कज्जल छंद :- हमर गाँव
(जगदीश "हीरा" साहू)
बर पीपर के सुघर छाँव।
कउवा करथे काँव-काँव।।
अउ चिरई के चींव-चाँव।
सरग बरोबर हमर गाँव।।
सब मनखे के अलग ढंग।
अलग-अलग हे रूप रंग।।
सबझन रहिथे एक संग।
देखइया मन हवय दंग।।
मन के सच्चा देख जाँच।
नइ जानय जे तीन-पाँच।।
बोले अड़बड़ नीक साँच।
पाटे गड्ढा बैर खाँच।।
सुख दुख मा सब काम आय।
सुनता सबके गजब भाय।।
घर बाहिर सबला बलाय।
एक संग सब बइठ खाय।।
बरसे पानी झोर-झोर।
करथे बादर अबड़ शोर।।
होये सबझन सराबोर।
भींगे अँगना गली खोर।।
बोलय सबला राम नाम।
लगे सबो झन अपन काम।।
पानी बादर रहय घाम।
देखय नइ बिहनिया शाम।।
जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार
बहुत बहुत धन्यवाद भैया जी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर कज्जल छंद आदरणीय
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाई
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