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Tuesday, September 7, 2021

हरिगीतिका छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

 



हरिगीतिका छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'


                      पोरा


भादो अमावस आज हे, आये हवय पोरा परब।

संदेश सुख समृद्धि के, लाये हवय पोरा परब।

गाना भजन लिख छन्दमय, गाये हवय पोरा परब।

ए साल इन्टरनेट मा, छाये हवय पोरा परब।


ये फेसबुक ये वाट्सप, ट्वीटर म इंस्टाग्राम मा।

शुभकामना बगरे हवय, पोरा परब के नाम मा।

परसन्न पालनहार के, जॉंगर किसानी काम मा।

सउॅंहत सरग उतरे हवय, तैं देख धरती धाम मा।


पोरा परब के मान्यता, ज्ञानी गुणी मनके अकल।

रतिहा धनइया के हमर, भरथे गरभ मा दूध जल।

पूजा अरज आराधना, श्रम मेहनत होथे सुफल।

दू चार दिन मा फोरथे, जब पोटरी पाना फसल।


मौसम करे हावय मदद, बादर कृपा बरसाय हे।

बइला किसानी काम मा, सहयोग देवत आय हे।

आशीष देये हें गजब, सब ग्राम देबी देव मन।

उज्जर भविस खातिर गड़े, हें जेन पुरखा नेव मन।


अंतस म आदर भाव हे, उपकार बर आभार हे।

घर मा किसानन के हमर, पोरा परब त्यौहार हे।

चुरही ग खुरमी ठेठरी, चीला चुरत हावय अभी।

ॲंगना म नोनी हा हमर, चौंका पुरत हावय अभी।


कोठा म बइला हा हमर , पागुर करत हावय अभी।

बढ़ही फबित खुर सींग मा, पालिस लगत हावय अभी।

बइला ह माटी के घलो, सम्हरत सजत हावय अभी।

नोनी जतुलिया मा अपन, कुछ नइ दरत हावय अभी।


दे हूम-धुप जेंवात हे, ॲंगुरी दसोठन जोर के।

पोरा परब के नेग मा, दू एक सतफर फोर के।

सुखदेव ये छत्तीसगढ़, आवय कटोरा धान के।

पोरा परब हरिगीतिका, लिख ले तहूॅं गुणगान के।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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