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Monday, May 30, 2022

घनाक्षरी छंद...*

 *घनाक्षरी छंद...*

(१)

सुनो जी बहिन-भाई, अपनावव सफाई,

इही मा हवै भलाई, सत हरै जान लौ। 


स्वच्छ रहै आसपास, गाँव ला बनाव खास,

करौ मिलके प्रयास, गोठ मोर मान लौ। 


छोड़व अब नखरा, बीन लेवव कचरा,

रहिबो साफ सुथरा, मन मा ये ठान लौ। 


छोड़व लापरवाही, रोग ला ये बुलाही,

स्वच्छता के मनोहारी, चढ़ सोपान लौ। 


(२)

पानी नइ रुकत हे, नदी ताल सूखत हें,

काबर ये होवत हे, येकर संज्ञान लौ। 


बचाव जल नल के, चिंता करव कल के,

हरेक बूँद जल के, मोल पहिचान लौ। 


हो गे रंग बदरंगा, मइला गे हे गंगा,

रेहे बर अब चंगा, पानी बने छान लौ। 


मुसकुल ले बचय, जिनगी बने चलय,

पानी सब ला मिलय, खोज वो निदान लौ। 


(३)

रुखराई मन बिना, मुसकुल होही जीना,

घात झरही पछीना, देख वर्तमान लौ। 


पेड़ नइ काटना हे, नदी नइ पाटना हे,

भूमि हरा राखना हे, चला अभियान लौ। 


भुइयाँ जाये सँवर, दिखय बड़ सुग्घर,

हरियाली के उज्जर, छाता फेर तान लौ। 


बने काम करना हे, भू के दुख हरना हे,

रिता झोली भरना हे, कर अनुष्ठान लौ। 


*श्लेष चन्द्राकर,*

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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