गणेश चतुर्थी विशेष
: बिष्णु पद छंद- बोधन राम निषादराज
*जय गणेश*
जय गणेश गणनायक देवा,बिपदा मोर हरौ।
आवँव तोर दुवारी मँय तो, झोली मोर भरौ।।1।।
दीन-हीन लइका मँय देवा,आ के दुःख हरौ।
मँय अज्ञानी दुनिया में हँव,मन मा ज्ञान भरौ।।2।।
गिरिजा नन्दन हे गण राजा, लाड़ू हाथ धरौ।
लम्बोदर अब हाथ बढ़ाओ,किरपा आज करौ।।3।।
शिव शंकर के सुग्घर ललना,सबके ख्याल करौ।
ज्ञानवान तँय सबले जादा,जग में ज्ञान भरौ।।4।।
जगमग तोर दुवारी चमके,स्वामी चरन परौं।
एक दंत स्वामी हे प्रभु जी,तोरे बिनय करौं।।5।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*सात दोहा गणेंश के*
एकाक्षर एकदंत ए, गणाध्यक्ष गणराज ।
भादों चौथ विराजथे, पूरण करथे काज ।।
देवन मा सबले बड़े गौरी सुत कहलाय ।
मंगलमय गणराज ला, मोदक सुग्घर भाय ।।
विघ्नेश्वर भगवान के, होवय जय जयकार ।
शंकर सुवन गणेंश के, मुसुवा हवै सवार ।।
कपिल कविश कविराय के, लेखन हावै सार ।
लिखे महाभारत कथा, जानें सब संसार ।।
परसा सोहय हाथ मा, भागय डर मा काल ।
सकल जगत के पाप ला, हरे उमा के लाल ।।
विकट विनायक वीर हे, पेट बड़े मन भाय ।
हाथी जइसन सूंड हे, लंबा कान सुहाय ।।
ठेठ नवाये माथ ला, कृपा करो करतार ।
भव के अटके नाव ला, लउहा करदो पार ।।
पुरूषोत्तम ठेठवार
छंदकार
ग्राम -भेलवाँटिकरा
जिला -रायगढ
छत्तीसगढ
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सरसी छंद- राजेश कुमार निषद
गौरी पुत्र गणेश
करबो पूजा हम सब तोरे, गौरी पुत्र गणेश।
अरजी हमरों सुनलव प्रभु जी,काटहु मन के क्लेश।।
एकदन्त के तैंहर धारी,सुनलव गा गणराज।
रिद्धि सिद्धि के हव तुम दाता, करहू पूरन काज।।
मुसवा के तैं करे सवारी,लडुवन लागय भोग।
जेन शरण मा तोरे आवय,हरथव ओकर रोग।।
सबले पहिली होथे पूजा,जग मा देवा तोर।
जोत ज्ञान के तहीं जला के, करथस जगत अँजोर।।
महादेव अउ पार्वती के,हावस नटखट लाल।
बड़े बड़े तैं लीला करके,करथस अबड़ कमाल।।
तीन लोक मा होथे प्रभु जी,तोरे जय जयकार।
हे गणपति तैं हे गणराजा,विपदा हरव हमार।।
छंदकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा रायपुर छत्तीसगढ़
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गनपति जी देख ले (बाल दोहा गीत)
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गनपति जी देख ले,
तपथे मुसवा तोर।
देहे कुतर किताब ला,
सबो बिषय के मोर।
ओकर मारे नइ बँचय,
कोठी मन के धान।
खाथे चाँउर दार ला,
करथे बड़ नसकान।
आय अकेल्ला वो नही,
लाथे अउ सँग जोर।
गनपति....
बिला बनाथे टोंक मा,
माई कुरिया रोज।
कोरा अबड़ निकालथे,
रहय नही वो सोज।
मोर खजेना लेगथे,
हाबय नँगते चोर।
गनपति....
नानी मोरे ले रहिस,
सुग्धर कुरता लाल।
आके चुप्पे जेब ला,
चुनदिस रतिहा काल।
पाके आरो भागथे,
लउहे लउहे खोर।
गनपति....
-मनीराम साहू ''मितान'
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दोहा छंद
मंगलकारी देव तँय, करथे जउँन पुकार।
पार लगा के तो इहाँ, देथस खुशी अपार।।
सबले पहिली आज तो, होथे पूजा तोर।
भक्ति भाव ले लोग मन,वर माँगय पुरजोर।।
गौरी शंकर लाल तँय, ऋद्धि सिद्धि के नाथ।
देवों के तँय देव अच, थामे सबके हाथ।।
तीन लोक मा गूँजथे, तोरे जय जयकार।
जेन शरण मा आ जथे, करथस बेड़ा पार।।
बिगड़े सबके काज ला, तहीं बनाथस देव।
ज्ञान बुद्धि बल के सदा,बनथस सुग्घर नेव।।
झूठ लबारी त्याग के, करय पुण्य के काज।
छाहित रहिथस देव तँय, रखथस ओकर लाज।।
अड़बड़ तोला प्रिय हवै, लडुवन के जी भोग।
रोज करै जे आरती, भागय ओकर रोग।।
मात-पिता ला पूजके, मानें चारों धाम।
तेकर सेती आज तक, गूँजत जग मा नाम।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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गौरी शंकर लाल तॅंय, हर्ता विघ्न गणेश।
सुख समृद्धि सॅंग लाय तॅंय, दुरिहा रखे कलेश।।
पहिली पूजा तोर हे, मुसवा करे सवार।
आये भादो चौथ के, सुग्घर तोरे वार।।
सबले बड़का देव तॅंय, देवन मा गणराज।
मोदक तोला भाय जी, पूरन करथस काज।।
रिद्धि सिद्धि सॅंग रहे, दुख दरिद्र ला लेश।
सुख समृद्धि सॅंग लाय तॅंय, दुरिहा रखे कलेश।।
गौरी शंकर लाल तॅंय, हर्ता विघ्न गणेश......
हाथी सरि हे पेट अउ, सूपा जस जी कान।
कथे बुद्धि के देवता, भारी हस बलवान।।
खीरा तोला भोग मा, भक्तन सबो चढ़ाय।
संझा बिहना आरती, करे मनौती पाय।।
सुमरत हवै मनोज हर, आवव हमरो द्वार।
अपन चरन मा राख प्रभु, सुखी रहै परिवार।।
भक्ति तोर मन मा रहे, आय कभू झन द्वेष।
सुख समृद्धि सॅंग लाय तॅंय, दुरिहा रखे कलेश।।
गौरी शंकर लाल तॅंय, हर्ता विघ्न गणेश.......
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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: गणेश चतुर्थी के हार्दिक बधाई
विष्णुपद छंद
एकदंत गजबदन गजानन, बिघ्न विनाशक जी।
पहिली पूजा तोर जगत मा, हे गननायक जी।।
गनपति देव गनेश उमा सुत, पितु शिवशंकर हे।
नाम अनेक हवै अउ महिमा, तोर भयंकर हे।।
दाई के आज्ञा ला पाके, तैंहा द्वार खड़े।
रोके रस्ता अपन ददा के, ओखर संग लड़े।।
गुस्सा मा तब शिव त्रिनेत्र प्रभु, काटे मूड़ हवै।
जोड़े हाथी मूड़ बाद मा, तबले सूँड़ हवै।।
अँधरा देखय अउ कोंदा हा, पोथी बाँचत हे।
पाके किरपा तोर खोरहा, परवत लाँघत हे।।
रिध्दि सिद्धि बल बुध्दि प्रदाता, हे गनराज तही।
भक्तन के तँय इहाँ बनाथस, बिगड़े काज तही।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी- कवर्धा
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[अशोक कुमार जायसवाल: *सुमिरन*
अमृत ध्वनि छंद
गणपति सुमिरन मैं करँव, धरे सोनहा थाल |
तोर उतारँव आरती, महादेव के लाल ||
महादेव के, लाल हमर तैं, विनती सुन ले |
तोर चरण मा, करथँव अर्जी, थोकुन गुन ले ||
नइ जानव मैं, भक्ति भाव ला, मोर मूढ़ मति |
लाज हमर तैं, आज राख ले, जय हो गणपति ||
अशोक जायसवाल
साधक -13
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*गणपति देवा-आल्हा छंद गीत(खैरझिटिया)
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
गली गली घर घर मा बइठे, घोरत हवै भक्ति के रंग।
तोरन ताव तने सब तीरन, चारो कोती होवय शोर।
हूम धूप के धुवाँ उड़ावय, बगरै चारो खूँट अँजोर।
लइका लोग सियान सबे के, मन मा छाये हवै उमंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।
संझा बिहना होय आरती, लगे खीर अउ लड्डू भोग।
कृपा करे जब गणपति देवा, भागे जर डर विपदा रोग।
चार हाथ मा शोभा पाये, बड़े पेट मुख हाथी अंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।
होवै जग मा पहली पूजा, सबले बड़े कहावै देव।
ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता, सिरजावै जिनगी के नेव।
भगतन मन ला पार लगावै, होय अधर्मी असुरन तंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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चौपई छंद - बोधन राम निषादराज
विषय - *जय गणेश*
जय गणेश गिरिजा के लाल । मुकुट बिराजे सुग्घर भाल ।।
शिव शंकर के बेटा आय । ऋद्धि सिद्धि के मन ला भाय।।
आवौ करलौ पूजा पाठ । देखौ कइसे एखर ठाठ ।।
मुसुवा मा बइठे भगवान । मनचाहा देथे बरदान।।
जबर पेट हे हाथी जान । कतका मैंहा करँव बखान ।।
गणनायक हे सुख ला देत । बिपदा ला छिन मा हर लेत ।।
बुद्धि देत हे माँगव आज । सफल होय जी जम्मों काज ।।
सेवा करके मेवा पाव । चल भइया सब गुन ला गाव ।।
ग्यारा दिन अउ ग्यारा रात । करलौ भगती बनही बात ।।
धीरज मा मिलथे जी खीर । झन हो जाहू आज अधीर ।।
देवो मा तँय बड़का देव । मोरो बिनती ला सुन लेव।
पाँव परत हँव तोरे आज । दे आशीष तहीं महराज ।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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:🌸🌸जय गणपति🌸🌸
(गीतिका छन्द)
पार्वती-शिवशंभु के सुत, तोर गणपति नाम हे।
मूँड़ हा हाथी सँही अउ, सूँड़ हा बड़ लाम हे।।
प्रार्थना शुरु तोर होथे,फेर हर शुभ काम हे।
तोर बर दाई-ददा के, पाँव तीरथ धाम हे।।
फूल लाली घास दूबी, आप ला स्वीकार हे।
घीव अउ गुड़ भोग प्यारा, मीठ लाड़ू सार हे।।
मोहना मुसवा सवारी, बुध्दि के भण्डार हे।
मास भादो बड़ खुशी ले, मान बारम्बार हे।।
दाँत सोहत एक सुग्घर, तोर सूपा कान हे ।
रिद्धि स्वामी सिध्दि स्वामी, लाभ-शुभ संतान हे।।
पेट बड़का विघ्नहर्ता, आपके पहिचान हे।
साँझ-बिहना आरती मा, हे विनायक ध्यान हे।।
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कमलेश कुमार वर्मा,शिक्षक
भिम्भौरी,बेमेतरा
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बहुत सुंदर संग्रह सर जी
ReplyDeleteमोर कलाकारी ल छंद खजाना मा संकलित करे हव तेकर सेती आपमन ला बहुत बहुत धन्यवाद हे गुरुदेव
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक सृजन,
ReplyDeleteअभिनंदन