डीजे अउ पंडाल- रोला छंद
जस सेवा के धूम, होत हे कमती अब तो।
सजे हवै पंडाल, डांडिया नाचैं सब तो।।
नवा ओनहा ओढ़, करे हें मेकप भारी।
डी जे के सुन शोर, नँगत झूमैं नर नारी।
मूंदैं आँखी कान, आरती जस सेवा सुन।
भागैं मुँह ला मोड़, सुनत कोनो जुन्ना धुन।
दीया बाती धूप, हूम जग ला जे हीनें।
वोहर थपड़ी पीट, स्टेप गरबा के गीनें।
ना भक्ति ना भाव, दिखावा के दिन आगे।
बड़े लगे ना छोट, सबें देखव अघुवागे।
परम्परा के पाठ, भुलाके बड़ अँटियाये।
फेसन घेंच उठाय, मनुष ला फाँसत जाये।
चुभे जिया ला गीत, कान सुन बड़ झन्नाये।
नइहे होश हवास, उँहें सब हें सिर नाये।
ना मांदर ना ढोल, झोल डी जे मा होवै।
बचे खँचे गुण ज्ञान, दिखावा मा सब खोवै।
नाच गीत संगीत, सबें के बजगे बारा।
संगत सुर संस्कार, सुमत के टुटगे डारा।
कतको हें मतवार, कई हें मजनू लैला।
तन हावै उजराय, भरे हे मन मा मैला।
बइठे देवी देव, बरे बड़ बुगबुग बत्ती।
तभो भक्ति अउ भाव, दिखे नइ एको रत्ती।
मान मनुष इतरायँ, देव ला माटी खड्डा।
मठ मंदिर अउ मंच, मजा के बनगे अड्डा।
डीजे अउ पंडाल, तिहाँ चंडाल हमागे।
मनखे हवैं मतंग, देवता देवी भागे।।
नवा जमाना ताय, चोचला इसने होही।
सबें चीज के स्वाद, धीर धर चुक्ता खोही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
करयँ हाँस के डांडिया, प्रेमा प्रिया प्रमोद।
कहै सुवा ला फालतू, देखत हवस विनोद।
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