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Thursday, April 23, 2020

*छंद के छ परिवार डहर ले जन जागरण*

*छंद के छ परिवार डहर ले जन जागरण*


*आल्हा छंद*-आशा देशमुख

ये कोरोना ये कोरोना,काबर तँय दुनिया मा आय।
नाम सुनत हे जेहर तोरे,ओखर पोटा काँपत जाय।

थर थर काँपत हावय जग हा, कइसे सबके प्राण बचाय।
छूत वायरस घूमत हावय,जनता घर मा हवय लुकाय।

ताला लगगिस देश प्रान्त मा, गाँव शहर बइठे चुपचाप।
अतिक मचावत हवच तबाही,जैसे जग ला मिलगे श्राप।

घर मा सब बैठागुँर होगे, काम धाम सब होगय बन्द।
रोजी रोटी मार खात हे,धंधा होगे हावय मंद।

देश प्रशासन जुटे हवय सब,विनती करत हवय सरकार।
विकट आपदा आये हावय,सब झन होगे हे लाचार।

रोग भगाना हे तब सब झन,साथ निभावव रहिके दूर।
कड़ी टूटही तब कोरोना,भागे बर होही मजबूर।

देवदूत कस डॉक्टर मन हें, सेवा करत हवँय दिन रात।
डटे हवँय सब कर्मवीर मन,बिगड़े झन अब तो हालात।

युद्ध महामारी के फइले ,घर मा रहिके जीतव जंग।
देखत हे ये विनाश लीला,यम के दूत हवँय सब दंग।


विकट भयंकर स्थिति आगय ,जनता रहव देश के साथ।
मास्क लगावव रहव सुरक्षित,अउ धोवव जी दिनभर हाथ।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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आल्हा छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

(करव हियाव)

दुनिया के मौसम ला देखत, अब प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाव।
हल्का अउ सादा खाना ला, निसदिन भोजन मा अपनाव।।

खानपान के चेत करे बर , जेकर मन मा आही बोध।
रोग रई ला खुद भगाय बर, तब तन हा करही प्रतिरोध।।

धरना परही नेक नियत ला, गलत सोच नाली मा फेंक।
डगमग झन होवय अंतस हर,बाॅंध छोर के पहिली छेंक।।

रगड़ रगड़ के धोवत माॅंजत, रोग रई ला तुरत भगाव।
बासी के सुरता ला छोड़व, गरम गरम ताजा बस खाव।

वन पहाड़ नदिया नरवा ला, मिलजुल करना परही साफ।
वरना पर्यावरण घलव अब, बिल्कुल नइ कर पाही माफ।।

वजन बढ़े झन घर मा बइठे, करना परही सोच विचार।
मोल मेहनत के बड़ होथे,जिनगी मा चल तहूॅं उतार।।

नख मुड़ ले अपने काया के ,सोवत जागत करव हियाव।
खई खजानी बाहिर वाले, कभू भूल के अब झन खाव।।

ताजा कहिके रोज खात हें, फेर साग मा दवा छिताय।
जान बूझ के परबुधिया कस,पइसा देके रोग बिसाय।।

येती ओती देख ताक के ,साफ सफाई ला पहिचान।
जब उज्जर रहि घर दुवार हर ,तब कर पाबो गरब गुमान।।

छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला-राजनांदगांव

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 आल्हा छंद :- कौशल कुमार साहू

कोरोना

चीन देश ले दुनिया भर मा,कोरोना हा कहर मँचाय।
देख दशा राजा चिंता मा,परजा कइसे जान बँचाय।।

जादू -मंतर नोहय टोना, छूत बिमारी येला जान।
सर्दी सँघरा सुख्खा खाँसी, जर बुखार येकर पहचान।।

सरग सिधारे कतकों मनखे,रोकथाम बर करौ उपाय।
सेनिटाइजर मास्क लगावा,डॉक्टर मन हा रोज बताय।।

साफ- सफाई साबुन मलमल, धोवव हाथ ल बारम्बार।
गला मिलौ झन तीन फीट ले,करौ दूर ले जय जोहार।।

पाँव अपन झन बाहिर राखव,घर मा राखव लइका लोग।
दरवाजा मा खिंचलव रेखा, नइ आवय बरपेली रोग।।

तजौ माँस बन शाकाहारी, झड़कव भोजन ताते-तात।
जुरमिल ठानव जमके मारव,ये रकसा ला लाते-लात।।

गोत धरम नइ पूछय ककरो, कोरोना के नइये जात।
संकट भारी मनखे मनखे, सरपट दँउड़य दिन अउ रात।।

अपन जान ला दाँव लगाके,रोगी मन के करे निदान।
बिपत काल मा संग खड़े हे,डॉक्टर सँउहे जस भगवान।।

हिम्मत राखव धीरज राखव, काहत हे सब ला सरकार।
सुरमा बनके जंग जीत लौ,कोरोना के होवय हार।।

अपन देश ला जिन्दा राखव,देश मया के गावव गीत।
अरज करत हे "कौशल" तुँहरे,बनौ बिपत मा सबके मीत।।

छंदकार :- कौशल कुमार साहू
निवास : सुहेला (फरहदा)
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

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आल्हा  छंद-अश्वनी

जब जब आवय संकट भारी,झट हो जावन सब तैयार|
जब जब फैले हे महमारी,तब तब होये हे तकरार||

जान बचाये खातिर आवव,जनता कर्फ्यू सफल बनाव|
घर भीतर बन रहव सुरक्षित,सेनेटाइज बने कराव|

करे लाकडाउन हे शासन ,जन जन के ये बने बचाव|
अपन देश के खातिर सहिलव,कुछ दिन बर  जी नीत निभाव|

 लगें हवँय तत्पर सेवा बर,फर्ज निभा देवन उत्साह||
झन जावन हम घर ले बाहिर,कोरोना बर सही सलाह||

डाक्टर-पुलिस सफाई अमला,अउ मुखिया के राखव मान|
विपदा आघू कवच बने हे,इमन देश के आवँय शान|

बंद रखें मंदिर गुरुद्वारा,नेक पहल के बड़ सम्मान|
हवय बरोबर हिस्सेदारी,सुखी रहँय मजदूर किसान||

पारा बस्ती राज देश के,जब-जब आवय संकट जान|
सरकारी कारज के पालन,देशहित बर धरव जी ध्यान||

बाढ़य दिन दिन भाईचारा, मनखे ले मनखे के  काम ||
 समता सुमता  सब मा राहय,तभे देश के होही नाम|

अश्वनी कोसरे "रहँगिया"
छंद साधक कक्षा 9

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 रोला छंद - केवरा यदु"मीरा"

मोदी काहय बात,बने मन मा धर लेहू।
घर मा रहि दिन रात, खोर के झन सुध लेहू।।
घेरी बेरी हाथ,तहूँ मन धोवत रहिहू।
पटका मा मुँह बाँध, अपन बूता ला करहू ।।

कहिनी कथा सुनाय,अपन मन ला बहिलावव।
दार भात ला खाव, माँस ला अभी   भुलावव।

थोरिक दिन के बात, अभी घर मा तुम राहव।
जिनगी हे अनमोल,बात ला सबझन मानव।।

कइसन दिन हा आय, मने मा गुनव जानव।
महामारी कस मान, कथे गा सिरतो मानव।।

खाँसी सरद बुखार,जाँच तुरते करवावव।
ताते पानी भात, ध्यान धर के तुम खावव।।

चीनी चिँग ले आय,गजब रोवावत हावय।
डाक्टर  ग भगवान, सबो के जान बचावय ।।

आके देखव राम, मचे हे हाहाकारी।
जोहन तोरे बाट, जगत के पालन हारी।।

धर के तीर कमान,आज आओ रघुराई।
बिपदा के हे भार, लगे अब बड़ दुखदाई।।

छंदकारा - केवरा यदु "मीरा "
राजिम

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 आल्हा- दिलीप कुमार वर्मा

फइलत हावय जे महमारी, तेखर कथा सुनावँव आज।
कतका खतरा बाढ़त हावय, मण्डरावत हे बनके बाज।

जाने कोन जगा ले आये, कुछ दिन मा दुनिया भर छाय।
दहलावत हे रार मचावत, जाने कहाँ तलक ये जाय।

सात समंदर पार पहुँचगे, नइ बाँचत हे कोनो छोर।
कोरोना के महमारी ले, दुनिया भर मा माते सोर।

जिहाँ जिहाँ कोरोना जावय, तिहाँ तिहाँ बनगे समशान।
मरे रोवया नइ बाँचत हे, शहर नगर होगे वीरान।

अजर अमर अविनासी लागय, अमर बेल जस बाढ़त जाय।
छूत बरोबर ये महमारी, साबुत मनखे तक ला खाय।

बात कहत लाचार करत हे, छूते ही तन मा आ जाय।
एक जगा ले दुसर जगा मा, वस्तु तको मा चढ़ के आय।

दिखय नही ये ततका छोटे, पर मनखे ला मात खवाय।
ये तन आवत स्वांसा रुक जय, तड़फ तड़फ मनखे मर जाय।

कतको मनखे खटिया धरलय, कतको मनखे यमपुर जाय।
पर मनखे कहना नइ मानय, अइसन सँवहत रहे झपाय।

साँस लेत मा हो परसानी, सुक्खा खाँसी सर्दी आय।
अउ बुखार मा तन हर तीपय, लच्छन येखर इही बताय।

अइसन हे ता जाँच करावव, डॉक्टर ले तुरते मिल आव।
कहना ला डॉक्टर के मानव, कोरोना ले जान बचाव।

दुनिया भर समझावत हावय, घर ले बाहिर झन गा जाव।
जभे जरूरी तब्भे निकलव, मुँह मा सुग्घर मास्क लगाव।

भीड़ भाड़ ले दुरिहा राहव, रहव एक मीटर जी दूर।
बार बार साबुन ले भाई, धोना हावय हाथ जरूर।

कोरोना तब घर नइ आवय, शासन के कहना ला मान।
अपन सुरक्षा हाथ अपन हे, खतरा ला अब तो पहिचान।

डॉक्टर जान लगाये हावय, खड़े करोना यम के बीच।
नर्स तको मन साथ चलत हे, जिनगी मा अमरित दय छींच।

खड़े सिपाही छाती ताने, कोरोना ला दय ललकार।
तुहरो जान बचाये खातिर, समझावत हे बारम्बार।

भूत लात के बात न माने, देत सिपाही डंडा मार।
बिन बुद्धि के मनखे मन ले, देव तको हर जावय हार।

पर इन ला हे जान बचाना, करना अपन हवय जी काम।
आसा हे कोरोना मरही, तब्भे पाही यहू अराम।

आशा ले आकाश थमे हे, आशा ले बरसा हो जाय।
रख लव आशा मन मा भाई, कोरोना हर बच नइ पाय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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कुलदीप सिन्हा: कोरोना बर जनजागरण
आल्हा छंद

आवव संगी आज सबो मिल, कोरोना ला देवव मात।
येती ओती चारों कोती, बिगड़े हावय गा हालात।।

घर के भीतर रहिके भइया, करना तुम ला हवे बचाव।
बांध तोबरा मुंह मा सब झन, कोरोना ला दूर भगाव।।

साफ सफाई खुद के राखव, रहि रहि के तुम धोवव हाथ।
छींक संग यदि आथे खांसी, रख रुमाल गा हरदम साथ।।

गरम गरम गा पीयो पानी, खावव खाना ताते तात।
अपनो अपनो बीच घलो गा, करहू अब दुरिहा ले बात।।

हाथ मिलाना बंद करव अब, रहि के दुरिहा करो प्रनाम।
जेन तोबरा बांधे हावव, वोला बदलव गा हर शाम।

कहूं हाट ले सब्जी लाथव, धो धो के करहू उपयोग।
अइसन तुहर करे ले भइया, दुरिहा होही जम्मो रोग।।

हल्का मा झन लेवव कोनो, रोग भयंकर इन ला जान।
दिखय नहीं गा जल्दी लक्षण, भीतर भीतर लेथय प्रान।।

इन ला दूर करे बर अब तो, भिड़े हवय देखव सरकार।
येखर सेती दुनिया भर मा, माते हावय हाहाकार।।

आंख मा आंसू भर के मोदी, सब जनता मन ला समझाय।
भारतवासी मन बर वोहा, जइसे देव दूत बन आय।

अतना मा यदि नइ मानय जे, होही वोखर बंठाधार।
खुद मरही ते मरही संगी, संग पीस जाही संसार।।

"दीप" कहत हे उन ला सुन लो, करव न लक्ष्मण रेखा पार।
रहो मस्त जी घर मा अपने, बांटव सब मिल मया दुलार।।

छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद - केवरा यदु "मीरा "

जाना ओ कोरोना दाई, पाँव परत हँव जोरवँ हाथ।
चीनी चपटा मन सँग रहिबे,चरणन तोर मढ़ावँव माथ।।

हमतो सिधवा भारत वासी,छली फंद मा नइये नाम।
सांप देवता तो हम कहिके, दुरिहा ले करथँन परनाम।।

काबर आये मोर देश मा,जाना तोर मुँहू अब टार।।
रहिबो हम तो लाक डाउन म,नइ तो मानन हम तो हार।।

घेरी बेरी हाथ ल धोबो,पटका मा मुँह रखबो बाँध ।
दुरिहा ले बतिया लेबो हम,नइ छूवन हम ककरो काँध।।

चारे दिन के बात ग भइया, घर के भीतर रहू लुकाय।
गरमी परही पट ले मरही, काम बुता चालू हो जाय।।

दार भात मा मन ल मढ़ाहू,खाहू झन गा मछरी माँस।
डर के चलहू तब तो बनही,नइ ते बैरी लेथे फाँस।।

साफ सफाई  घर के राखव,धूप गुँगुर के धुँआ जलाव।
पाना लीम धलोक जलाहू,रोग बिमारी नाशक ताय।।

महमारी ह भारी होगे, मचगे हावय हाहाकार ।
डाक्टर ह भगवान बने हे,चौबिस घंटा कर उपचार ।।

मोर देश के वीर सिपाही, गली गली ड्यूटी ल बजाय।
दाई ददा ल छोड़े बइठे, बेटी बेटा सुरता आय।।

चरणन ऊँकर माथ नवावँवँ, सेवा में जो जान गँवाय।
बलिदानी भारत के बेटा,अमर नाम इतिहास  लिखाय।।

कतका मँय तोरे गुण गावँव, दया धरम में तोरे नाम।
पाँव परँव मँय रोजे दिन गा, जनम देवइया ल परनाम।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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वीर छन्द

बात मान ले सच काहत हँव, हवय भलाई एमा तोर।
घर मा रहि के दिन पहवा ले, कोरोना के चक्कर टोर।

होय जरूरी तब बाहिर जा, मुँह मा पटका पंछा बाँध।
अलग रेंग डंका भर दुरिहा, जुरय बाँह ना ककरो खाँध।

सब्जी के तैं ओखी करके, फोकट घुमबे कहूँ बजार।
सप्पड़ परबे गा पोलिस के, खाबे कस के डंडा मार।

एक बात तैं गाँठ बाँध ले, साफ सफाई  रख ला साथ।
रहि रहि मल मल साबुन मा जी, धोवत रहना हाबय हाथ।

घेरी बेरी छूना नइहे, अपन नाक मुँह आँखी कान।
इही बाट ले रोग अमाथे, इहू बात ला दे गा ध्यान ।

जर बुखार धर लय कोनो ला, खाँसय छींकय घेंच पिराय।
सोचे के गा नइहे काँही, दे डाक्टर ला तुरत बताय।

हवय देश हित अउ खुद तोरो, बात सत्य ये हवय 'मितान'।
भारत माँ के करले सेवा, कर ले गा जग के कल्यान।

                                     मनीराम साहू 'मितान'

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