पोरा तिहार विशेष
: विष्णुप्रद छंद
भादों माह अमावस पोरा, दिन बड़ पबरित हे।
फसल लहलहावत ओखर बर, सिरतो अमरित हे।।
धान पोटरावत हे सुग्घर, देख किसान इहाँ।
हँसी खुशी सब परब मनाये, मारत शान इहाँ।।
माटी के नंदी बइला के, पूजा आज करै।
हमर किसानी इही मितानी, सब्बो काज करै।।
नोनी मन जाँता चुकिया धर, मिलजुल खेलत हे।
बाबू मन बइला गाड़ी ला, खींचत पेलत हे।।
खोखो दउँङ कबड्डी खेलत, शोर मचावत हे।
लइका संग जवान इहाँ सब, परब मनावत हे।।
छतीसगढ़ी परब परंपरा, हमर धरोहर हे।
बरा ठेठरी खुरमी अड़बड़, बनय घरोघर हे।।
ज्ञानु
[9/14, 2:46 PM] सुखदेव: हरिगीतिका छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
पोरा अउ तीजा
भादो अमावस आज हे, आये हवय पोरा परब।
संदेश सुख समृद्धि के, लाये हवय पोरा परब।
आसों तनिक जादा मया, पाये हवय पोरा परब।
तब तो पटल मा नेट के, छाये हवय पोरा परब।
ये फेसबुक ये वाटसप, ट्वीटर म इंस्टाग्राम मा।
शुभकामना बगरे हवय, पोरा परब के नाम मा।
मन अन्नदाता के हमर, खुश हे किसानी काम मा।
पग-पग खुशी बगरे हवय, सुखदेव धरती धाम मा।
पोरा परब के मान्यता, ज्ञानी गुणी अलखाय हें।
शुभ पोर आ गे धान मा, ये जान सब हर्षाय हें।
पूजा अरज आराधना, फर फूल दाना पाय बर।
कातिक म सुरहुत्ती परब, दीया जला परघाय बर।
मौसम करे हावय मदद, बादर कृपा बरसाय हे।
बइला किसानी काम मा, सहयोग देवत आय हे।
आशीष देये हें गजब, सब ग्राम देवी-देव मन।
परगट पँदोली दे हवयँ, दिन-रात पुरखा नेव मन।
अंतस म उपकृत भाव हे, उपकार बर आभार हे।
घर मा किसानन के हमर, पोरा परब त्यौहार हे।
अँगना म नोनी लछमनी, शुभ चउँक पूरत हे सुघर।
अँगना दुवारी गाँव के, सुमता म जूरत हे सुघर।
चीला सुहाँरी ठेठरी, खुरमी जलेबी तसमई।
नुनहा सलौनी पापड़ी, गुरहा कलेवा हे कई।
पहुना-सगा जेवाँय बर, पकवान चरिहा भर चुरे।
लइका बिसावय जा तभो, ठेला म नड्डा कुरकुरे।
कोठा म बइला गाय मन, काँदी चरे पगुरात हें।
पर सच यहू गोवंश कुछ, नित रोड़ मा रेतात हें।
बइला ल माटी के सुघर, नाती-बुढ़ा सम्हरात हें।
पोरा परब के नेंग मा, हुम-धूप दे जेवात हें।
भादो अँजोरी तीज के, काबर न हम चर्चा करब।
ए दिन मना तीजा परब, छत्तीसगढ़ करथे गरब।
शाहर नगर अउ गाँव मा, तीजा परब के नाँव मा।
बिटियन तनिक धिरतात हें, माहुर लगा के पाँव मा।
खा के करू मन हे हरू, मन मा मनोरथ मीठ बड़।
चूरी अमर राहय सदा, पग-पग डगर भर डीठ बड़।
तीजा कठिन व्रत निर्जला, मइके कथे संस्कार ए।
कहिथे कलम सुखदेव के, पबरित मया ए प्यार ए।
तीजा महातम का कही, हे लोक मा लाखों कथा।
तीजा तिजउरी मा अपन, कुछ सुख धरे कुछ दुख-व्यथा।
मइके नता परिवार बर, घर-द्वार खेती-खार बर।
मन मा उपसहिन के सदा, भलमनशुभा संसार बर।
▪️सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"
[9/14, 2:53 PM] बोधन जी: *तीजा-पोरा - शंकर छंद*
बच्छर दिन के तीजा-पोरा,बने रीत सुहाय।
देखौ बहिनी घर भइया हा,तीज ले बर जाय।।
दाई बाबू के घर आ के,जम्मो सुख ल पाय।
सखी सहेली संग बिताके,बूड़ मया म जाय।।
अपन धनी बर ब्रत ला करथे,आय तीज तिहार।
शिव शंकर के पूजा करके,देखै पति निहार।।
नवा-नवा लुगरा ला पाथे, भइया के दुलार।
अइसन मया बँधाये दीदी,नइ छूँटै दुवार।।
फरहारी तीजा के करथे,मही कढ़ही खाय।
रंग-रंग के हवै मिठाई,खुरमी हा सुहाय।।
घर-घर जावै मया बढ़ावै,तिजहारी कहाय।
हँसी खुशी घर लहुटत जावै,मन बड़े सुख पाय।।
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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