विश्व बेटी दिवस के पावन अवसर म, छंदबद्ध कवितायें-छंद के छ परिवार
कुकुभ छन्द - बोधन राम निषादराज
फुरफुन्दी बन के तँय उड़बे,
दुनिया मा छा जाबे ओ।
दया-मया दाई-बाबू के,
सोर सबो बगराबे ओ।।
सोन चिरइया तँय अँगना के,
तहीं फूल अउ फुलवारी।
दाई-बाबू के घर-कुरिया,
पारत रहिथस किलकारी।।
बेटी मोर दुलौरिन तँय हा,
पढ़ लिख नाम कमाबे ओ।
फुरफुन्दी बन के तँय उड़बे,.................
धरम-करम इज्जत मरजादा,
अपन हाथ मा रख ले बे।
सत् के मारग मा चल बेटी,
जिनगी रद्दा गढ़ ले बे।।
महर-महर गोंदा चम्पा के,
फूल सहीं ममहाबे ओ।
फुरफुन्दी बन के तँय उड़बे,.................
अपन देश के मान रखे बर,
बइरी सँग तँय लड़ जाबे।
रानी लक्ष्मी बाई बन के,
नाम अमर तँय कर जाबे।।
देश राज मा नारि जाति के,
सुग्घर मान बढ़ाबे ओ।
फुरफुन्दी बन के तँय उड़बे,................
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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हरिगीतिका छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
शीर्षक-बेटी
बेटी घलो संतान होथे,दे बने सम्मान गा।
झन मार एला कोख मा, तँय लेत काबर जान गा।
लछमी कहाही तोर बेटी,लेन दे अवतार जी।
पढ़ लिख जगाही नाँव सुग्घर,लेगही भव पार जी।
बेटी कहाँ कमजोर होथे,देखले संसार ला।
अँचरा म सुख के छाँव देथे,गाँव अउ घर द्वार ला।
ए फूल कस जी महमहाथे,जोड़थे परवार ला।
अनमोल हीरा ताय बेटी,तारथे ससुरार ला।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
बायपास रोड कवर्धा
छत्तीसगढ़
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: दोहा छंद :- मोर बेटी भारती हीरा ये
हावय बेटी भारती, हीरा कस अनमोल।
दुनिया भर मा नाम हे, बोलय मीठा बोल।।
बेटी के अभियान मा, जुड़े हवय जी नाम।
बेटी के सम्मान बर, करथे सुग्घर काम।।
जाके जम्मो गाँव मा, देवत हे सन्देश।
बेटा बेटी एक हे, दूनो हरथे क्लेश।।
बेटा घर के मान हे, बेटी घर के शान।
बेटा कुलदीपक हरे, बेटी दय पहचान।।
बेटा तारे एक कुल, अपन करय उद्धार।
बेटी दू कुल तारथे, मइके अउ ससुरार।।
किस्मत वाला के करय, बेटी पूरा साध।
मारव झन गा कोंख मा, होथे बड़ अपराध।।
जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा)
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दोहा छंद- राजेश कुमार निषाद
जीये के आशा हवै, बेटी आवँव तोर।
मारव झन गा कोख मा,गलती का हे मोर।।
होही रोशन नाम हा, जग मा मोला लान।
करहूँ सेवा रोज मैं,बेटा मोला मान।।
पढ़ लिख के मैं एक दिन,साहब बनके आँव।
गाँव गली अउ खोर मा,पूछत हावय नाँव।।
राखी के दिन आय ले,करथे सुरता मोर।
भाई बहिनी के मया, जग मा हावय शोर।।
दो कुल मा दीपक जला,करहूँ मैं उजियार।
घर में बेटी के बिना,सुन्ना है परिवार।।
छंदकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर
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ज्ञानू कवि: विष्णुपद छंद
बेटी ले घर द्वार सजे हे, अउ परछी अँगना।
बेटी ले संसार चलत हे, बँधे मया बँधना।।
दया मया ले सींचत राहव, फूल बरोबर हे।
मुरझावन देहू ओला झन, निच्चट कोंवर हे।।
जनमदायिनी महतारी बन, जिनगी नव गढ़थे।
सहिके दुख चुपचाप दरद ला, बस आगू बढ़थे।।
बेटी बहिनी दाई सुग्घर, रूप अनेक धरे।
बखत परे चंडी काली बन, पापी नाश करे।।
छोड़ ददा दाई ला देथे, बेटा जब भइया।
बेटा बनके बेटी करथे, पार सदा नइया।।
बेटी ला अभिशाप इहाँ झन, अब कोनो समझौ।
पुल बन बेटी सदा जोड़थे, कुल दोनो समझौ।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी- कवर्धा
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: मोर गरीबिन बेटी हा
(गीत)
मोर गरीबिन बेटी हा गढ़त हे नवा रसता।
मूँड़ बोहे बोजहा अउ पीठ लादे बसता।
नइये सइकिल मोटर गाड़ी, बंगला महल अटारी।
नइये ओला कुछु शिकायत, नइये ककरो बर गारी।
गुणवंतीन हे दुनियादारी के नइये अता पता ।
मोर गरिबिन बेटी ह गढ़त हे नवा रसता।।
छुट्टी होथे लहुटत खानी, लकड़ी बीनत आथे।
धो मांज के पानी भरथे, जेवन घलो बनाथे।
दाई ददा मन बनी जाथें, घर के हालत खसता।
मोर गरीबिन बेटी ह गढ़त हे नवा रसता।।
बड़े बाढ़ के मान बढाही, मइके अउ ससुरार के।
बेटी बिना कहाँ हे सुख ,धरती मा परिवार के।
कन्या रतन अनमोल हे संगी, मूरख समझे ससता।
मोर गरीबिन बेटी ह गढ़त हे नवा रसता।
बात ल मानौ ,जल्दी भेजव ,बेटी ल स्कूल।
बड़ ममहाथे दौना कस वो, मोंगरा के जस फूल।
अबड़ मयारू होथे "बादल" ,बेटी माई के नता।
मोर गरीबिन बेटी ह गढ़त हे नवा रसता।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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*शंकर* छंद
*भारत* *के* *बेटी*
जनमें भारत मा तँय बेटी,हो गिस धन्य भाग।
आ गे कोरी एक सदी ता,झन रह सुते जाग।।1।।
पढ़ाई के गियान ल बेटी,बना ले तलवार।
बन जा झाँसी के अब रानी,सह झन अत्याचार।।2।।
लड़बे बेटी अपन लड़ाई,ककरो नि कर आस।
बिजली कस चमकत बेटी तँय,जीत ले अकास।।3।।
इंदिरा कल्पना सरोजनी,जग मा करिन नाम।
बेटी अइसन नाम बढ़ाबे,करके बड़े काम।।4।।
बेटी कोन ल करिहौं सुरता,बहुतेचकन नाम।
लता मंगेशकर अउ प्रतिभा,सिंधु मेरीकाम।।5।।
वासंती वर्मा
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दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
नाम छोड़ बस काम ला, बेटी मन सिरजाय।
हाथ मेहनत थाम के, सरग धरा मा लाय।।
मनखे सब रटते रथें, बेटी बेटी रोज।
तभो सुनत हें चीख ला, रुई कान मा बोज।
बोज रुई ला कान मा, होके मनुष मतंग।
करत हवैं कारज बुरा, बेटी मनके संग।
लेख विधाता का लिखे, दुख हावै दिन रात।
काम बुता करथें सदा, खाथों भभ्भो लात।
शान दुई परिवार के, बेटी माई होय।
मइके ले ससुराल जा, सत सम्मत नित बोय।
आज राज नारी करे, चारो कोती देख।
अपन हाथ खुद हे गढ़त, अपने कर के लेख।
नारी शक्ति महान हे, नारी जग आधार।
नारी ले निर्माण हे, नारी तारन हार।
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को, कोरबा(छग)
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छप्पय छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
दुख माँ बाप मनाय, जनम बेटी लेवय जब।
बेटा घर मा आय, लुटावय धन दौलत तब।
भेदभाव के बीज, कोन बोये हे अइसन।
बेटी मन तक काम, करे बेटा के जइसन।
बेटी मनके आन हा, बेटी मनके शान हा।
छुपे कहाँ जग मा हवै, जानय सकल जहान हा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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चौपई छंद ( बेटी )
बेटी ला झन अबला जान।
बेटी के सब राखव मान।
होथे बेटी फूल समान।
बगरै खुशबू सकल जहान।।1।।
बेटी लक्ष्मी के अवतार।
कोख म येला तैं झन मार।
जानव इनला मुक्ता हार।
समझौ झन गा कोनो भार।।2।।
बेटी के हे कतको रूप।
जइसे होथे चलनी सूप।
पानी जइसे देथे कूप।
काम घलो गा हवे अनूप।।3।।
बेटी ले हे घर परिवार।
होथे ये दू घर के तार।
मात पिता के मया दुलार।
बैरी बर खंजर तलवार।।4।।
बेटी दुर्गा रूप समान।
इनला राधा सीता जान।
रूप बिष्णु मोहनी ग मान।
वहुला तेहा बेटी जान।।5।।
बेटी चण्डी के अवतार।
जान करो नइ अत्याचार।
नइ ते गला तोर तलवार।
काट मचाही हाहाकार।।6।।
महिमा बेटी के अब जान।
गावय गीता वेद पुरान।
सबो देव के पा वरदान।
जग मा बेटी भइस महान।।7।।
छन्दकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल सलोनी ( धमतरी )
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बेटी
आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा
भागजनी घर बेटी होथे, नहीं लबारी सच्चा गोठ।
सुन तो वो नोनी के दाई,बात कहत हौं मँय हा पोठ।।
अड़हा कइथे लोगन मोला,बेटा के जी राह अगोर।
कुल के करही नाँव तोर ये,जग ला करही बिकट अँजोर।।
कहिथँव मँय अँधरागे मनखे,बेटी बेटा ला झन छाँट।
एक पेड़ के दुनों डारा,दुआ भेद मा झन तँय बाँट।।
सोचव बेटी नइ होही ते,ढोय कोन कुल के मरजाद।
अँचरा माँ के सुन्ना होही,बोझा अपने सिर मा लाद।।
आवव अब इतिहास रचव जी,गढ़व सुघर जिनगी के राह।
दुनियादारी के बेड़ी ला,तोड़व अब तो अइसन चाह।।
पढ़ा लिखा के बेटी ला जी,देव सुघर सब झन सम्मान।
जानव अब बेटी ला बेटा,दव सपना ला उँकर उड़ान।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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बेटी
रोला छंद-संगीता वर्मा
बेटी ले परिवार, नाँव ये कुल के करथे।
देवव मया दुलार,पीर सबके जी हरथे।
सुख के होथे छाँव, जिहाँ बेटी मन रहिथे।
कतको दुख ला फेर, हाँस के वो हा सहिथे।।
बेटी लक्ष्मी आय, दूर करथे अँधियारा।
दया मया के छाँव, दुनों कुल के वो तारा।
करके घर उजियार, सुघर बिजली कस बरथे।
बड़का बड़का काम, तको बेटी मन करथे।।
नोहय बेटी बोझ, भाग झन उँखर उजारव।
बोझ जान के फेर, कोख मा झन तो मारव।
कुल के तारणहार, इहाँ बेटी ला जानव।
इही बात हे सार, छुरी झन अब तो तानव।।
संगीता वर्मा
अवधपुरी भिलाई
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विश्व बेटी दिवस के अवसर मा सुग्घर छंद संकलन
ReplyDeleteबेटी दिवस मा बहुत ही सुंदर संग्रह
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर संकलन
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