1- गँवई गाँव
बर पीपर के जुड़हा छाँव।
खूब सुहाये गँवई गाँव।।
सुघ्घर मया पिरित के गोठ।
खा रोटी अंगाकर रोठ।।
हरियर हरियर खेती खार।
नदियाँ नरवा छलके धार।।
राहर गेहूँ तिवरा धान।
कोदो चना बढ़ावत मान।।
पंथी सुवा ददरिया गीत।
बाँधे बँधना आपस मीत।।
मड़ई मेला हाट बजार।
राउत नाचे दोहा पार।।
गाँव गुड़ी होवे चौपाल।
बात सियनहा लेंय सँभाल।।
छोट बड़े के होथे सम्मान।
मैं हा करँव गाँव गुणगान।।
धन्य धन्य हे गाँव किसान।
जेकर से हेे देश महान।।
जग के तैं हा पालनहार।
बंदन तोला बारंबार।।
2- मचोली
चार खुरा अउ पाटी चार,
बमरी कउहा लकड़ी सार।
बीच म डोरी बेनी पार,
मिलके बने मचोली यार।।
गाँव गँवई के खुरसी जान,
बइठ मचोली मिटय थकान।
बइला आँखी सुघर गथान,
कासी डोरी बरय सियान।।
जब जब पहुना घर मा आय,
निकले अँगना गजब सुहाय।
गाँव कहाँ जी सोफ़ा दीवान,
थोकुन बइठ बढ़ा दे मान।।
शहरी जिनगी थोकुन छोड़,
गाँव तरफ भी नाता जोड़।
बड़ सुघ्घर हे गँवई रीत,
देथे भाई चारा मीत।।
3- सतनामी के का पहिचान
सतनामी के का पहिचान।
सादा झंडा श्वेत निशान।।
सुमता के हे का परमान।
बालक गुरु के हे बलिदान।।
डारा लमगे लोरी लोर।
लेवव संगी बइहाँ जोर।।
लावव मिलके नवा बिहान।
रखना हे पुरखा के मान।।
सत के महिमा अपरंपार।
घासी गुरु के कहना सार।।
मनखे मनखे एक समान।
सबो धरम के कर सम्मान।।
जपले जिनगी मा सतनाम।
बनही तोरे बिगड़े काम।।
समझे जे जिनगी के दाम।
लेथे वो सत ला जी थाम।।
माघ पंचमी मेला जाव।
गुरु बाबा के दर्शन पाव।।
सुन लेबे गुरु के संदेश।
मिट जाही जी मन के क्लेश।।
4- छत्तीसगढ़ नारी गहना
नारी गहना हवे अपार,
आठो अंग दिखे भरमार।
सोना चाँदी के सिंगार,
जेकर बरनन हे बिस्तार।।
माथ म मोतीमाला यार,
नाक म फुल्ली नथ सिंगार।
कान म खिनवा झुमका झूल,
पहिने ढार करन के फूल।।
गर मा जी नौलख्खाहार,
रुपियामाला पुतरी डार।।
सूता तिलरी सुण्डरा हार,
देखव भइया आँख निहार।।
हाथ म ऐंठी कंगन चार,
बाँह म बहुटा चाँद अकार।
कमर करधनी लपटा मार,
पाँव म पैरी के झंकार।।
बिछिया चाँदी गजब सुहाय,
मुँदरी सोना अँगरी भाय।
छत्तीसगढ़ी गहना ताय,
कवि गजानंद राय बताय।।
5- वर्ण विस्तार
मनु वर्ण बनाये तैं चार,
जेकर बरनन हे बिस्तार।
आवव सुनलौ मोर बिचार,
अँधरा मन के खुलय दुवार।।
बाम्हन चिन्हा माथ बताय,
माथा लागी कोन कहाय।
बाम्हन के सिर होतिस चार,
बहतिस अंग दूध के धार।।
क्षत्री चिन्हा भुजा बताय,
छै ठा बाजू कहाँ लुकाय।
रण म लड़त हे असली कोन,
देख सबो बइठे हौ मौन।।
बनिया चिन्हा पेट बताय,
काबर बड़का नही बनाय।
दिन रात सुबह अउ शाम,
पेट कहय खाली हे राम।।
चिन्हा शुद्र बताये गोड़,
दुनिया ला जे देवय जोड़।
जात पात के पाटय खान।
मनखे मनखे एक समान।।
रचनाकार - इंजी.गजानंद पात्रे बिलासपुर (छ.ग.)
बहुँत बहुँत बधाई सर जी... बहुँत बढ़िया
ReplyDeleteबहुँत बहुँत बधाई सर जी... बहुँत बढ़िया
ReplyDeleteआव गजानन हमरो द्वार, पहिराबो गजमुक्ता हार ।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर चौपई छंद ,पात्रे भैया।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteवाहःहः पात्रे भाई जतका तारीफ करंव कम लागत हे भाई
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर छंद
बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना भईया चौपाई छंद मा बधाई हो।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना सर जी।
ReplyDeleteनाना बरन चौपई तोर।
ReplyDeleteखोलिस दूनो आँखी मोर।
बात बने बोले तँय सार।
जात पात अंतर बेकार।।
आवव साहित जोत जगाव।
अंतस मा उजियारा लाव।।
करय सूर बिनती बस एक।
करन काज हम नेक अनेक।।
बढ़िया चौपई भाई...
जय जोहार...।