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Friday, September 1, 2023

विषय-रखिया बरी




विषय-रखिया बरी


रखिया बरी


 कमलेश प्रसाद शरमाबाबू: कुंडलियाँ - छंद 

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रखिया राखव लान के, संग उरिद के दार |

बरी बनावव तान के, खावव सब परिवार ||

खावव सब परिवार, बिकट के मन ला भाथे |

रँधनी खोली राँध, तभो ले  बड़ ममहाथे ||

छेवरनिन के साग, हवय तैं खा ले सुखिया |

बिकट पुष्टई जान, बरी मा सब ले रखिया ||


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

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रखिया बरी(हरिगीतिका छंद)



रखिया बरी बड़ स्वाद के खा ले सखा मन भर तहूँ।

भिनसार ले खाये कमाए बर निकल जाबे कहूँ।।


रखिया उरिद के संग मा लगथे बने निच्चट फरी।

दूनो मिला के फेंट अउ तँय खोंट ले सुग्घर बरी।।


मुनगा बरी के साग हा बड़ फायदा तन बर बने।

आलू मिलाके राँध ले खा ले सखा मन भर बने।।


सुग्घर अदौरी ये बरी तँय राँध चिंगरी डार के।

बड़ स्वाद मिलथे खाय मा खा ले बने चटकार के।।


रचनाकार-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *कुण्डलिया छंद(रखिया बरी)~ विरेन्द्र कुमार साहू*


आवय गा रखिया बरी, छत्तीसगढ़ के खोज।

जब मर्जी तब राँधले, सुग्घर पौष्टिक भोज।।

सुग्घर पौष्टिक भोज, पचे म सबले बढ़िया।

तेखर सेती खाय, राँध दाई सेवरिया। 

जतन करव जी खास, बरी हड़िया मा राहय।

 फट बेवस्था होय, सगा पहुना जब आवय।।

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 छंद गीत- *रखिया बरी*


रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।

जीभ लमा के खावय भइया, मारत जी चटकार।।


भरे विटामिन आनी बानी, भरे वसा प्रोटीन।

पाय सुवाद बरी रखिया के, रहिथें सब शौकीन।।

भारी महँगाई ला धर के, बिकथे हाट बजार।।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।1


आलू मुनगा के सँगवारी, डार टमाटर लाल।

नून मसाला धनिया पत्ती, हरदी करय कमाल।।

डार चरोहन फिर चूरन दे, बढ़िया डबका मार।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।2


का गरीब अउ का अमीर जी, खावँय धरे सुवाद।

एक बार के खाये ले फिर, सदा करँय फरियाद।।

चाव लगा के खाथे बढ़िया, गजानंद हर बार।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।3


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/08/2023

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हरिगीतिका छन्द


रखिया बरी


रखिया बरी रखिया बरी, बड़ स्वाद गुण तैंहर धरे। 

प्रोटीन पुष्टई सब मिले, हर तार मा हे रस भरे।। 

आरुग बने मिंझरा बने, नइ स्वाद मा कोनो कमी। 

राजा सरीखे साग मा, तब ले हवय भीतर नमी।। 


आशा देशमुख

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चौपई/जयकारी छंद----- रखिया बरी 


उरिद दार मा रखिया डार ।

सबो बनावव मिल परिवार ।।

बाढ़े जब सब्जी के दाम ।

तभे बरी हा आवय काम ।।


बरी बनावव रखिया लान ।

हे सब्जी मा येखर शान ।।

छेवरनिन ला अब्बड़ भाय ।

उपराहा जी भात खवाय ।। 


राँधव आलू मुनगा डार ।

सुग्घर झट ले भूँज बघार ।।

सबके ये हा मन ललचाय ।

बरी अदौरी मान बढ़ाय ।।


बड़े-बड़े अउ गोल मटोल ।

हावय भारी येखर मोल ।।

बेंचावय गा हाट बजार ।

ले आवव सब छाँट निमार ।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

मो.नं.- 8966095681

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 सूर्यकांत गुप्ता 


*मुनगा आलू सँग कका, रखिया बरी मिठाय।*

*हमर ममादाई इही, हरदम राँध खवाय।।*

भाई हो चउमास मा,मिलय न कउनो साग।*

*जेकर घर रखिया बरी, ओकर जागय भाग।।*


सूर्यकान्त गुप्ता...

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(घनाक्षरी)


*रखिया बरी के सुरता....*

*रखिया के आनी बानी बरी तो बनावै नानी,* 

*सुरता करत हँवँव बीते बचपन के।*

*फेंटै पीठी मरे जियो डार रखिया के करी,* 

*रहय समरपन तन मन धन के।।*

*एके के कमाई मा जी पुरै नहीं सउख कथौं*

*घूमे फिरे नाचे गाए बर बन ठन के।*

*समे मिल पावै नहीं, बरी ओ बनावै नहीं*

*धरे हँवँव भाई भइगे सुरता जतन के।।*

सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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: सृजन शब्द:-- *रखिया बरी*


रखिया लानय पोठ के, मिल के सबो करोय।

बोरे दार उरीद ला, पिठी बनाके धोय।।

पिठी बनाके धोय, बिजौरी घलो बनावय।

तीली भूॅंजे देख, देख मन ललचावय।।

पर्रा सुपा दसाय,  बनावय खोंटय सखिया।

सुरता आथे पोठ, बरी अब तोरे रखिया।।


भाॅंटा आलू संग मा, रखिया बरी सुहाय।

मुनगा सुघर सुवाद ला, भारी गजब बढ़ाय।।

भारी गजब बढ़ाय, खाव जी सरपट सइया।

छोटू नोनी मॉंग, मॉंग के खाये भइया।।

पुरे पुरौती पूर, करे तब दाई बाॅंटा।

मुनगा आलू डार, बरी रखिया अउ भॉंटा।।

मनोज वर्मा

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: रखिया बरी

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(दोहा )


रखिया ला सुग्घर करो,पीठा उरिद मिंझार।

खटिया मा दसना दसा, बरी खोंट के डार।।


 जड़काला के घाम मा,दाई बरी बनाय।

बड़की भउजी हा ललक,वोकर हाथ बँटाय।।


बनथे जी रखिया बरी,छत्तीसगढ़ मा खास।

जोखा करके राखथे,अभो सियनहिन सास।।


पहुना बर रखिया बरी, मान गउन के साग।

समधी के मन बोधथे,धरे मया के पाग।।


होथे ये बड पुष्टई,बिकट मिठाथे झोर।

सरपट सइया तीर ले, पाँचो अँगरी बोर।।


मुनगा सँग मा राँध के, लइकोरी हा खाय।

बाढ़ै अमरित दूध हा, पी लइका  फुन्नाय।।


भूँख बढ़ाथे ये बरी, गर्मी पेट जनाय।

गठिया के रोगी कभू,जादा कन झन खाय।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 **बन जाथौं मैं जीभ के, सबले बड़का दास।*

*खा लेथौं रखिया बरी, मान साग ए खास।।*

*मान साग ए खास, भुला जाथौं जी गठिया।*

*रहिथे एके आस, सजय एकर से टठिया।।*

*चूकौं नहीं मितान, झोरथौं जब जब पाथौं।*

*सबले बड़का दास,  जीभ के मैं बन जाथौं।।*

सूर्यकांत गुप्ता

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कुंडलिया छंद 

रखिया बरी


रखिया बने करोय के,पीठी देव मिलाय।

फेंटव फूलत ले बने,तब वो गजब मिठाय।।

तब वो गजब मिठाय,दिखे चकचक ले उज्जर।

बदली मा करियाय,दिखे वो करिया जब्बर।

बिगड़े लगे सुवाद,बना गरमी मा बढ़िया।

गजब मिठाथे राँध, बरी खावव गा रखिया।।


बारी मा रखिया फरे,कभू बीस दस चार।

बरी बने हर साल गा,पीस उरिद के दार।

पीस उरिद के दार,फेंट के राखौं बढ़िया।

हरियर मेथी ड़ार,काट के हरियर धनिया।

आथे गजब सुवाद,बना थौं करत तियारी।

फरही येहू साल, हमर घर हावे बारी।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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कुलदीप सिन्हा: चौपई ( जयकारी ) छंद

       रखिया बरी

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धर पइसा जी जा बाजार।

ले तुम लानव उरीद दार।

काट ग रखिया देवव फोर।

बाद निकालो गुदा ल कोर।


फेंटव पीठी गंजी लान।

बात मोर जी सुनो मितान।

अब तो वोला डारव खोट।

बनगे रखिया बरी ह पोट।


अब तो वोला धूप दिखाव।

दिन भर सुखही तब लहुटाव।

रोज रोज हे करना काम।

बाद सुखे के कर आराम।


अब तो रांधव उनला साग।

नून मिरी के डारव भाग।

वोला उतार चूरे बाद।

खाये मा जी मिलही स्वाद।


वोखर गुण ला अब सब गाव।

सबो कहूँ ला इही बताव।

खावव रखिया बरी सुजान।

हे नइ रहना जी अनजान।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

 29 / 08 / 2023


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- *रखिया बरी*


रखिया लानय पोठ के, मिल के सबो करोंय।

भींगे दार उरीद ला, छलछल ले सब धोंय।।

छलछल ले सब धोंय, पिठी अउ करी मिलावॅंय। 

फेटें अब्बड़ देर, खोंटके बरी बनावॅंय।

पर्रा सुपा दसाँय, कभू खटिया बरदखिया।

सुरता आथे पोठ, बरी अब तोरे रखिया।।


भाॅंटा आलू संग मा, रखिया बरी सुहाय।

मुनगा सुघर सुवाद ला, भारी गजब बढ़ाय।।

भारी गजब बढ़ाय, खाव जी सरपट सइया।

छोटू नोनी मॉंग, मॉंग के खाये भइया।।

पुरे पुरौती पूर, करे तब दाई बाॅंटा।

मुनगा आलू डार, बरी रखिया अउ भॉंटा।।



मनोज कुमार वर्मा

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, बनसांकरा: शोभन छंद (रखिया बरी)

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ए बरी रखिया सुहावय,तोर गुरतुर स्वाद।

तोर सब्जी खात राहय,मन करय फरियाद।।

साथ मुनगा अउ भटा के,होय संगत तोर।

भात उपराहा खवावय,बड़ मिठावय झोर।।


ए बरी तोरे भरोसा, हे सगा सनमान।

एक कौंरा खाय जेहा ,वो करय गुनगान।।

होय मौसम जाड़ गर्मी ,या जबर बरसात।

साग हरियर नइ मिलय ता,तँय बनाथस बात।।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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