कज्जल छंद -सुधा शर्मा
*धरती कोरा*
1---
सुग्घर हरियर दिखे धान,
कोरा धरती के महान,
करथें मिहनत गा किसान,
देत फसल तब धीरवान ।
2---
रुख-राई अउ खेतखार,
चले नीक बढ़िया बयार,
किसिम किसिम के ये तिहार ,
सुखमय जिनगी नहीं भार।
3----
बरसाये पानी अमोल,
बूँद बूँद बउरव ग तोल,
हरियर चारों होय मोर,
धरती दाई ओर छोर।
*नशा*
1---
करत हवे जिनगी उजाड़।
टूटत सबो घर परिवार ।।
बाढ़त नशा अतियाचार।
हे समात मन मा विकार।।
2---'
गारी दाई बाप देत।
बोले के गा नहीं चेत।।
कोनो देवत गला रेत।
नशा सेती सबोअचेत।।
3----
छोड़व गा सब नशा पान।
एमा ककरो नहीं मान।।
डहर बने रेंगव मितान।
बनके सबो रहव सुजान।।
4---
जाँगर टूटत करे काम।
दारू भठ्ठी गये शाम।।
दिए कमाय पइसा फेंक।
लाँघन लइका घर म देख।।
*कातिक पुन्नी*
कातिक पुन्नी हवे आय,
हमर गाँव मेला भराय।
किसिम किसिम पसरा सजाय,
लइका बड़का ह जुरियाय।
नदिया मा डुबकी लगाय,
मंदिर दर्शन करे जाय।
घूमत भजिया बरा खाय,
गुपचुप खाय मजा उड़ाय।
जघा जघा मा भीड़ भार,
सँघरा देखौ हे बजार।
सजे खिलौना जोर दार,
ठेली ठेला हे अपार।।
संग मितानी मेल जोल,
गोठ बात हो हृदय खोल।
जोड़ी जाँवर बाठ बोल,
नवा नता के मोल तोल।।
मड़ई मेला इही नाम,
कतको होथे इहाँ काम।
बच्छर भर मा देख आय,
जब कोठी धर धान जाय।।
सुधा शर्मा,
राजिम
छत्तीसगढ़
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