अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा
महतारी मन आज तो, रहिथे सुघर उपास।
बेटा बेटी खुश रहय, माँगय वर जी खास।
माँगय वर जी,खास सबो के,उम्मर बाढ़य।
पोती मारय,मुड़ मा विपदा, झन तो माढ़य।
एक ठउर मा,अउ जुरियाके,जम्मो नारी।
महादेव के,पूजा करथे,सब महतारी।।
घर के बाहिर कोड़ के, सगरी ला दय साज।
गिन गिन पानी डार के, करथे पूजा आज।
करथे पूजा,आज नेंग जी,करथे भारी।
लइका मन के,रक्षा बर तो,हे तैयारी।
हूम धूप अउ,फूल पान ला,सुग्घर धरके।
सुमिरन करथे, महतारी मन,जम्मो घरके।।
पतरी महुआ पान के, भाजी के छै जात।
चुरथे घर-घर मा इहाँ, पसहर के अउ भात।
पसहर के अउ,भात संग मा,दूध दही ला।
महतारी मन,खाय थोरकिन,डार मही ला।
गहूँ चना अउ,महुआ के सन,लाई-लुतरी।
सुघर चघावै,नरियर काँशी,दोना पतरी।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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