छत्ततीसगढ़ी राजभाषा पर
गरीब गोहार/ कोदूराम दलित
परमेश्वर कइसन दिन आइस, का कलजुग सिरतोन खराइस,
पापिन–चण्डालिन महँगाई, हम गरीब–गुरबा ला खाइस ।
कइसे करके पाली–पोसी डउकी–लइका, कुटुम–कबीला,
कब तक हम बड़हर मन के, देखत रहीं चरित्तर–लीला ।
अड़बड़ मुसकिल होगे हमला, पाए खातिर रोजी-रोटी,
निठुर मनन के करना परथै, गजब किलौली, पाँव–पलौटी
बड़े बिहिनिया ले संझा तक, माई–पीला जाँगर पेरीं,
पापी पेट भरे खातिर हम, गारी खाथीं घेरी-बेरी ।
पसिया-पेज, कभू तिउँरा के, ठोम्हा भर घुघरी हम खाईं,
होगे हमर पुनस्तर ढीला, काकर मेर जाके गोहराईं ।
लइका मन हमार लुलवाथें, पाए बर कोंढ़ा के रोटी,
खेत-खार में जाके खाथैं, उरिद-मुंगेसा अऊ चिरपोटी ।
लाँघन-भूखन मरथीं हम्मन, ओमन माल-मलीदा खाथैं,
मरकी अउर कुढ़ेरा साहीं, उनकर पेट बड़े हो जाथैं ।
हमर सिरागे रुँजी-पूँजी, ऊँकर मन के भरगै थैला,
हम्मन अनपढ़, लेड़गा-कोंदा, बने हवन घानी कस बैला ।
कब सुराज के सुख ला पाबो, कब मिलिही भुइयाँ घर कुरिया,
कब हमार मन के दिन फिरही, कब तक रहिबो दुरिहा-दुरिहा ।
निच्चट कुकुर-बिलाई साहीं, कब तक ले ठुकरायें जाबो,
ठगरा मन सब ठगतेच जाथैं, कब तक इनला बड़े बनाबो ।
जर जावै अइसन जिनगानी, जम्मो झिन ला जउन अखरगे,
का ? हमार बर देउँता-धामी, घलो रूठिन कि पट ले मरगें ।
कब तक हम भरमाए जाबो, कब तक कहिबो ‘किस्मत खोटी’,
बीता भर चिरहा-फरिहा के, कब तक रही हमार लिंगोटी ।
रचनाकार-कोदूराम 'दलित'
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ReplyDeleteगुरु ददा
ReplyDeleteशत2 नमन
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