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Wednesday, April 29, 2020

रोला छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

रोला छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

दारू झन पी यार, फेर पाछू पछताबे।
जिनगी के दिन चार, कहाँ तँय येला पाबे।।
माँसाहार तियाग, तहाँ ले जिनगी बड़ही।
सुख पाबे भरमार, इही हा मंगल करही।।

होत पलायन रोक, जाय झन कोनो बाहिर।
सब ला इहें सरेख, सबोझन हावय माहिर।।
इहें करँय सब काम, भले दू पइसा पावँय।
सुखी रहे परिवार, संग मा पीवँय खावँय।।

चिंता हे बेकार, करव झन फोकट भारी।
सब ला इही सताय, इही जड़ हे बीमारी।।
एला जउन भगाय, उही हा सब ले सुखिया।
कर ले सब ले प्रेम, नहीं ते बनबे दुखिया।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
 जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्र. - ९३००७१६७४०

11 comments:

  1. सुग्घर संदेशपरक रोला छंद हे,बधाई हो

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  2. बहुत सुंदर सृजन बधाउ

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  3. बहुत सुग्घर अशोक जी बधाई हो

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

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  5. गुरुदेव श्री निगम जी ल सादर प्रणाम

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  6. गुरु जी जितेन्द्र वर्मा खैरझिटिया जी ल बहुत बहुत धन्यवाद जेकर द्वारा ये संभव होवत हे

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