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Tuesday, September 7, 2021

विष्नुपद छंद-ज्ञानु

 


विष्नुपद छंद-ज्ञानु


भादों माह अमावस पोरा, दिन बड़ पबरित हे।

फसल लहलहावत ओखर बर, सिरतो अमरित हे।।


धान पोटरावत हे सुग्घर, देख किसान इहाँ।

हँसी खुशी सब परब मनाये, मारत शान इहाँ।।


माटी के नंदी बइला के, पूजा आज करै।

हमर किसानी इही मितानी, सब्बो काज करै।।


नोनी मन जाँता चुकिया धर, मिलजुल खेलत हे।

बाबू मन बइला गाड़ी ला, खींचत पेलत हे।।


खोखो दउँङ कबड्डी खेलत, शोर मचावत हे।

लइका संग जवान इहाँ सब, परब मनावत हे।।


छतीसगढ़ी परब परंपरा, हमर धरोहर हे।

बरा ठेठरी खुरमी अड़बड़, बनय घरोघर हे।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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