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Monday, September 6, 2021

शिक्षक दिवस विशेष


 शिक्षक दिवस विशेष

 छप्पय छन्द-द्वारिका प्रसाद लहरे


गुरू चरण के छाँव,सरग के जइसे लागय।

गुरू ज्ञान ले आज,भाग हा मोरो जागय।

टारय जग अँधियार,ह्दय मा भरय प्रकाशा।

अमरित धार बहाय,लगे जस मीठ बताशा।।

करौं गुरू के वंदना,निसदिन माथ नवाँव जी।

गुरू भक्ति मा बूड़ के,शिष्य महूँ कहलाँव जी।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

बायपास रोड़ कवर्धा 

छत्तीसगढ़

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पाकर गुरुवर की कृपा, लिख पाता कुछ छंद।

नहीं  दिखाता   विद्वता,  द्वार  बुद्धि  का  बंद।।

द्वार  बुद्धि  का  बंद, सूत्र  विस्मृत  हो  जाता।

केवल   लय    आधार,   रखा   छंदों  से  नाता।।

बिना  सूत्र  लय  ज्ञान, ब्लॉग में लिखता जाकर।

आज धन्य यह शिष्य,'अरुण' सम गुरुवर पाकर।।

सूर्यकांत गुप्ता कांत

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सदा बनाये रखहु गुरू अपन आशीष के छाँव 

आप मन के आशीष ले ही कुछ बन पाय हँव

धन्य होगे मोर भाग जबले 

आपके चरण मा आय हँव

मयँ तो अज्ञानी रहेंव ज्ञान के भण्डार होगे 

महु कुछु बन गेव आपके उपकार होगे 

जुग जुग जीयव गुरू सदा आपके नाम रहय

पहली वन्दन आप मन के चरण मा गुरू 

चाहे दुनिया मा काही काम रहय

आपमन किरपा बरसे जौन डहर जाँव 

जम्मो गुरूदेव अउ गुरुदीदी मन के परत हँव पावँ

सदा बनाये रखहु गुरू अपन आशीष के छाँव 


राकेश कुमार साहू 

सारागांव ,धरसींवा ,रायपुर 

छन्द साधक  सत्र -14

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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज*

(शिक्षक दिवस)


शिक्षक रथे माँ-बाप कस,रद्दा दिखाथे ज्ञान के।

रक्षा करौ जुरमिल सबो,संगी इँखर सम्मान के।।

माटी  सहीं  लइका रथे,जिनगी  इही  गढ़थे बने।

पा के सबो शिक्षा इहाँ, अँगरी पकड़ बढ़थे बने।।


जलके बने दीया सहीं,करथे अँजोरी ज्ञान के।

अज्ञान मिट जाथे  सुनौ, रद्दा सँवरथे मान के।।

धर के कलम पट्टी बने,आखर सिखाथे जोड़ के।

नइ भेद कखरो ले करै,नइ जाय मुख ला मोड़ के।।


शिक्षा बिना जग सून हे,शिक्षा बिना अँधियार हे।

शिक्षा बिना अनपढ़ सबो,जिनगी इँखर बेकार हे।।

आवव करौ सम्मान ला,आवव पखारव पाँव ला।

मिलही बने आशीष हा, पाहव सुखी के छाँव ला।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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विष्णुपद छंद


बिन स्वारथ के ज्ञान जगत मा, वो बगरावत हे।

रोज छात्र मन ला शिक्षक हा, देख पढ़ावत हे।।


पढ़ा रोज लइका ला शिक्षक, देवय ज्ञान इहाँ।

परमारथ बर जिनगी अर्पित, काम महान इहाँ।।


जइसे बरसा ये भुइँया के, प्यास बुझावत हे।

जइसे रद्दा मनखे मन ला, घर पहुँचावत हे।।


नदी कुआँ अउ रुखराई, पर सेवा करथे।

जंगल पर्वत खेतीबारी, सबके दुख हरथे।।


माटी के लोंदा ला सुग्घर, दे आकार इहाँ।

आनी बानी जिनिस बनाथे, रोज कुम्हार इहाँ।।


शिक्षक हा शिक्षक के शिक्षक, लइका  मास्टर हे।

नेता अधिकारी वकील अउ, कोनो डॉक्टर हे।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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