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Friday, September 1, 2023

राखी पर्व विशेष



 राखी

बड़े बिहनिया झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।
हाल-चाल अउ दया-मया ला, ॲंचरा मा गॅंठियाबे ना।

धरे रबे बहिनी ॲंचरा मा,ननपन के जम्मो सुरता।
माते जब वो पटकिक पटका ,फट जावय तुनहा कुरता।।
भौंरा बिल्लस खेल खेल मा,बड़ होवन धक्का मुक्की।
ददा शिकायत सुनके आवय, तॅंय भागस मारत बुक्की।।
मया अतिक भाई बहिनी के, कते डहर अब पाबे ना।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी, राखी धरके आबे ना।।

खई-खजानी जब-जब बाॅंटे,मन मा राहय बड़ खटका।
तोर बहुत अउ मोर ह कमती,बड़ होवन झटकिक- झटका।।
एक दूसरा के बस्ता ले,शीश कलम ला बड़ टापन।
पता लगे अउ झगरा माते,ददा करे तब उद्यापन।।
झगड़ा पाछू मेल जोल ला,दुनिया म कहाॅं पाबे ना।।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।।

उमर अठारा मा करत रहिन,जबरन तोर सगाई ला।
ओ दिन तॅंय अंतस मा लाने,खप्पर वाले माई ला।।
सबक सिखाये अपने घर मा,मान रखे बर नारी के।
ददा बबा तब ऑंख उघारिन,समझिन दरद सुवारी के।।
रौद्र रूप वाले बहिनी तॅंय,सबके दुख बिसराबे ना।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।।

पढ़े लिखे कालेज करे, तब सत-असत ल पहिचाने।
सही उमर मा बर-बिहाव बर, गोठ सियानी तॅंय माने।।
सब सियान भाॅंचा -भाॅंची सन, पाॅंव पयलगी जीजा बर।
पोला पाछू मॅंय खुद आहूॅं, लाने खातिर तीजा बर।।
खोल सुपेती ननपन वाले, सुरता ला फरियाबे ना।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी राखी धरके आबे ना।।

महेंद्र बघेल डोंगरगांव
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राखी

बछर दिन के रिथे अगोरा |
राखी तिहार तीजा पोरा ||

सावन महिना तिथी पुन्नी |
राखी धर के आथे मुन्नी ||

तिलक लगाके बांधे राखी |
लक्ष्मी बली ल राखै साखी ||

भाई बहन के मया हे सुघ्घर |
सब मया ले हावय चोग्गर ||

आवव मिलजुल के मनावन |
राखी तिहार हे बड़ पावन ||

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
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 राखी परब- मया धरब
जयकरी छंद- अश्वनी रहँगिया

बहिनी मन के एक तिहार, भाई मनबर गजब दुलार। 
साजे रहिथें रेशम डोर, मइके के  अँगना मा शोर।।

जिनगी भर बने नता हवन, जइसे बादर संग पवन।
भाई बहिनी मा बड़ प्यार, नँदिया सागर ले वो पार।।

राखी मया के हे बंधन, बहिनी मन के हे वंदन।
घर घर होवय चैन अमन, जुरे रहय जस धरनी गगन।।

सावन पुन्नी लाय तिहार, नेमत नेकी घर परिवार ।
बहिनी लाहीं खुशी अपार, लाख बरिस बर मया दुलार।।

अन्न धन के बाढँय भंडार, मन मा धर मंगल उपचार।
लइकन पहिरें हें परिधान, बनते जावत हे पकवान।।

अश्वनी कोसरे रहँगिया
कवर्धा कबीरधाम

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: रक्षा बंधन

सावन  पुन्नी   महिना  सुग्घर।
भाई  जाथे  बहिनी  के  घर।।

अमर  मया  बहिनी  भाई के।
यम  राजा  यमुना   माई के।।

बहिनी   बने   सजाथे   थारी।
हाथ   बाँधथे   राखी  प्यारी।।

कुमकुम  टीका  माथा सुग्घर।
भइया ऋणी रथे बहिनी बर।।

रसगुल्ला  मुँह  डार  खवाथे।
भाई  बहिनी  बड़   हरषाथे।।

बोधन राम निषादराज
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लावणी छंद
राखी परब

दीदी मन मोरो घर आहीं, देख भतीजिन सुख पाहीं।।
राखी संग मिठाई लाहीं, बइठ मया ले खिलवाहीं।

बाबू जी खुश हावँय अब्बड़ ,खोर गली मुन्नी झाँकय।
सब बर होथे बेटी प्यारी, दीदी कहि दुन्नो हाँसय।।

उन राखी धर मइके आहीं, घर मा आश जगावत हें।
दूपहरी बेरा मा भाई, राखी ला बँधवावत हें।।

मुन्ना मुन्नी मन खुश होके, अपनो हाथ सजावत हें।
लड्डू पेड़ा चीला बरफी, केला सेब खिलावत हें।।

बहिनी मन ला देके साड़ी, भाई मान बढ़ावत हें।
भाव धरे रक्षा के राखी, सबके भाग जगावत हें।।

अश्वनी कोसरे 
रहँगिया
कवर्धा कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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     ताटंक - छंद ( राखी )
       -----------+-----------  
रोली चंदन कुमकुम ले के,
       बहना तेहा आबे ना।
बांध कलाई मा तयं राखी,
       फरज ल अपन निभाबे ना।।1।।
पाबे रक्षा के गा आशिष,
      जीवन धन्य मनाबे ना।
दाई बाबू अउ भइया ला, 
      सुख दुख अपन बताबे ना।।2।।
ले राखी में आहूं भइया,
      तयं हाथ बंधवाबे ना।
मया प्रीत के गोठ घलो गा,
     सब के संग गोठियाबे ना।।3।।
भइया राखी बांधत हों मैं,
      बात मोर पतियाबे ना।
मोर ददा अउ दाई ला तयं,
      दुख झन गा पहुँचाबे ना।।4।।
हरय चिन्हा गा इही राखी के,
     भइया तयं अपनाबे ना।
अउ मोला कुछु अब नइ चाही,
      तेहा फरज निभाबे ना।।।5।।
कब आबे भइया घर हमरो,
      मोला आज बताबे ना।
"दीप" अपन जीजा ला तेहा,
      खबर मोर बतला दे ना।।6।।

कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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   सुमेरु छंद 
          राखी तिहार

करत सूरता   चले आबे दुवार म
रद्दा देखय बहन राखी तिहार म
कृष्ण भी द्रोपती के सुन पुकार ल
अड़चन म आइस झटपट ग दुवार म
प्रकृति के गुण सब मिल बांट जानव
रक्षा धागा ल पेड़ म तुमन बांधव
रक्षा मातृभूमि के करलव वतन बर
दुआ करही बहन अगले जनम बर
ददा दाई करत तोरे भरोसा
 जतन रतन म कभू मत होय धोखा
महीना आय ये हा दिखत पावन
बरस बरखा अभी रे जोर सावन
चँदा पूनम म लाये दिन बहार म
करत सूरता चले आबे दुवार म
रद्दा देखय बहन राखी तिहार म
               बेदराम पटेल
               बेलरगोंदी(छुरिया)
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 *अमृतध्वनि छंद*
*विषय-राखी*

आगे राखी के परब, आबे बहिनी मोर।
रद्दा मँय देखत हवँव, हवय अगोरा तोर।।
हवय अगोरा, तोर आज वो, आबे नोनी।
करत अगोरा, थारी दीया, चंदन पोनी।।
कोन बेर मा, तँय हा आबे, समय पहागे।
राखी लेके, सब्बो झन के, बहिनी आगे।।

*अनुज छत्तीसगढ़िया*
   पाली जिला कोरबा
  *सत्र 14*
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डी पी लहरे: सार छन्द गीत

(राखी)


रंग बिरंगी राखी धर के,बहिनी मइके आथे।

चंदन टीका माथ लगाके,राखी ला पहिराथे।।


भाई-बहिनी के नाता हा,जग मा होथे पावन।

सदा बरसथे दया मया हा,होथे सुख के सावन।।

रक्षा करके बहिनी मन के,भाई फरज निभाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।


बँधे रहय ए मया डोर हा,बहिनी के ए आसा।

भाई के मन मा नइ देखय,बहिनी कभू निरासा।।

सुख होवय चाहे दुख होवय,भाई संग निभाथे।।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


अबड़ मयारू बहिनी होथे,जइसे सुख के सागर।

खुशी लुटाथे भाई मन बर,दया मया ला आगर।।

भाई के खुशहाली खातिर,निशदिन दुआ मनाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 आशा देशमुख: राखी 



सुख के बरसा होत हे, पावन आय तिहार। 

 बहिनी अंचरा मा धरे,आशीष मया दुलार।। 



कुलकत हें सब बहिनी भाई, राखी से हे भरे कलाई।। 

चन्दन टीका चावल रोली ।मया दुलार लुटावत बोली।। 


खीर मिठाई भर भर थारी।  बहिनी भैया के घर द्वारी।। 

सुख के बरसा होवन लागे।  हरियर हरियर सुख हा छागे।। 


राखी होथे पबरित  डोरी। आये पुन्नी पाख अँजोरी।। 

सावन महिना हे बड़ भागी। शिव सँग मन होथे बैरागी।।



दुख से रक्षा करथे राखी।  चहके घर घर सुख के पाँखी।। 

राजा बलि कस सबके भाई। बहिनी मन हे लक्ष्मी दाई।। 


ये तिहार ला अमर बनाए। भारत मा हे बगराये।। 

राखी पबरित नता धरे हे।  सब के मन मा मया भरे हे।। 


  सबके घर परिवार मा,बंधे सुमत के डोर। 

भाई बहिनी मन सबो, पग पग पाय अँजोर।। 



आशा देशमुख

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राखी के सुँतरी (सार छंद)

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 कस के मया बँधाये हावै,ए पातर सुतरी मा।

 बसे हवै राखी के सुरता,आँखी के पुतरी मा।।

रंग बिरंगी सजे कतिक ठन,कतको हें बस धागा।

राखी जइसे हो भाई बर,ए पिरीत के लागा।।

ए लागा ला छूटे खातिर,रहैं चेतलग भाई।

किरिया खावँय कभू बहिन झन,झेलँय दुख करलाई।।

बहिनी घलो अपन भाई बर,सरलग मया लुटावैं।

अइसन निर्मल नेह नता मा,कभू आँच झन आवैं।।


दीपक निषाद-लाटा (बेमेतरा)

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 चौपई/जयकारी छंद-- राखी 


दीदी-बहिनी मइके आय ।

भाँची-भाँचा संगे लाय ।।

सावन पुन्नी खास तिहार ।

बाँटय सब ला मया दुलार ।।


दाई झाँकय अँगना खोर ।

बेटी आही अब तो मोर ।।

ददा घलो ला हावय आस ।

झन करबे तँय आज निरास ।।


मया पिरित हे अँचरा छोर ।

बाँधे सुग्घर रेशम डोर ।।

रक्षा के माँगे वरदान ।

बहिनी मन पाये गा मान ।।


टीका चंदन माथ लगाय ।

भाई ला राखी पहिराय ।।

सदा मिलय गा खुशी अपार ।

भाई मन देवँय उपहार ।।


राखी के हे पावन वार ।

काल दोष के मुहरत टार ।।

बाँधव सब झन सुतरी ताग ।

भाई मन के जागय भाग ।।


मुकेश उइके 'मयारू'

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

मो.नं.- 8966095681

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: सरसी छंद

                राखी

जाती सावन पुन्नी मां हे,आथे खुशी अपार।

भाई बहिनी के पावन दिन,राखी धरे तिहार।।


माथ लगाके चंदन टीका,बहिनी बाॅंधय ताग।

धन मा झन तउलाय मया हर,लागय झन गा दाग़।।


पावॅंव मया मान गा भैया, मुॅंह भर भाखा सार।

लोटा भर पानी के थेभा,आवॅंव तोर दुवार।।


सरग सरी मइके के माटी,देव सरी माॅं बाप।

भरे रहे कोठी अन धन ले,अतके करथौं जाप।।


मोला नइ चाही गा भैया,तोर खेत घर बार।

भैया भउजी के बस चाही,निमगा मया दुलार।।


तीज तिहारे भैया आही,देखव रद्दा तोर।

साल पतइ मा देबे लुगरा,अतका हक हे मोर।।


महाप्रसादी कस लुगरा ला,राखव मॅंय सम्हार।

शुभ बेरा जब आवय कोनो, पहिरॅंव अलगा डार।।


अपन खून ले बड़के नइये,अउ कोनो संबंध।

काबर जग ला भावत हावे,केवल धन के गंध।।


शशि साहू

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 सार छन्द गीत - राखी ३१/०८/२०२३)


राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।

दया - मया ला राखे रहिबे , नइ तो लगय रुपइया ।।


मोर मया के चिनहा राखी , रेशम धागा नोहय ।

टोर फेंकबे झन गा भइया , तोर हाथ मा सोहय ।।


मोर लाज ला रख लेबे गा , लागॅंव तोरे पइयाॅं ।

राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।


भाई - बहिनी के रिश्ता ला , ये दुनिया जानत हे ।

सावन के पावन पुन्नी मा , जुरमिल के मानत हे ।।

 

मामा घर ले आवत होही , हमर मयारू मइया ।

राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।


जेकर हे भाई - बहिनी गा , किस्मत वाला होथे ।

बिन भाई - बहिनी के कतको , सुसक - सुसक के रोथे ।।


छोटे - छोटे भाॅंचा - भाॅंची , होगे  हवय पढ़इया ।

राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।


 

✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"🙏

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राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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