छंद के छ की प्रस्तुति-देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध कवितायें
अमृतध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज
(1) देवारी
देवारी सुग्घर लगै, कातिक के त्योहार।
लीपे पोते सब दिखै,चुक-चुक ले घर द्वार।।
चुक-चुक ले घर,द्वार लिपाए,सुग्घर दमके।
हँसी खुशी के,दीया जगमग,देखव चमके।।
चउदस के दिन,चउदा दीया,भर-भर थारी।।
अम्मावस दिन,लक्ष्मी पूजा, शुभ देवारी।।
(2) लक्ष्मी माता
बने मिठाई खीर अउ,कलशा बने सजाय।
लाई नरियर फूल ला,लक्ष्मी माता भाय।।
लक्ष्मी माता, भाय बने तब, घर मा आवै।
लइका मन सब,फोर फटाका,खुशी मनावै।।
जोर बतासा, भर-भर दोना, बाँटय दाई।
हँसी खुशी सब,खावत हावै,बने मिठाई।।
(3) गौरी गौरा
गौरी गौरा के परब, सुग्घर रीत रिवाज।
परम्परा अद्भुत बने, छत्तीसगढ़ी साज।।
छत्तीसगढ़ी,साज सजे जी,देखव सुग्घर।
शंकर बिलवा,गौरा बनथे,गौरी उज्जर।।
रात-रात भर,बर बिहाव के,सजथे चौरा।
होत बिहनिया,करे विसर्जन,गौरी गौरा।।
(4) सुआ नाच
हरियर पींयर साज के,खोपा गजरा डार।
सुआ धरे अउ टोकनी,नाचै सबके द्वार।।
नाचै सबके, द्वार घरो घर, जा के नारी।
तरि हरि ना ना,मिल सब गावै,बन सँगवारी।।
सुआ खाय बर,अन्न चघाथे,सँग मा नरियर।
नाचत माँगय,पहिरे लुगरा,पींयर हरियर।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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: बरवै छंद- विजेन्द्र वर्मा
आय हवै देवारी,बाती बोर।
गली गली मा बगरै,बिकट अँजोर।।
खेत खार मा नाचय,मन के मोर।
मुरहा मनखे मन ला,तको अगोर।।
गाँव गली मा गूँजय,सुख के शोर।
देवारी मा राहय,जग मा भोर।।
सबके अँगना महकै,डारा पान।
दुख के रात पहावय,अब भगवान।।
अँधियारी बादर हा,अब छट जाय।
दीया के जगमग ले,सावन आय।।
हँसी खुशी ले गुजरे,जिनगी आज।
झूमव नाचव गावव,सुग्घर काज।।
परब आय देवारी,दियना बार।
बैर भाव ला तजके,बाँटव प्यार।।
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर(छ.ग.)
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देवारी तिहार (दोहा)
गांव छोड़ परदेस मा , बसे रहे सब आय।
अपन मयारू गांव मा अंतस के सुख पाय।।
आय हवै दीपावली , अइसन दियना बार ।
अंतस मा परकास हो , मिट जाए अँधियार ।।
गोबर मा अँगना लिपौ , सुग्घर चँउक पुराव।
धनतेरस के शुभ घड़ी , तेरह दीप जलाव।।
धनलक्ष्मी के वंदना , संझा बिहना गाव ।
धन वैभव आही सुघर , आवव खुशी मनाव ।।
जगर बगर चारो मुड़ा , दियना जले हजार।
परब खुशी के लाय हे , दीपावली अपार।।
गौरी गौरा रात में , जागे घर घर जाय ।
नर नारी पूजा करे , सकल मनोरथ पाय ।।
लइका मन खेलै सुघर , सुरसुरी अउ अनार ।
मँजा गजब के पाय जी , नाचै आँगन द्वार।।
लक्ष्मी बर खिचड़ी बने , कुम्हड़ा कोचइ साग।
गौ जूठा खाए सबो , सँहराए जी भाग ।।
सुग्घर खरखासाल मा , होवय मातर मेल ।
बाजा रूंजी संग मा , चले अखाड़ा खेल।
आनी बानी खेल ला , देखत अति मन भाय।
अइसन हमर तिहार हे , देव घलो सँहराय ।।
खुशी खुशी मा दावना , रचना रचते जाय ।
संगी सँगवारी सबों , एक जघा जुरियाय।।
छंद साधक सत्र 10
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड़
6260473556
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बरवै छंद - सुकमोती चौहान "रुचि"
धनतेरस के दीया , करय अँजोर।
बान पटाखा फूटय , होवय शोर।।
लक्ष्मी माता पूजव , मावस रात।
कृपा होय ले होथे , धन बरसात ।।
माटी के दियना जी , डारव तेल।
सुग्घर जिनगी होही , करलव मेल ।।
मन भाये देवारी , दिन हे पाँच ।
सरलग मना परब जी, दियना आँच ।।
सुघर सुघर रंगोली , सोहे द्वार ।
आमा तोरन झूलय , गोंदा हार ।।
पहन नवा कपड़ा ला ,लइका आय ।
हाँसत गावत सब ला , बात बताय ।।
गोवर्धन के पूजा , दय वरदान।
भरे रहय अन धन ले , घर गोठान ।।
जम्मो झन ला रुचि के , जय जोहार ।
सबो बधाई झोकव , मिलय दुलार ।।
साधिका - श्रीमती सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया, महासमुन्द ,छ.ग.
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बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
सबे खूँट देवारी, के हे जोर।
उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।
छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।
किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।
चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।
गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।
काँटा काँदी कचरा, मानय हार।
मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।
जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।
दया मया मनखे मा, हे भरपूर।
चारो कोती मनखे, दिखे भराय।
मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।
बनठन के सब मनखे, जाय बजार।
खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।
पुतरी दीया बाती, के हे लाट।
तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।
लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।
दीया बाती वाले, देख बलाय।
कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।
नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।
जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।
टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।
हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।
खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।
पहली दिन घर आये, श्री यम देव।
मेटे सब मनखे के, मन के भेव।
दै अशीष यम राजा, मया दुलार।
सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।
तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।
पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।
दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।
सब संकट हा भागे, सुबे नहात।
नहा खोर चौदस के, देवय दान।
नरक मिले झन कहिके, गावय गान।
तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।
धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।
एक मई हो जावय, दिन अउ रात।
अँधियारी ला दीया, हवै भगात।
बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।
चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।
बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।
दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।
फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।
चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।
होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।
गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।
दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।
अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।
पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।
बहिनी मनके बोहै,भाई भार।
कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।
देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।
देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।
देख देख के नाचे, तनमन मोर।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।
मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।
गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।
करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।
लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।
दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।
भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।
देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।
बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।
आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।
बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।
देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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अमृत ध्वनि छंद:- *सुरहुत्ती*
सुरहुत्ती शुभ रात मा, चहुॅंदिश होय ॲंजोर।
रिगबिग ले दीया बरे, गमकय ॲंगना खोर।
गमकय ॲंगना , खोर रात कुन,गौरा जागे।
देख ईस ला, तुरत इहाॅं ले, तम हर भागे।
समझ भगत के,मान गौन ला,आवय सत्ती।
भरय धान ले,कोठी डोली, जय सुरहुत्ती।
महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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कुण्डलिया- अजय अमृतांशु
(1)
देवारी आये हवय,नाचय मन के मोर।
दीया बारव सब डहर,जगमग करय अँजोर।
जगमग करय अँजोर,मिटय जी सब अँधियारी।
झूमव मिलके आज,सबो संगी सँगवारी।
मन के भेद मिटाव,करव झन ककरो चारी।
घर घर खुशी मनाव,परब आये देवारी।।
(2)
माटी के दीया बरत,बड़ निक लागत आज।
देवारी आ गे हवय,जुरमिल करबों काज।।
जुरमिल करबों काज, तभे खुशहाली लाबों।
सुखी रहय परिवार,मया ला हम बगराबों।
आवव मिलके आज,कुमत के गड्ढा पाटी।
आघू पाछू ताय, सबों ला होना माटी।
(3)
गौरा गौरी गाँव मा, बइठारे हन आज।
माँगय हन हम देव ले,सुग्घर होवय राज।
सुग्घर होवय राज,सबो झन खुशी मनावय।
घर घर रहय तिहार, दुःख कोनो झन पावय।
जगर बगर हे राज, गाँव घर अँगना चौरा।
पूजत हन सब आज, गाँव मा गौरी गौरा।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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*बरवै छंद ---आशा देशमुख*
*देवारी तिहार*
आये हे देवारी,बड़े तिहार।
चमकत हे घर अँगना,गली दुवार।
गाँव गाँव मा गूँजय ,गौरा गीत।
सुघ्घर लागत हावय, अइसन रीत।
सोन बरोबर चमके,खेती खार।
खरही गांजे भरगे ,हे कोठार।
अन धन गउ मा करथे ,लक्ष्मी वास।
ये तिहार मन भरथे, अबड़ मिठास।
कतिक महिना अब्बड़,पबरित आय।
बड़े बिहनिया कतको,भगत नहाय।
दीया सँग मा रहिथे ,बाती तेल।
देवय ये संदेशा ,सुमता मेल।
कातिक महिना पाये, अब्बड़ भाग।
मया खुशी के घर घर,पागय पाग।
आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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बहुत ही सुग्घर सुग्घर रचना हे गुरुदेव
ReplyDeleteगुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के आशीर्वाद से आज मोरो रचना छंद खजाना मा शामिल होइस
एखर बर आप सबों गुरुदेव मन के मैं आभारी हंव
आप सबो गुरुदेव मन ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना
सादर बधाई
Deleteसादर बधाई
Deleteछंदबद्ध रचनाओं का अनुपम संकलन। दीपोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुग्घर देवारी के छंद संग्रह गुरुदेव। आप जम्मों दीदी भइया मन ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई
ReplyDeleteसादर बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आदरणीय सबों छन्द साधक मनला🙏
ReplyDeleteगुरुदेव ल प्रणाम
ReplyDeleteवाह्ह वाह बहुते सुग्घर देवारी तिहार विशेष रचना मन के संग्रह हे प्रणम्य गुरुदेव जी सादर प्रणाम 🙏🙏
ReplyDeleteआप जम्मो के रचना एक ले बढ़ के एक हे
ReplyDeleteआप सब ल हार्दिक हार्दिक बधाई
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
सुग्घर
ReplyDeleteसुघ्घर संकलन हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर देवारी तिहार छंदबद्ध रचना
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