(1) विनत भाव - गुरु पौंरी मा
आभार मानौं गुरू आपके मैं दिये ज्ञान जोती अँधेरा मिटायेव ।
संसार के सार निस्सार जम्मो कते फूल काँटा सबो ला बतायेव।
रद्दा ल रोके जमाना तभो ले हवा शीत आँधी म दीया जलायेव।
माथा नवावौं गुरू पाँव मा मैं छुपे जोगनी ला चँदैनी बनायेव ।
(2) काली कमाई -
कारी कमाई करे जेन भारी करे हाँथ काला डुबावै घलो नाम।
चुप्पे हवे नाम हल्ला मचावै इहाँ लोभ के भीतरी मा करे काम।
कर्जा छुटावै नही ये कभू तोर चाहे लहू खून चाहे बिके चाम।
रोटी मिले दू चले जिंदगानी करो आसरा जी सबो के हवे राम।
(3) ममा भांचा
भाँचा ममा हा चढ़े एक डोंगा तभे बीच धारे ग डोंगा गये डूब।
तैहा कहानी बने आज सित्तो सियानी गियानी करे गोठ हे खूब।
पानी चढ़े मूड़ के ऊपरे मार धारी उलाचा तभो बाँचगे दूब।
किस्सा इही रोज होवै अभी तो कहे मा सुने मा ग भारी लगै ऊब ।
(4) होरी -
होरी घलो आ गए तीर संगी बजावौ नगाड़ा रचौ गीत गा फाग ।
गावौ सुनावौ मया मीठ बोली सनाये रहे जी बने छंद के राग ।
मेटौ मिटावौ सबो बैर के भाव हाँसी ख़ुशी चाशनी के रहे पाग।
खेलौ सबो संग रंगे गुलाले मया मान राखौ ग रिश्ता नता लाग।
(5) होली के आनन्द -
होली मनाये सबो आज ऐसे कभू ये ल कोनो भुलाये नही जाय।
पीये रहे छंद के भंग जम्मो मजा ला मया के बताये नही जाय।
छाये सनाये रँगे प्रेम जम्मो अऊ दूसरा रंग लगाये नही जाय।
हाँसी खुसी मान आनन्द ऐसे भरे आज झोली समाये नही जाय।
रचनाकार - श्रीमती आशा देशमुख
एन टी पी सी, कोरबा, छत्तीसगढ़
आभार मानौं गुरू आपके मैं दिये ज्ञान जोती अँधेरा मिटायेव ।
संसार के सार निस्सार जम्मो कते फूल काँटा सबो ला बतायेव।
रद्दा ल रोके जमाना तभो ले हवा शीत आँधी म दीया जलायेव।
माथा नवावौं गुरू पाँव मा मैं छुपे जोगनी ला चँदैनी बनायेव ।
(2) काली कमाई -
कारी कमाई करे जेन भारी करे हाँथ काला डुबावै घलो नाम।
चुप्पे हवे नाम हल्ला मचावै इहाँ लोभ के भीतरी मा करे काम।
कर्जा छुटावै नही ये कभू तोर चाहे लहू खून चाहे बिके चाम।
रोटी मिले दू चले जिंदगानी करो आसरा जी सबो के हवे राम।
(3) ममा भांचा
भाँचा ममा हा चढ़े एक डोंगा तभे बीच धारे ग डोंगा गये डूब।
तैहा कहानी बने आज सित्तो सियानी गियानी करे गोठ हे खूब।
पानी चढ़े मूड़ के ऊपरे मार धारी उलाचा तभो बाँचगे दूब।
किस्सा इही रोज होवै अभी तो कहे मा सुने मा ग भारी लगै ऊब ।
(4) होरी -
होरी घलो आ गए तीर संगी बजावौ नगाड़ा रचौ गीत गा फाग ।
गावौ सुनावौ मया मीठ बोली सनाये रहे जी बने छंद के राग ।
मेटौ मिटावौ सबो बैर के भाव हाँसी ख़ुशी चाशनी के रहे पाग।
खेलौ सबो संग रंगे गुलाले मया मान राखौ ग रिश्ता नता लाग।
(5) होली के आनन्द -
होली मनाये सबो आज ऐसे कभू ये ल कोनो भुलाये नही जाय।
पीये रहे छंद के भंग जम्मो मजा ला मया के बताये नही जाय।
छाये सनाये रँगे प्रेम जम्मो अऊ दूसरा रंग लगाये नही जाय।
हाँसी खुसी मान आनन्द ऐसे भरे आज झोली समाये नही जाय।
रचनाकार - श्रीमती आशा देशमुख
एन टी पी सी, कोरबा, छत्तीसगढ़
वाह वाह ! बड़ सुग्घर रचना करे हव् दीदी।आभार सवैया मा गुरु के आभार हमर सब साधक मन के, मन के बात समाय हे।
ReplyDeleteबधाई।
सुग्घर सवैया दीदी
ReplyDeleteसुग्घर सवैया दीदी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सवैया दीदी जी.... बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सवैया दीदी जी.... बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteअलगअलग विषय सुग्घर आभार सवैया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दीदी।गढ़ाये भाव म,सुघ्घर सवैया
ReplyDeleteवाह वाह, बेहतरीन आभार सवैया। सादर बधाई दीदी।
ReplyDeleteआभार सवैया बर बहुत बहुत आभार हे आशा। बहुत बढिया लिखे हस।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आभार सवैया हे दीदी।।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आभार सवैया हे दीदी।।
ReplyDeleteवाह्ह् वाह्ह दीदी आपके लेखनी के का प्रसंशा करे जाय।
ReplyDeleteलाजवाब।सादर नमन।
बहुत सुग्घर रचना दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteआभार सवैया के बड़ सुग्घर पाँच विषय मा पाँच रूप
ReplyDeleteआभार सवैया के बड़ सुग्घर पाँच विषय मा पाँच रूप
ReplyDeleteवाह वाह शानदार आभार सवैया।
ReplyDeleteवाह वाह शानदार आभार सवैया।
ReplyDeleteआभार सवैया के सुघ्घर रचना आशा देशमुख बहिनी बधाई हो
ReplyDeleteसबो भाई बहिनी मन ला सादर आभार
ReplyDeleteअड़बड़ सुग्घर कहेव
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया दीदी। बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना दीदी जी बधाई हो ।
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