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Saturday, September 18, 2021

भगवान विश्वकर्मा जयंती विशेष


 भगवान विश्वकर्मा जयंती विशेष


जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)


देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक।

बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।


धरा धाम सुख सरग बनाइस,सिरजिस लंका सोन।

पुरी द्वारिका हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।


चक्र बनाइस विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।

यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।


इंद्र देव के बज्र बनाइस,पुष्पक दिव्य विमान।

सोना चाँदी मूँगा मोती,बीज भात धन धान।


बादर पानी पवन बनाइस,सागर बन पाताल।

रँगे हवे रुख राई फुलवा,डारा पाना छाल।


घाम जाड़ आसाढ़ बनाइस,पर्वत नदी पठार।

खेत खार पथ पथरा ढेला,सबला दिस आकार।


दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।

बबा विश्वकर्मा जी सबके,पहिली सिरजनकार।


सबले बड़का कारीगर के,हवै जंयती आज।

भक्ति भाव सँग सुमिरण करले,होय सुफल सब काज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज

(विश्वकर्मा महराज)


हो देव शिल्पी आप प्रभु,शुभ विश्वकर्मा नाम हे।

सिरजन करइया विश्व के,अद्भुत तुँहर ये काम हे।।

सुमिरन करै नर-नार सब,जोड़े दुनों जी हाथ ला।

चौखट खड़े सब हे भगत,देखव झुकाए माथ ला।।


रचना करइया जीव के,मन्दिर महल घर द्वार के।

कल कारखाना ला रचे,वन डोंगरी संसार के।।

अउ बज्र रचना इंद्र के,तिरशूल भोलेनाथ के।

गहना रचे  अद्भुत इहाँ, श्रृंगार नारी माथ के।।


सुग्घर पुरी अउ द्वारिका,रामा अवध श्री धाम ला।

सार्थक करे रचना गजब,कारीगरी के नाम ला।।

सागर बँधाए सेतु अउ,पुलिया बड़े बाँधा बड़े।

औजार सब बनिहार बर,महिनत सिखाए जी खड़े।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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भगवान विश्वकर्मा पहिली, कारीगर जग मा।

आनी बानी जिनिस बनाये, हे सुग्घर जग मा।।


महल अटारी हवय बनाये, अउ औजार घलो।

बखत परे मा मायानगरी, जस संसार घलो।।


तोर बनाये पुरी द्वारिका, हावन धाम सुने।

पांडव मन के इंद्रप्रस्थ के, हावन नाम सुने।।


शंख पदुम अउ चक्र सुदर्शन, मा तँय प्राण भरे।

इंद्रपुरी अउ इंद्र सिंहासन, के निर्माण करे।।


 तोर बनाये ये दुनिया सब, अद्भुत अनुपम हे।

रिहिस सोन के तोर बनाये, लंका चमचम हे।।


तोर कला गुण अउ महिमा हा, अपरम्पार हवै।

तोर बिना प्रभु सदा अधूरा, ये संसार हवै।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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सरसी छंद


कारीगरी देवशिल्पी के ,महिमा अगम अपार।

तोर कला के सिरजन अद्धभुत ,जानत हे संसार।।


गढ़ दिन अमरावती इंद्र बर , वज्र सही औजार।

मन मोहन बर पुरी द्वारका ,चक्र सुदर्शन धार।।


सब देवन के महल अटरिया , अलग अलग हे नाम।

कारीगर हवे विश्वकर्मा , अद्धभुत अनुपम काम।।


पांडव मन के इंद्रप्रस्थ ला ,कहँय कल्पना लोक।

कला देवशिल्पी के देखत ,भागे मन के शोक।।


अतुल अचंभित कला देखके ,सोचय पालनहार।

जग के दू झन सर्जक आवन ,दुनो बराबर भार।।


शिल्प क्षेत्र व्यापार जगत के , इही देव आराध्य।

श्रद्धा पूजा भाव भक्ति से ,चमकावत हे भाग्य।।


हवय कारखाना कलयुग मा ,मिले हवय परसाद।

बबा विश्वकर्मा हा देवय ,श्रम ला आशीर्वाद।।




आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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