रेलगाड़ी- कुंडलियाँ छंद
कतको गाड़ी रद्द हे, कतको मा बड़ झोल।
सफर रेल के जेल ले, का कमती हे बोल।
का कमती हे बोल, रेलवे के सुविधा मा।
देख मगज भन्नाय, पड़े यात्री दुविधा मा।
सिस्टम होगे फेल, उतरगे पागा पटको।
ढोवत हावै कोल, भटकगे मनखे कतको।
ना तो कुहरा धुंध हे, ना गर्रा ना बाढ़।
तभो ट्रेन सब लेट हे, लाहो लेवय ठाढ़।
लाहो लेवय ठाढ़, रेलवे अड़बड़ भारी।
चलत ट्रेन थम जाय, मचे बड़ मारा मारी।
टीटी छिड़के नून, कहै आ टिकट दिखा तो।
यात्री हें हलकान, होय सुनवाई ना तो।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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