहिनी मन हे लक्ष्मी दाई।।
ये तिहार ला अमर बनाए। भारत मा हे बगराये।।
राखी पबरित नता धरे हे। सब के मन मा मया भरे हे।।
सबके घर परिवार मा,बंधे सुमत के डोर।
भाई बहिनी मन सबो, पग पग पाय अँजोर।।
आशा देशमुख
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राखी के सुँतरी (सार छंद)
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कस के मया बँधाये हावै,ए पातर सुतरी मा।
बसे हवै राखी के सुरता,आँखी के पुतरी मा।।
रंग बिरंगी सजे कतिक ठन,कतको हें बस धागा।
राखी जइसे हो भाई बर,ए पिरीत के लागा।।
ए लागा ला छूटे खातिर,रहैं चेतलग भाई।
किरिया खावँय कभू बहिन झन,झेलँय दुख करलाई।।
बहिनी घलो अपन भाई बर,सरलग मया लुटावैं।
अइसन निर्मल नेह नता मा,कभू आँच झन आवैं।।
दीपक निषाद-लाटा (बेमेतरा)
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चौपई/जयकारी छंद-- राखी
दीदी-बहिनी मइके आय ।
भाँची-भाँचा संगे लाय ।।
सावन पुन्नी खास तिहार ।
बाँटय सब ला मया दुलार ।।
दाई झाँकय अँगना खोर ।
बेटी आही अब तो मोर ।।
ददा घलो ला हावय आस ।
झन करबे तँय आज निरास ।।
मया पिरित हे अँचरा छोर ।
बाँधे सुग्घर रेशम डोर ।।
रक्षा के माँगे वरदान ।
बहिनी मन पाये गा मान ।।
टीका चंदन माथ लगाय ।
भाई ला राखी पहिराय ।।
सदा मिलय गा खुशी अपार ।
भाई मन देवँय उपहार ।।
राखी के हे पावन वार ।
काल दोष के मुहरत टार ।।
बाँधव सब झन सुतरी ताग ।
भाई मन के जागय भाग ।।
मुकेश उइके 'मयारू'
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
मो.नं.- 8966095681
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: सरसी छंद
राखी
जाती सावन पुन्नी मां हे,आथे खुशी अपार।
भाई बहिनी के पावन दिन,राखी धरे तिहार।।
माथ लगाके चंदन टीका,बहिनी बाॅंधय ताग।
धन मा झन तउलाय मया हर,लागय झन गा दाग़।।
पावॅंव मया मान गा भैया, मुॅंह भर भाखा सार।
लोटा भर पानी के थेभा,आवॅंव तोर दुवार।।
सरग सरी मइके के माटी,देव सरी माॅं बाप।
भरे रहे कोठी अन धन ले,अतके करथौं जाप।।
मोला नइ चाही गा भैया,तोर खेत घर बार।
भैया भउजी के बस चाही,निमगा मया दुलार।।
तीज तिहारे भैया आही,देखव रद्दा तोर।
साल पतइ मा देबे लुगरा,अतका हक हे मोर।।
महाप्रसादी कस लुगरा ला,राखव मॅंय सम्हार।
शुभ बेरा जब आवय कोनो, पहिरॅंव अलगा डार।।
अपन खून ले बड़के नइये,अउ कोनो संबंध।
काबर जग ला भावत हावे,केवल धन के गंध।।
शशि साहू
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सार छन्द गीत - राखी ३१/०८/२०२३)
राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।
दया - मया ला राखे रहिबे , नइ तो लगय रुपइया ।।
मोर मया के चिनहा राखी , रेशम धागा नोहय ।
टोर फेंकबे झन गा भइया , तोर हाथ मा सोहय ।।
मोर लाज ला रख लेबे गा , लागॅंव तोरे पइयाॅं ।
राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।
भाई - बहिनी के रिश्ता ला , ये दुनिया जानत हे ।
सावन के पावन पुन्नी मा , जुरमिल के मानत हे ।।
मामा घर ले आवत होही , हमर मयारू मइया ।
राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।
जेकर हे भाई - बहिनी गा , किस्मत वाला होथे ।
बिन भाई - बहिनी के कतको , सुसक - सुसक के रोथे ।।
छोटे - छोटे भाॅंचा - भाॅंची , होगे हवय पढ़इया ।
राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।
✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"🙏
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राखी-बरवै छंद
राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।
भैया मोला देबे, मया दुलार।।
जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।
सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।
राखी रक्षा करही, बन आधार।
करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।
झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।
दया मया बरसाबे, देबे मान।।
हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।
नता बहिन भाई के, होही पोठ।।
धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।
बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।
राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।
आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।
सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।
जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।
लइकापन के सुरता, आथे रोज।
रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।
कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।
जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।
पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।
देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।
मोरो अँगना आबे, भैया मोर।
जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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