अक्ती तिहार विशेष छंदबद्ध कविता..
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: हरिगीतिका छंद-अक्ती
मिलजुल मनाबों चल चली अक्ती अँजोरी पाख में।
करसा सजा दीया जला तिथि तीज के बैसाख में।।
खेती किसानी के नवा बच्छर हरे अक्ती परब।
छाहुर बँधाये बर चले मिल गाँव भर तज के गरब।।
ठाकुरदिया में सब जुरे दोना म धरके धान ला।
सब देंवता धामी मना बइगा बढ़ावय मान ला।।
खेती किसानी के उँहे बूता सबे बइगा करे।
फल देय देवी देंवता अन धन किसानी ले भरे।।
जाँगर खपाये के कसम खाये कमइयाँ मन जुरे।
खुशहाल राहय देश हा धन धान सुख सबला पुरे।।
मुहतुर किसानी के करे सब पाल खातू खेत में।
चीला चढ़ावय बीज बोवय फूल फूलय बेत में।।
ये दिन लिये अवतार हे भगवान परसू राम हा।
द्वापर खतम होइस हवै कलयुग बनिस धर धाम हा।
श्री हरि कथा काटे व्यथा सुमिरण करे ले सब मिले।
धन धान बाढ़े दान में दुख में घलो मन नइ हिले।
सब काज बर घर राज बर ये दिन रथे मंगल घड़ी।
बाजा बजे भाँवर परे ये दिन झरे सुख के झड़ी।।
जाये महीना चैत आये झाँझ झोला के समय।
मउहा झरे अमली झरे आमा चखे बर मन लमय।
करसी घरोघर लाय सब ठंडा रही पानी कही।
जुड़ चीज मन ला भाय बड़ शरबत मही मट्ठा दही।
ककड़ी कलिंदर काट के खाये म आये बड़ मजा।
जुड़ नीम बर के छाँव भाये,घाम हे सब बर सजा।
लइकन जुरे पुतरा धरे पुतरी बिहाये बर चले।
नाँचे गजब हाँसे गजब मन में मया ममता पले।
अक्ती जगावै प्रीत ला सब गाँव गलियन घर शहर।
पर प्रीत बाँटे छोड़के उगलत हवै मनखे जहर।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
9981441795
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अकती के बिहाव*
चौपाई छन्द - बोधन राम निषाद राज
अकती के बेरा हा आगे।
मनखे मन मा खुशियाँ छागे।।
जुरमिल मड़वा सब गड़ियाही।
पुतरी पुतरा बिहा रचाही।।
दूनों सँग मा भाँवर होही।
जनम-जनम के बनही जोही।।
अँगना मा मड़वा गड़ियाबो।
आमा डारा ओमा छाबो।।
गहूँ पिसानी चउँक पुराबो।
करसा पोरा बने सजाबो।।
कँडरा घर के पर्रा बिजना।
छिंदी पाना मउँरे फुँदना।।
डूमर के मँगरोहन बनही।
तील तेल सँग हरदी चढ़ही।।
बइला गाड़ी जाय बराती ।
पुतरा के सँग जाय घराती।।
बड़े बिहनिया समधी पाबो।
पुतरी गौना घलो कराबो।।
जम्मों सँगवारी हा आही।
खुशी-खुशी सब जेवन खाही।।
बारा महिना मा ये आथे।
गंगा जइसे सबो नहाथे।।
हँसी खुशी मा जाथे डेरा।
बड़े मजा मा बीते बेरा।।
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज "विनायक'
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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: अकती परब के महत्व - दोहा छंद
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(1)
माँ गंगा के अवतरण,इहि भुइयाँ मा आज।
महातपी भागीरथी,करिन पुण्य के काज।।
(2)
परशुरामा अवतरण,जप तप करिन अनेक।
जलत रहिन बड़ क्रोध मा,हरि गुण गाइन नेक।।
(3)
मातु अन्नपूर्णा घलो, होय अवतरण आज।
सबो चराचर जीव ला,अन्न दिए अउ राज।।
(4)
चीरहरण माँ द्रोपती,होइस इहि दिन काल।
हरिहर श्री भगवान हा,ओला लिन संभाल।।
(5)
कृष्ण सुदामा बन सखा,होइस इक संजोग।
अमर प्रेम गुणगान के,आइस हे दिन योग।
(6)
धन के देव कुबेर ला,मिलिस खजाना आज।
अधिपति राजा स्वर्ग बन,करिन अचल वो राज।।
(7)
सतयुग त्रेतायुग बनिस,इहि दिन ले संसार।
ब्रम्ह पुत्र के अवतरण,अक्षय वीर कुमार।।
(8)
सुग्घर बद्रीनाथ के, नारायण शुभ धाम।
खुलथे मंदिर द्वार हा,इहि दिन ले अविराम।।
(9)
वृंदावन के धाम मा, कृष्ण बिहारी लाल।
दर्शन श्री विग्रह चरण, इहि दिन केवल साल।
(10)
अंत महाभारत घलो, कौरव पांडव युद्ध।
शांत चित्त मनखे सबो,मिटिस ह्रदय के क्रुद्ध।।
(11)
खेत किसानी काम ला,करथे शुरू किसान।
इहि दिन नाँगर जोतथे,पाँच मुठा ले धान।।
(12)
सुग्घर सिद्ध मुहूर्त हे,अकती तीज तिहार।
गौरी लाल गणेश सब,हरथे विघ्न अपार।।
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छ.ग.)
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आगे अक्ती (सरसी गीत)
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आगे अक्ती अब तो देखत, लगगे नावा साल।
धरले राँपा झउँहा भाई, खातू देबो पाल।
हूम-धूप अउ नरियर धरले, धान एक सौ आठ।
बने सुमर के महादेव ला, करबो पूजा-पाठ।
पहिली पुजबो बिघन हरइया, स्वामी गिरिजा लाल।
धरले राँपा झउँहा भाई, खातू देबो पाल।
काँटा खूँटी ला बिन देबो, हमन बाहरा खार।
मुँही-पार ला घलो सजाबो, उहिती परथे नार।
काँद दुबी ला छोल मड़ाबो, करथें बड़ बेहाल।
धरले राँपा झउँहा भाई, खातू देबो पाल।
करबो मुहतुर धर बिजबोनी, जाबो टिकरा खार।
कुत देथे बड़ भाठा-सरना, सुग्घर ओकर डार।
धान हरहुना बों देबो गा, परथे अबड़ दुकाल।
धरले राँपा झउँहा भाई, खातू देबो पाल।
चउमासा मा पेड़ जगाबो, देबो गड्ढा कोड़।
भर देबो गा हमन लेग के, गोबर खातू थोड़।
होथे पेड़ 'मितान' असन गा, परदूसन के काल।
धरले राँपा झउँहा भाई, खातू देबो पाल।
आप सब ला अक्ती तिहार के नँगत नँगत बधाई।
मनीराम साहू मितान
कचलोन(सिमगा) जिला- बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़, मो.९८२६१५४६०८
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अक्ती तिहार(दोहा चौपाई)
उल्लाला-
*बेरा मा बइसाख के,तीज अँजोरी पाख के।*
*सबे तीर मड़वा गड़े,अक्ती भाँवर बड़ पड़े।*
हरियर मड़वा तोरन तारा,सजे आम डूमर के डारा।
लइका लोग सियान जुरें हे,लीप पोत के चौक पुरें हे।
पुतरी पुतरा के बिहाव बर,सकलाये हें सबे गाँव भर।
बाजे बाजा आय बराती,मगन फिरय सब सगा घराती
खीर बरा लाड़ू सोंहारी,खाये जुरमिल ओरी पारी।
अक्ती के दिन पावन बेरा,पुतरी पुतरा लेवव फेरा।
सइमो सइमो करे गली घर,सबे मगन हें मया पिरित धर।
अचहर पचहर परे टिकावन,अक्ती बड़ लागे मनभावन।
दोहा-
*परसु राम भगवान के,गूँजय जय जय कार।*
*ये दिन भगवन अवतरे,छाये खुसी अपार।।*
शुभ कारज के मुहतुर होवय,ये दिन खेती बाड़ी बोवय।
बाढ़य धन बल यस जस भारी,आस नवा बाँधे नर नारी।
माँगै पानी बादर बढ़िया,जुरमिल के सब छत्तीसगढ़िया।
दोना दोना धान चढ़ावय,दाइ शीतला ला गोहरावय।
सोना चाँदी कोनो लेवय,दान दक्षिणा कोनो देवय।
पुतरी पुतरा के बिहाव सँग,पिंवरावै कतको झन के अँग।
दोहा-
*देवी देवन ला मना,शुरू करे सब काज।*
*पानी बादर के परख,करे किसनहा आज।*
*करसी मा पानी मढ़ा,बारह चना डुबाय।*
*भींगय जतकेकन चना,ततके पानी आय।*
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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अक्ती तिहार
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(बरवै छंद)
हवै तृतीया के तिथि, शुभ दिन खास।
सबो डहर बगरे हे, पुण्य उजास।।
अबड़ दुलरवा हरि के, हे बइसाख।
अउ अंजोरी तेकर, पावन पाख।।
अक्ती छत्तिसगढ़ के,बड़े तिहार।
नेंग जोग सँग एमा, नेक विचार।।
गाँव शहर मा माते, बहुत बिहाव।
ये अबूझ मुहरत के, करे हियाव।।
पुतरा पुतरी भाँवर, ये दिन होय।
सद गृहस्थ के सुंदर, पाठ सिखोय।।
पूजा कर धरती के, धान जगाय।
खेती बर हलधरिया, लगन लगाय।।
अक्ती के गुन गाथें, वेद पुरान।
अक्षय फल मिलथे जी, करलव दान।।
राहगीर मन बर तो , खोलव प्याउ।
'चोवा राम' के बिनती, सुनलव दाउ।।
टाँगौ जल चिरगुनिया, प्यास बुझाय।
पेंड़ लगादव कोनो, बइठ थिराय।।
परशुराम हा ये दिन, लिस अवतार।
मारिस पापी मन ला, हे उपकार।।
जुलुम करौ झन अउ मत,साहव मित्र।
दया मया के छापव, सुंदर चित्र।।
संस्कारी हे हमरो,रीत रिवाज।
चलौ बँचाके राखन, ऊँकर, लाज।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,
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*अक्ती तिहार*
*सरसी छंद*
अक्ती के हे अब्बड़ महिमा , करलव सुघ्घर दान।
क्षय नइ होवय कभू पुण्य हा, कहिथे वेद पुराण।।
शुभ तिथि सिध्द मुहूरत आये,अक्ती तीज तिहार।
तन मन धन से सब शुभ कारज, करथे ये संसार।।
अबड़ अकन हे कथा कहानी, किसम किसम संजोग।
गंगा के अवतरण दिवस हे, बने मुक्ति के योग।।
अमर विप्र कुल तारक जनमे, हरि अंश परशुराम।
शूरवीर अउ परमप्रतापी, धर्म ज्ञान के धाम।।
छैमासा बर खुलथे ये दिन, बद्रीनाथ कपाट।
ये दिन के सब दुनिया वाले ,जोहत रहिथे बाट।।
छतीसगढ़ के बात करय तो, जावय खेत किसान।
बीज बोंय बर शुरू करत हें , धर टुकनी में धान।।
अक्ती के दिन करसा रखके , सुघ्घर परछो पाय।
चार दिशा के माटी कुढ़ही, वोमा घड़ा मढ़ाय।।
यक्षराज ला मिलिस खजाना, धनपति बनिस कुबेर।
पूजा करथें जगत भगत सब, रोज लगावँय टेर।।
अनपूर्णा दाई ये जग मा, अवतारे हे आज।
जेखर वासा घर घर में हे, चलथे वोखर राज।।
कतिक बखानँव अक्ती महिमा, हावय कथा अनंत।
दान पुण्य के गुण गाथा ,होय कभू नइ अंत।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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अक्ती (अक्षय तृतिया)
(अमृतध्वनि छंद)
आथे अक्ती के परब,महिना जब बैसाख।
पुतरी - पुतरा साजथे,तीज अँजोरी पाख।।
तीज अँजोरी,पाख मनाथे,शुभ फल पाथे।
बेटी - बेटा, बर बिहाव के, लगन लगाथे।।
घर-घर करसा, पूजा करथे, बड़ सुघराथे।
काम किसानी,शुरु होथे जब,अक्ती आथे।।
रचना:-
बोधन राम निषादराज
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आशा देशमुख: *अक्ती तिहार*
*सरसी छंद*
अक्ती के हे अब्बड़ महिमा , करलव सुघ्घर दान।
क्षय नइ होवय कभू पुण्य हा, कहिथे वेद पुराण।।
शुभ तिथि सिध्द मुहूरत आये,अक्ती तीज तिहार।
तन मन धन से सब शुभ कारज, करथे ये संसार।।
अबड़ अकन हे कथा कहानी, किसम किसम संजोग।
गंगा के अवतरण दिवस हे, बने मुक्ति के योग।।
अमर विप्र कुल तारक जनमे, हरि अंश परशुराम।
शूरवीर अउ परमप्रतापी, धर्म ज्ञान के धाम।।
छैमासा बर खुलथे ये दिन, बद्रीनाथ कपाट।
ये दिन के सब दुनिया वाले ,जोहत रहिथे बाट।।
छतीसगढ़ के बात करय तो, जावय खेत किसान।
बीज बोंय बर शुरू करत हें , धर टुकनी में धान।।
अक्ती के दिन करसा रखके , सुघ्घर परछो पाय।
चार दिशा के माटी कुढ़ही, वोमा घड़ा मढ़ाय।।
यक्षराज ला मिलिस खजाना, धनपति बनिस कुबेर।
पूजा करथें जगत भगत सब, रोज लगावँय टेर।।
अनपूर्णा दाई ये जग मा, अवतारे हे आज।
जेखर वासा घर घर में हे, चलथे वोखर राज।।
कतिक बखानँव अक्ती महिमा, हावय कथा अनंत।
दान पुण्य के गुण गाथा के ,होय कभू नइ अंत।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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बृजलाल दावना, धमतरी: *मड़वा हा सजही ( विष्णु पद छंद )*
एसो के अक्ती मा मोरो , मड़वा हा सजही।
जम्मो पहुना मन सकलाही ,बाजा हा बजही।।
हरदी तेल चढ़ाही सुग्घर, देही जी अँचरा।
दीदी भाँटो के सँग आही, अउ भाँची भँचरा।।
मोतीचूर खवाही लाड़ू , माँदी मा मन के।
खीर बरा अउ पापड़ देही , सथरा सब झन के
मउर सजाके मँयहा जाहूँ ,मोटर मा चढ़के।
जाही सँग मा मोर बरतिया , एक सेक बढ़के।।
बाजा -गाजा मा परघाही, मान गौन करही।
दुल्हिन हा मुस्कावत आही , पाँव मोर परही।।
विधि विधान ले पंडित पढ़ही , साखोचार हमर।
देही शुभ आशीष सबो झन , रइहव सदा अमर।।
सुग्घर दुल्हनिया के सँग मा,सब सुख हा मिलही।
घर आही धरके खुशहाली,मया कमल खिलही।।
बृजलाल दावना
भैंसबोड़
6260473556
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