कज्जल छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
किसान
भुँइया के बेटा किसान।
खेती मा देथस धियान।
उपजाथस सोनहा धान।
कारज हे सबले महान।
धन धन जगपालक किसान।
अंतस मा नइहे गुमान।
तोर दया जिनगी परान।
तहीं असल देश के मान।
जब ले तैं उपजाय अन्न।
नइहे जी कोनो विपन्न।
करे कड़ाही छनन छन्न।
खाके जन मन हे प्रसन्न।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
बहुत सुन्दर सर जी
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