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Wednesday, September 15, 2021

हिंदी दिवस विशेष

 हिंदी दिवस विशेष





हिंदी दिवस म रचना प्रस्तुत हे


हवै पराया हिंदी भाषा, आज अपन घर मा।

जानबूझ के परे हवन हम, काबर चक्कर मा।।


देवनागरी लिपि ला दीमक, बनके ठोलत हे।

अंग्रेजी हा आज इहाँ बड़, सर चढ़ बोलत हे।।


अलंकार रस हे समास अउ, छंद अलंकृत हे।

हिंदी भाषा सबले सुग्घर, जननी संस्कृत हे।।


अपन देश अउ गाँव शहर मा, होगे आज सगा।

दूसर ला का कहि जब अपने, देवत आज दगा।।


सुरुज किरण कस चम चम चमकय, अब पहिचान मिले।

जस बगरै दुनिया मा अड़बड़, अउ सम्मान मिले।।


पढ़व लिखव हिंदी सँगवारी, आगू तब बढ़ही।

काम काज के भाषा होही, रद्दा नव गढ़ही।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1

कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,

हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।

साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,

महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।

प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,

उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।

साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,

भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।1।।।

               2

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,

आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।

माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,

सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।

भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,

चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।

सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,

भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।2।

                3

सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।

गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।

समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।

पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।

ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।

निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।

नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।

बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़


हिंदी दिवस की आप सबको सादर बधाई

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 हिंदी दिवस के आप सब मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई 🙏💐

छत्तीसगढ़ी भाखा मा हिंदी दिवस ला समर्पित एक छंद रचना .....

ताटंक छंद - (हिंदी भाषा)

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हमर राष्ट्र हे हिंदी भाषी, ज्ञान ध्यान सिरजाये हे।

अलख जगाये विश्व पटल मा, दुख सुख सबो समाये हे।। 


सूर जायसी तुलसी मीरा, कहें कबीरा के बानी।

देव नागरी अवधी बोली, धरे धरोहर हें ज्ञानी।।


आखर-आखर मुखरित हो के, स्वर व्यंजन बन जाथे जी।

उदित भाव मन के अभिव्यक्ति, भाखा अपन कहाथे जी।।


शब्द-शब्द मा भरे हवय रस, मधुर मधुर मधुरस बोली।

सखी-सहेली भोली प्यारी, ननपन के हे हमजोली।।


छंद-सोरठा कविता-दोहा, गीत-गजल अउ चौपाई।

गौरव-गाथा वीरन मन के, कहिथें  हिंदी भाषाई।।


उगती-बुड़ती बगरे हाबय, भारत भर हिंदी भाखा।

पढ़ो-लिखो अउ पोठ करौ जी, राज-काज सब मा राखा।।


मलयाली गुजराती गोंडी, उड़िया द्रविड़ हवै भाषा।

हलबी भतरी अउ सरगुजिया, हिंदी मन के अभिलाषा।। 


एक-सूत्र मा बाॅधय जन-जन, सरल-सहज हिंदी बोली।

देश राज के घर अॅगना मा, रंग भराये रंगोली।।


रामकली कारे बालको नगर


हिंदी दिवस की आप सबको सादर बधाई

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