आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती असन गा, रिहिस देश के बेटी एक।
अपन राज बर जेहा सुग्घर, करिन हवय जी काम अनेक।।
जे कालिंजर के राजा के, एक रिहिन हे गा संतान।
आघू जाके जेन बनिस हे, रानी दुर्गावती महान।।
जनमिस हे जे आठे के दिन, पड़िस हवय तब दुर्गा नाम।
अपन अलग पहिचान बनाइन, सुग्घर-सुग्घर करके काम।।
रिहिस साहसी बचपन ले जी, बोलय ओला गुण के खान।
राज महोबा के बेटी हा, गजब चलावय तीर कमान।।
धरे रहय बंदूक हाथ मा, चितवा के ओ करे शिकार।
अइसे ओ तलवार घुमावय, क्षण मा देतिस बैरी मार।।
बढ़े बाढ़हिस दुर्गा हा तब, ददा करिस हे उँखर विवाह।
राज गोंड़वाना के राजा, जीवन संगी दलपत शाह।।
सरग सिधारिन उनकर पति तब, दुख के टूटिस हवय पहाड़।
हँसी-खुशी सब गायब होगे, जिनगी होगे सुक्खा झाड़।।
राजपाट के रानी दुर्गा, थामिस हावय तहाँ कमान।
घात बढाइस आघू जाके, राज गोंड़वाना के शान।।
अबला नारी जान करिस हे, अउ राजा मन जब परसान।
मजा चखाये बर उँन मन ला, रानी दुर्गा लिस हे ठान।।
अकबर भेजिस आसफ खाँ ला, हड़पे बर रानी के राज।
बैरी ऊपर रणचंडी हा, टूट पड़िस हे बनके गाज।।
पहिली लड़ई मा आसफ के, सेना गिस हे भइया हार।
जघा-जघा अब्बड़ होइस हे, रानी दुर्गा के जयकार।।
घोड़ा मा बइठे रानी हा, भाँजय बड़ सुग्घर तलवार।
बैरी मुगलन मन के भइया, घात करय गा उन संहार।।
एक बार मा मुँड़ दस-दस के, खड़ग चला उन देवय काट।
कायर मुगलन सैनिक मन के, लाश ह पहुँचय मुर्दा घाट।।
धूल चटाइन मुगलन मन ला, उँखर दिखाइस जी औकात।
रानी दुर्गा के सेना ला, मिलिस जीत के तब सौगात।।
हारिस ता आसफ हा चिढ़गे, बदला लेबर आइस फेर।
दुर्गा के कमती सेना ला, ओकर सेना लिस हे घेर।।
पुरुष वेश धरके रानी हा, युद्ध लड़ेबर लिस हे ठान।
हार कभू नइ मानव सोचिस, भले निकल जाए गा प्रान।।
आनबान के खातिर भिड़गे, धरके भाला अउ तलवार।
दुर्गा के सेना मुगलन के, मारिस सैनिक तीन हजार।।
चालबाज मुगलन मन हा जी, अपन दिखादिस हे औकात।
दुगुना तिगुना उनकर सेना, घात मचाइस हे उत्पात।
लुका-लुका के कायर मन हा, रिहिस चलावत भाला तीर।
लड़त-लड़त रानी दुर्गा के, घायल होगे अबड़ शरीर।।
बैरी मनके हाथों मरना, रानी समझिस हे अपमान।
अपन घेंच मा चला कटारी, उन माटी बर दे दिस प्रान।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
विषय - रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती असन गा, रिहिस देश के बेटी एक।
अपन राज बर जेहा सुग्घर, करिन हवय जी काम अनेक।।
जे कालिंजर के राजा के, एक रिहिन हे गा संतान।
आघू जाके जेन बनिस हे, रानी दुर्गावती महान।।
जनमिस हे जे आठे के दिन, पड़िस हवय तब दुर्गा नाम।
अपन अलग पहिचान बनाइन, सुग्घर-सुग्घर करके काम।।
रिहिस साहसी बचपन ले जी, बोलय ओला गुण के खान।
राज महोबा के बेटी हा, गजब चलावय तीर कमान।।
धरे रहय बंदूक हाथ मा, चितवा के ओ करे शिकार।
अइसे ओ तलवार घुमावय, क्षण मा देतिस बैरी मार।।
बढ़े बाढ़हिस दुर्गा हा तब, ददा करिस हे उँखर विवाह।
राज गोंड़वाना के राजा, जीवन संगी दलपत शाह।।
सरग सिधारिन उनकर पति तब, दुख के टूटिस हवय पहाड़।
हँसी-खुशी सब गायब होगे, जिनगी होगे सुक्खा झाड़।।
राजपाट के रानी दुर्गा, थामिस हावय तहाँ कमान।
घात बढाइस आघू जाके, राज गोंड़वाना के शान।।
अबला नारी जान करिस हे, अउ राजा मन जब परसान।
मजा चखाये बर उँन मन ला, रानी दुर्गा लिस हे ठान।।
अकबर भेजिस आसफ खाँ ला, हड़पे बर रानी के राज।
बैरी ऊपर रणचंडी हा, टूट पड़िस हे बनके गाज।।
पहिली लड़ई मा आसफ के, सेना गिस हे भइया हार।
जघा-जघा अब्बड़ होइस हे, रानी दुर्गा के जयकार।।
घोड़ा मा बइठे रानी हा, भाँजय बड़ सुग्घर तलवार।
बैरी मुगलन मन के भइया, घात करय गा उन संहार।।
एक बार मा मुँड़ दस-दस के, खड़ग चला उन देवय काट।
कायर मुगलन सैनिक मन के, लाश ह पहुँचय मुर्दा घाट।।
धूल चटाइन मुगलन मन ला, उँखर दिखाइस जी औकात।
रानी दुर्गा के सेना ला, मिलिस जीत के तब सौगात।।
हारिस ता आसफ हा चिढ़गे, बदला लेबर आइस फेर।
दुर्गा के कमती सेना ला, ओकर सेना लिस हे घेर।।
पुरुष वेश धरके रानी हा, युद्ध लड़ेबर लिस हे ठान।
हार कभू नइ मानव सोचिस, भले निकल जाए गा प्रान।।
आनबान के खातिर भिड़गे, धरके भाला अउ तलवार।
दुर्गा के सेना मुगलन के, मारिस सैनिक तीन हजार।।
चालबाज मुगलन मन हा जी, अपन दिखादिस हे औकात।
दुगुना तिगुना उनकर सेना, घात मचाइस हे उत्पात।
लुका-लुका के कायर मन हा, रिहिस चलावत भाला तीर।
लड़त-लड़त रानी दुर्गा के, घायल होगे अबड़ शरीर।।
बैरी मनके हाथों मरना, रानी समझिस हे अपमान।
अपन घेंच मा चला कटारी, उन माटी बर दे दिस प्रान।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
छंद खजाना मा जघा देये बर हार्दिक आभार गुरुदेव
ReplyDeleteवाहह बहुत सुंदर सृजन
Deleteबेहतरीन सर बहुत बधाई
Deleteबहुत सुंदर।रानी दुर्गावती के दे देशप्रेम और शौर्य का ज़िंदा दस्तावेज़ है आपको बधाई इस वृतांत को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने की खातिर।
Deleteजी, हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुँते सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुग्घर सर रचना सर जी। बधाई हो
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सर
Deleteबहुत सुन्दर रचना वाह्ह्ह्ह्ह् गजब
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह्ह्ह् सुग्घर सिरजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुग्घर गाथा! सुग्घर सृजन!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत जबरदस्त हे चंद्राकर जी
ReplyDelete👌👌👌👏👏👍👍🌹🌹
बधाई आप ला
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बहुत बधाई 👌🏼👌🏼🌷🌷🌷
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteलाजवाब क़लमकारी वाह वाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह-वाह
ReplyDeleteरानी दुर्गावती के वीरता के सुग्घर वर्णन चन्द्राकर जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteशानदार छंद सर जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुग्घर सृजन।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteलाजवाब भैया, कमाल
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया सृजन महामने
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन महामने
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