सरसी छंद - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
खुमरी
बबा बनाये खुमरी घर मा,काट काट के बाँस।
झिमिर झिमिर जब बरसे पानी,मूड़ मड़ाये हाँस।
ओढ़े खुमरी करे बिसासी,नाँगर बइला फाँद।
खेत खार ला घूमे मन भर,हेरे दूबी काँद।
खुमरी ओढ़े चरवाहा हा, बँसुरी गजब बजाय।
बरदी के सब गाय गरू ला,लानय खार चराय।
छोट मँझोलन बड़का खुमरी,कई किसम के होय।
पानी बादर के दिन मा सब,ओढ़े काम सिधोय।
धीरे धीरे कम होवत हे,खुमरी के अब माँग।
रेनकोट सब पहिरे घूमे, कोनो छत्ता टाँग।
खुमरी मोरा के दिन गय अब,होवत हे बस बात।
खुमरी मोरा मा असाड़ के,कटे नहीं दिन रात।
लइका कहाँ अभी के जाने,खुमरी कइसन आय।
दिखे नहीं अब कोनो मनखे,खुमरी मूड़ चढ़ाय।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
खुमरी
बबा बनाये खुमरी घर मा,काट काट के बाँस।
झिमिर झिमिर जब बरसे पानी,मूड़ मड़ाये हाँस।
ओढ़े खुमरी करे बिसासी,नाँगर बइला फाँद।
खेत खार ला घूमे मन भर,हेरे दूबी काँद।
खुमरी ओढ़े चरवाहा हा, बँसुरी गजब बजाय।
बरदी के सब गाय गरू ला,लानय खार चराय।
छोट मँझोलन बड़का खुमरी,कई किसम के होय।
पानी बादर के दिन मा सब,ओढ़े काम सिधोय।
धीरे धीरे कम होवत हे,खुमरी के अब माँग।
रेनकोट सब पहिरे घूमे, कोनो छत्ता टाँग।
खुमरी मोरा के दिन गय अब,होवत हे बस बात।
खुमरी मोरा मा असाड़ के,कटे नहीं दिन रात।
लइका कहाँ अभी के जाने,खुमरी कइसन आय।
दिखे नहीं अब कोनो मनखे,खुमरी मूड़ चढ़ाय।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सादर पायलागी गुरुदेव
ReplyDeleteसुंदर हावय सरसी खुमरी,जितेंद्र!
ReplyDeleteसादर पायलागी दीदी
Deleteसदा खुश रहो !
Deleteबहुत बढ़िया जितेंन्द्र भाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर खुमरी के वर्णन सर
ReplyDeleteशानदार सरसी।
ReplyDeleteखुमरी विषय मा लाजवाब सरसी छन्द ,भैयाजी।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteवाह वाह वाह....
ReplyDeleteवाह वाह वाह....
ReplyDeleteसुघ्घर सरसी छंद वर्मा जी
ReplyDeleteबधाई
अब्बड़ सुग्घर सरसी छंद भइया जी 🙏🙏
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