1,,उल्टा बुद्धि
धरा म खड़े मनखे मन देखव हाथ लमाय अगास हवै।
करै मन के धन मा तन के बल बुद्धि घलो सब नास हवै।
रुतोवय नीर जरा ग जिया बगरा अँधियार गियास हवै।
कहाँ करथे सत काम कभू रुपिया पइसा बस खास हवै।
2,,करजा म किसान
किसान के भाग पिसान नही अँटियावत हे ठलहा मन हा।
लदे करजा पथना ग सहीं सिर मा बरसे दुख के घन हा।
अँकाल दुकाल करे बदहाल टुटे कठवा कस गा तन हा।
बियापत हे घर हा बन हा ग अतेक कहाँ दुख दे रन हा।
3,,कड़ही
चना के पिसान लगार रहे कड़ही तब तो ग मिठाय बने।
सियान घलो लइका मन संग ग खेवन खेवन खाय बने।
दहीं ग महीं अमचूर कहीं चिट राँध जिया ललचाय बने।
चुरे जब अम्मट मा मखना तब आगर पेट खवाय बने।
4,,कुकरी पूजै साग बर
लगे नित देख तिहार बरोबर राँध ग खावत हे कुकरी।
सगा अउ सोदर हा घर आय त मान बढ़ावत हे कुकरी।
सुवाद कहाँ अब साग ग दार म रोज ग दावत हे कुकरी।
अहार बने मनखे मनके दिन रात पुजावत हे कुकरी।
5,,वाह रे मनखे
बुता अउ काम के कारण देख मसीन बने मनखे मनहा।
बिता भर पेट के खातिर बाजय बीन बने मनखे मनहा।
रहे नित मीत मया जल के बिन मीन बने मनखे मनहा।
तभो गुणवान कहावत हे गुणहीन बने मनखे मनहा।
6,,उल्टा जमाना
हवे पहरा घर चोर के देखव माल गुजार ग जागत हे।
बने मनखे मन हे बइठे लुलवा लँगड़ा मन भागत हे।
चले नइ जाँगर तेखर गा करजा कमिया मन लागत हे।
सबे जग देख उड़े ग हँसी सिधवा मनके अब का गत हे।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा",खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
धरा म खड़े मनखे मन देखव हाथ लमाय अगास हवै।
करै मन के धन मा तन के बल बुद्धि घलो सब नास हवै।
रुतोवय नीर जरा ग जिया बगरा अँधियार गियास हवै।
कहाँ करथे सत काम कभू रुपिया पइसा बस खास हवै।
2,,करजा म किसान
किसान के भाग पिसान नही अँटियावत हे ठलहा मन हा।
लदे करजा पथना ग सहीं सिर मा बरसे दुख के घन हा।
अँकाल दुकाल करे बदहाल टुटे कठवा कस गा तन हा।
बियापत हे घर हा बन हा ग अतेक कहाँ दुख दे रन हा।
3,,कड़ही
चना के पिसान लगार रहे कड़ही तब तो ग मिठाय बने।
सियान घलो लइका मन संग ग खेवन खेवन खाय बने।
दहीं ग महीं अमचूर कहीं चिट राँध जिया ललचाय बने।
चुरे जब अम्मट मा मखना तब आगर पेट खवाय बने।
4,,कुकरी पूजै साग बर
लगे नित देख तिहार बरोबर राँध ग खावत हे कुकरी।
सगा अउ सोदर हा घर आय त मान बढ़ावत हे कुकरी।
सुवाद कहाँ अब साग ग दार म रोज ग दावत हे कुकरी।
अहार बने मनखे मनके दिन रात पुजावत हे कुकरी।
5,,वाह रे मनखे
बुता अउ काम के कारण देख मसीन बने मनखे मनहा।
बिता भर पेट के खातिर बाजय बीन बने मनखे मनहा।
रहे नित मीत मया जल के बिन मीन बने मनखे मनहा।
तभो गुणवान कहावत हे गुणहीन बने मनखे मनहा।
6,,उल्टा जमाना
हवे पहरा घर चोर के देखव माल गुजार ग जागत हे।
बने मनखे मन हे बइठे लुलवा लँगड़ा मन भागत हे।
चले नइ जाँगर तेखर गा करजा कमिया मन लागत हे।
सबे जग देख उड़े ग हँसी सिधवा मनके अब का गत हे।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा",खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
वाह वर्मा जी बहुत सुन्दर सुमुखी सवैया
ReplyDeleteबेहतरीन छंद रचना हे, जितेन्द्र, बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़ियाँ सुमुखी सवैया जितेन्द्र भाई बधाई हो बहुत बहुत
ReplyDeleteवाह्ह अब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण सुमुखी सवैया छंद भइया लाजावाब
ReplyDeleteबधाई हो जितेन्द्र भईया जी
ReplyDeleteबधाई हो जितेन्द्र भईया जी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रचना करे हव वर्मा भाई।
ReplyDeleteबधाई।
बहुत सुग्घर अउ लाजवाब सुमुखी सवैया के सृजन। बधाई हो भैया जी।
ReplyDeleteपरम् पूज्य गुरूदेव के पइयां परत आप सबो ल सादर धन्यवाद।सादर नमन
ReplyDeleteवाहःहः जितेंन्द्र भाई
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक विषय चयन करें हव।
वाह्ह्हब्वाह्ह्ह् लाजवाब सर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्हब्वाह्ह्ह् लाजवाब सर।सादर बधाई
ReplyDeleteअड़बड़ सुघर सवैया "खैरझिटिया" सर सादर बधाई।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर सवैया भइया जी,
ReplyDeleteबड़ सुग्घर सवैया भइया जी,
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