सरसी छन्द गीत : *फोकट खाये के चक्कर मा*
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।
लालच मा पर के जनता हा, होवत हवे अलाल।
मिहनत के अब खून पछीना, नइ पावत हे मान।
बइठाँगुर मन अटियावत हें, महल अटारी तान।
ठलहा बइठे जीभ चलइया, ऊंचा पीढ़ा पाय।
मिहनत के देवता ह रोवय, बइठे मुड़ ठठाय।
रोजी रोटी नोहर होगे, सिरिफ चलत हे गाल।
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।
कर्जा ले ले घीव पियत हे, सुख भोगे भरपूर।
भावी पीढ़ी के सपना हर, होही चकनाचूर।
राजनीति सौखी मारत हे, फेंक कोंड़हा देख।
मछरी मन के भाग म मरना, लिखय विधाता लेख।
आँखी राहत अँधरा हो के, देखत नइ हन जाल।
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।
कागज मा छम छम नाचत हे, सबो योजना खूब।
गाँव गली बस पहुँचे नारा, धन हर जाथे डूब।
भ्रष्टाचार ह सड़क बनाथे, बइमानी हर पूल।
वादा के का मरजादा हे, पल मा जाथे भूल।
तभे कोलिहा सत्ता पाथे, रेंग टेड़गा चाल।
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।
🙏🏻मथुरा प्रसाद वर्मा
कोलिहा, बलौदाबाजार (छ.ग.)
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