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Monday, May 30, 2022

हसदेव अरण्य बचावव-कुंडलियाँ छंद

 हसदेव अरण्य बचावव-कुंडलियाँ छंद


बन देथे फल फूल सँग, हवा दवा भरमार।

नदी बहे झरना झरे, चहके चिरई डार।

चहके चिरई डार, दहाड़े बघवा चितवा।

हाथी भालू साँप, सबे के बन ए हितवा।

हरियाली ला देख, नीर बरसावै नित घन।

सबके राखयँ लाज, पवन अउ पानी दे बन।


जल जंगल हसदेव के, हम सबके ए जान।

उजड़ जही येहर कहूँ, होही मरे बिहान।।

होही मरे बिहान, मात जाही करलाई।

हाथी भालू शेर, सबे मर जाही भाई।

बिन पानी बिन पेड़, आज होवय अउ ना कल।

होही हाँहाकार, उजड़ही यदि जल जंगल।


जंगल के जंगल लुटा, बने हवस रखवार।

पेड़ हरे जिनगी कथस, धरे एक ठन डार।

धरे एक ठन डार, दिखावा करथस भारी।

ठगठस रे सरकार, रोज तैं मार लबारी।

जेला कथस विकास, उही हा सुख लिही निगल।

जुलुम करत हस कार, बेच के जल अउ जंगल।


लोहा सोना कोयला, खोजत हस बन काट।

जीव जंतु सब मर जही, नदी नहर झन पाट।

नदी नहर झन पाट, दूरिहा भाग अडानी।

जंगल जिनगी आय, मोह तज जाग अडानी।

लगही सबके हाय, पाप के गघरी ढो ना।

माटी के तन आय, जोर झन लोहा सोना।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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