Followers

Sunday, November 8, 2020

सुकमोती चौहान "रुचि"

 कज्जल छंद - माँस अउ दारू के बढ़त फेसन 


- सुकमोती चौहान "रुचि"


बकरा भेड़ा काट काट

बेचत हावय हाट हाट

खाय खवइया चाट चाट

जोहत हावँय बाट बाट।


किलो किलो जी माँस खाय

मनखे मा राक्षस समाय 

तब ले कोनों नइ अघाय

रामा कइसन राज आय।


लागे नइ जी दया धर्म

हत्या बन गे सहज कर्म

जाने नइ का जीव मर्म

आवय एको देख शर्म।


दारू पीवय संग संग

घर के सुख अउ शांति भंग

करथे बड़ मतवार तंग

उड़गे सुख के सबो रंग।


दारू पीये शान मार

धर गिलास मा ढार ढार

पहुँचे हपटत घर दुवार

जिनगी होगे नारखार।


झगरा गारी रोज रोज

करथे ओखी खोज खोज

नशा बढ़ावै रोष ओज

करू करय जी बात सोज।


एखर ले नुकसान होय

सुसक सुसक परिवार रोय

जम्मो इज्जत मान खोय

दया धर्म नइ करे कोय।


सुकमोती चौहान रुचि

बिछिया ,महासमुन्द ,छ.ग.

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया दीदी

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना दीदी जी💐

    ReplyDelete