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Tuesday, September 7, 2021

मनहरण घनाक्षरी- विजेन्द्र वर्मा

 मनहरण घनाक्षरी- विजेन्द्र वर्मा

(1)

सकलाये रिश्ता नाता,माटी के हे पोरा जाँता।

नँदिया बइला बर इहाँ,आरती सजात हे।

घर घर बने चीला,खाय इहाँ माई पीला।

आगे हावय पोरा जी,खुशियाँ मनात हे।

पटके बर हे पोरा, सखियन के अगोरा।

घेरी-बेरी झाँक अब,खोर कोती जात हे।

मया पिरित ला बाँधे,छप्पन भोग ला राँधे।

ठेठरी खुरमी बरा,के मजा उड़ात हे।


(2)

सकलाये रिश्ता नाता, माटी के हे पोरा जाँता।

दाई माई दीदी मन, पोरा फोरे जात हे।

सबो कोही जुरियाये,भाठा मा सकलाये।

मन मा उछाह भरे,सुघर मुसकात हे।

आनी-बानी खेल खेले,रेंधई ले लेके पेले।

फुगड़ी खो-खो मा बने,समे ला बितात हे।

पहिरे नवा लुगरा,गीता सरिता उत्तरा।

सुख दुख बाँट इहाँ, तिहार मनात हे।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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