(1)
तैं हरि चरन मा मन लगा,ये पाप रद्दा छोंड़ के।
मिलही खुशी बड़ देख ले,प्रभु ले नता ला जोड़ के।
झन बूड़ संगी झूठ मा,तैं फँस जबे मँझधार मा।
ये फोकला मा झन भुला,रम जा बने गा सार मा।
(2)
ऊँचा महल दौलत नँगत,नइ थोरको ये काम के।
भागे गजब धन पाय बर,पीछू दँउड़ तैं राम के।
चक्कर परे मा मोह के,नइ होय बेंड़ा पार गा।
बेरा रहत करले जतन,झन कर समे बेकार गा।
(3)
अंतस भरे इरखा कपट,दुरगुन सबो ला त्याग गा।
करले करम सच हा फलै,काबर सुते हच जाग गा।
जी झन अपन बर तैं कभू,करले बुता उपकार के।
पाबे मया अइसन करे,अासीस मिलही चार के।
रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"
ग्राम कचलोन (सिमगा) छत्तीसगढ़
तैं हरि चरन मा मन लगा,ये पाप रद्दा छोंड़ के।
मिलही खुशी बड़ देख ले,प्रभु ले नता ला जोड़ के।
झन बूड़ संगी झूठ मा,तैं फँस जबे मँझधार मा।
ये फोकला मा झन भुला,रम जा बने गा सार मा।
(2)
ऊँचा महल दौलत नँगत,नइ थोरको ये काम के।
भागे गजब धन पाय बर,पीछू दँउड़ तैं राम के।
चक्कर परे मा मोह के,नइ होय बेंड़ा पार गा।
बेरा रहत करले जतन,झन कर समे बेकार गा।
(3)
अंतस भरे इरखा कपट,दुरगुन सबो ला त्याग गा।
करले करम सच हा फलै,काबर सुते हच जाग गा।
जी झन अपन बर तैं कभू,करले बुता उपकार के।
पाबे मया अइसन करे,अासीस मिलही चार के।
रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"
ग्राम कचलोन (सिमगा) छत्तीसगढ़
बहुत सुग्हर छंद, मनीराम।
ReplyDeleteमनी भाई के सुग्घर हरिगीतिका छन्द ।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुग्घर हरिगीतिका मितान जी
ReplyDeleteसुग्घर हरिगीतिका मितान जी
ReplyDeleteआप सब ला बहुत बहुत धन्यवाद आभार
ReplyDeleteवाह्ह्ह वाह्ह् अति सुन्दर हरिगीतिका के सृजन "मितान" सर।
ReplyDeleteवाह वाह सर जी अति सुघ्घर
ReplyDeleteमनी भाई बहुत सुघ्घर हरिगीतिका आप ल बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह वाह बेहतरीन हरिगीतिका छंद के सृजन करे हव "मितान "भैया जी। बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteशानदार रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteशानदार रचना सर।सादर बधाई
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