सार छंद-चैत महीना(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
चैत महीना पावन लागे,गमके घर बन डेरा।।
रंग फगुनवा छिटके हावय,चिपके हे सुख आसा।
दया मया के फुलवा फुलगे,भागे दुःख हतासा।
हूम धूप मा महकत हावै,गलियन बाग बसेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
नवा बछर अउ नवराती के,बगरे हवै अँजोरी।
चकवा संसो मा पड़ गेहे,खोजै कहाँ चकोरी।
धरा गगन दूनो चमकत हे,कती लगावै फेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
नवा नवा हरियर लुगरा मा,सजे हवै रुख राई।
गाना गावै जिया लुभाये,सुरुर सुरुर पुरवाई।
साल नीम हा फूल धरे हे,झूलत हे फर केरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
बर बिहाव के लाड़ू ढूलय,ऊलय धरती दर्रा।
घाम तरेरे चुँहै पसीना,चले बँरोड़ा गर्रा।।
बारी बखरी ला राखत हे,बबा चलावत ढेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
चैत महीना पावन लागे,गमके घर बन डेरा।।
रंग फगुनवा छिटके हावय,चिपके हे सुख आसा।
दया मया के फुलवा फुलगे,भागे दुःख हतासा।
हूम धूप मा महकत हावै,गलियन बाग बसेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
नवा बछर अउ नवराती के,बगरे हवै अँजोरी।
चकवा संसो मा पड़ गेहे,खोजै कहाँ चकोरी।
धरा गगन दूनो चमकत हे,कती लगावै फेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
नवा नवा हरियर लुगरा मा,सजे हवै रुख राई।
गाना गावै जिया लुभाये,सुरुर सुरुर पुरवाई।
साल नीम हा फूल धरे हे,झूलत हे फर केरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
बर बिहाव के लाड़ू ढूलय,ऊलय धरती दर्रा।
घाम तरेरे चुँहै पसीना,चले बँरोड़ा गर्रा।।
बारी बखरी ला राखत हे,बबा चलावत ढेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी बधाई हो
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