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Tuesday, September 7, 2021

कुण्डलिया- विजेन्द्र वर्मा

 कुण्डलिया- विजेन्द्र वर्मा


राखी


बचपन के तो आज जी,सुरता बहुते आय।

राखी रेशम के बने, सबले जादा भाय।

सबले जादा भाय, हाथ भर पहिरन अतका।

रिकिम रिकिम के लाय, बाँध दय बहिनी जतका।

आनी-बानी खान, भोग राखी मा छप्पन।

होगे हवन जवान, याद आथे अब बचपन।।


बंधन बाँधय हाँस के, बहन निभावय रीत।

हिरदे मा भर प्रीत ला, मन भाई के जीत।

मन भाई के जीत,  प्रीत के बाँधय धागा।

कुमकुम तिलक लगात, सुघर पहिराये पागा।

भाई हे अनमोल, करत हे प्रभु  ला वंदन।

हाँसत अउ हँसवात, आज बाँधत हे बंधन।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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