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Monday, October 24, 2022

देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध सृजन- छंद के छ परिवार


 रंगोली (द्वारा)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध सृजन- छंद के छ परिवार


 जगमग जगमग

(बाल कविता)

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जगमग जगमग दिया बरत हे,

 देवारी आये हे।

छुरछुरिया अउ चुरचुटिया ला,

बाबू जी लाये हे।


 रंग बिरंगा माचिस काड़ी,

अबड़ मोमबत्ती हे।

हे चटचटा साँप के गोली,

 मजा भरे अत्ती हे।


नान नान सुतरी बम हावय,

रील तमंचा वाला।

हे राकेट उड़इया बादर,

नोक दिखै जस भाला।


हे अनार हा बड़का वाला, 

छोटे बड़े दनाका।

गोल घुमइया चकरी हावय,

जइसे गाड़ी चाका।


आना बंटी आना पिंकी,

मिलजुल खुशी मनाबो।

सावधान हो फोर फटाका,

रोटी-पीठा खाबो।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद (छत्तीसगढ़)

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*बरवै छंद---- धनतेरस*


घर-अँगना ला सुग्घर, देवव साज ।

धनतेरस के पावन, अवसर आज ।।


अँधियारी के तेरस, कातिक मास ।

पूजव प्रभु धन्वंतरि, दिन हे खास ।।


होय शुरू धनतेरस, के शुभ वार ।

करव ध्यान पूजा गा, आय तिहार ।।


धन के बरसा होही, आज अपार ।

भाग जगाही आके,  हमरो द्वार ।।


दीप जलाके जगमग, कर उजियार ।

बाँटव सुख दुख ला अउ, मया दुलार ।।


धन्वंतरि प्रभु करही, रोग निदान ।

औषधि गुन के दाता,  हे भगवान ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

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बोधन जी: //धन तेरस (सार छंद)//


धन तेरस के बेरा आगे,सुग्घर घर उजराबो।

आयुर्वेद देवता सुमिरन,धनवंतरी मनाबो।।


कातिक महिना पाख अँधेरी,तिथि तेरस के आथे।

माटी के तेरह ठन दीया, नारी सबो जलाथे।।

धूप जला के ध्यान लगाके,बने आरती गाबो।

धन तेरस के बेरा आगे,...................


सागर मंथन मा निकलिस हे,अमरित करसा लेके।

धनवंतरी देव दुनिया ला,बाँटिस औषधि देके।।

रोग दोष सब दूर करे बर,माथा सब टेकाबो।।

धन तेरस के बेरा आगे.......................


धन कुबेर के पूजा करबो,धन बरसा करवाही।

घर गरीब के आरो सुनके,पल्ला दउड़त आही।।

सबके भाग्य पलट जाही जी,आवौ चलौ  मनाबो।

धन तेरस के बेरा आगे,.......................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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//नरक चौदस// (लावणी छंद)


कातिक मास नरक चौदस के,

                     आथे     छोटे    देवारी।

लीपे पोते घर अँगना सब,

              खुश लइका अउ नर-नारी।।


दीयादान करे बर यम ला,

                     दीया एक जलाथे सब।

पाप करम ले मुक्ति पाय बर,

                  एखर गुन ला गाथे सब।।

पूजा धूप आरती करथे,

                    फूल पान धर के थारी।

कातिक मास नरक चौदस के...........


किसन कन्हैया के महिमा हे,

                   नरकासुर दानव मारिस।

गोपी मन के लाज बचाइस,

               लीला ला दुनिया जानिस।।

कन्या सोलह हजार इक सौ,

                 मुक्त   कराइस  बनवारी।              

कातिक मास नरक चौदस के,.........


सुग्घर मिल त्यौहार मनाबो,

                  भाईचारा        अपनाबो।

घर-घर दीया बार अँजोरी,

                   गाँव-शहर मा बगराबो।

जगमग-जगमग खोर दुवारी,

                   भागय जम्मों अँधियारी।

कातिक मास नरक चौदस के,...........


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *सरसी छंद*


*ज्ञान के दीया*


ज्ञान भगति के दीया सुग्घर, अंंतस कर उजियार।

तन मन दोनों जगमग होही, मिटही सब अँधियार।।


बाहिर कतको दीया बरही, मन नइ होय अँजोर।

तन के दीया मन के बाती,भक्ति तेल मा बोर।।


मया मोह के आँधी चलही, दीया नहीं बुताय।

कतको बाधा आही तब ले, येला राम बचाय।।


अंतस होही उजियारी तब, देवारी सिरतोन।

भवसागर ले पार उतरही, बिना ज्ञान के कोन।।


*प्यारेलाल साहू*

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🪔दीवाली के दोहे 🪔🪔🪔

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1-

बड़का हमर तिहार हे, घर अँगना सब लीप |

तेरह तेरस के दिया, चौदस चौदह दीप ||

2-

सुरहुत्ती घर-घर जले, चारो कोती दीप |

गली खोर जगमग दिखे, निकले मोती सीप ||

3-

धनतेरस धन माँग ले, चौदस के तँय रूप |

लक्ष्मी पूजा सार हे, रंक बनावय भूप ||

4-

नवा-नवा कपड़ा मिलय, नवा मिलय उपहार |

माता लक्ष्मी बर तुमन, ले लव सुघ्घर हार ||

5

दया करव माता रमा, पूजा कर स्वीकार |

तोर चरण मा दे जघा, हे माँ भर भण्डार ||

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

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] गुमान साहू: दुर्मिल सवैया ।।राम घर आगमन।।


सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।

बनवास बिता रघुनन्दन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।

खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।

सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।।


गुमान प्रसाद साहू 

समोदा (महानदी),आरंग 

जिला-रायपुर ,छत्तीसगढ़

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 रोला-छंद 

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देवारी के दीया 

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

1-

देवारी के जोर, चलत हे चारो कोती |

साफ सफाई खूब, होत हे ऐती वोती ||

पालिस चूना रंग, बिकत हे देखव भारी ||

जुरमिल बने सजाव, अपन घर अँगना बारी |||

2-

रिगबग चारो ओर, बरत हे सुघ्घर दीया |

स्वागत मा घर द्वार, तकत आही राम सिया ||

रावण मारिस राम, अवध मा वापस आये |

नर-नारी सब झूम, खुशी मा दीप जलाये ||

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू 

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी 


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: देव "वारी" के दीया ल बार......


अजब लागय  बड़ गज्जब लागय ,

धन तेरस देवारी के पहिली तिहार।

फ़रिहर तन ले होवय  मन हरियर,

धन्वन्तरी पूजन के आय दिन वार।।


धन के होथे तीन गति सब कहिथे,

नी देबे नी भोगबे ते होथे सबो खुवार।

शुभता सत रद्दा घर परिवार बर वार,

जम्मो जगत आय हमर तुंहर परिवार ।।


चीन चिन्हारी मीत मितानी संग सबो हांसथे गाथे मनाथे परब तिहार।

अनचिन्हार देहरी ला घलो देवन संगी 

बस एक ठिन "दीया " के उजियार ।।


अबला मन के मान खातिर कान्हा

करिस  नरकासूर संहार। 

सोलह हजार गोपियन के लहूट गे,

रूप चौदस सोलह सिंगार ।।


ओखर छोड़ सबो येती वोती संगी

हम सब जाथन मन ला हार ।

रक्षा होथे सुरता लमईया के अउ,

 करथे गोवर्धनधारी मनुहार ।।


लक्ष्मी मईया सब  किरपा करही ,

अन धन ले  कोठी कुरिया भरही।

लेय - लेय मा कतेक सुलगही।

देव "वारी " के दीया ला  बार ।।

              रोशन साहू (मोखला)

                7999840942

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//देवारी के दीया//(सार छंद)


जगमग-जगमग दीया सुग्घर,

                       देवारी  जब  आथे।

रात अमावस के अँधियारी,

                      तुरते तुरत भगाथे।।

                      

लक्ष्मी दाई के अगवानी,

                       करथे नर अउ नारी।

नवा-नवा कपड़ा पहिरे सब,

                       धूप  सजाथे   थारी।।

खील बतासा फूल चघा के,

                      सब अशीष ला पाथे।

जगमग-जगमग दीया................


चौदह बरस काट बनवासा,

                    राम अवध जब आइस।

इही खुशी मा भारत वासी,

                    सबो  तिहार  मनाइस।।

परम्परा ला देखत पुरखा,

                     सुग्घर   रीत  निभाथे।

जगमग-जगमग दीया..................


चुक ले अँगना तुलसी चौरा,

                      पास   परोस   दुवारी।

दीया दान घलो करथे सब,

                     पर घर मा सँगवारी।।

सुरहुत्ती ये रात कहाथे,

                      सबके मन ला भाथे।।

जगमग-जगमग दीया.................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*देवारी परब* (दोहा छंद)


लीप पोत के घर सजे, सजगे अँगना खोर ।

जुगुर- बुगुर दीया बरै, देखव  ओरी  ओर ।।


आगे  देवारी  परब,  दीया  बारौ  द्वार ।

लछमी पूजा सब करौ, होही नइया पार ।।


नरियर- फूल चढ़ाव जी, माँगव तुम वरदान । 

लछमी किरपा होय ले, पावव सब धन-धान ।।


रीत चलत आवत हवय, पुरखा जुग ले जान ।

घर- घर जा करथें सबो,  सुग्घर दीया दान ।


मया- पिरित बाँटौ सबो,  दुख जाए जी भाग ।

सबो रहे बर सीख लव, तिल मा गुड़ कस पाग ।।


सुग्घर- सुग्घर  ओनहा,  पहिरे  निकलौ आज ।

पबरित मन ला तुम रखौ, सुफल करौ सब काज ।।


घर- घर मा हावय बने,  लड्डू  पेड़ा  खीर ।

लेवव मजा तिहार के,  मन मा रख के धीर ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

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: कुण्डलिया- अजय अमृतांशु 


बारव दीया ज्ञान के, घर-घर ओरी ओर।

पहुँचय अंतिम छोर तक,

शिक्षा के अंजोर।।

शिक्षा के अंजोर, देश तब आगू बढ़ही।

मिलही सुग्घर ज्ञान, नवा रद्दा तब गढ़ही।।

पढ़ लिख हो हुशियार, बिपत खुद के तुम टारव।

आय देवारी आज, ज्ञान के दीया बारव।।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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: *सरसी छन्द* 


बाई बोलिस येला-ओला, जाके जल्दी लान। 

देवारी त्योहार मानबो, होगे हवय बिहान।। 


देवारी बर जिनिस बिसाये, गेंव हाट-बाजार। 

काला लेवँव काला छोड़ँव, महँगाई के मार।। 


महँगा हे सब्जी-भाजी अउ, हरदी मिरचा तेल। 

महँगाई के आग लगे हे, जिनगानी अब फेल।। 


🙏🙏धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा'🙏🙏

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 सार छंद 

जुआ निषेध


जुआ नशा के मोहफाॕस मा,लगे चुलुक हे भारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


धान अटावत हे कोठी के,निकले बोरा बोरा|

भरे ओनहारी डोली हा,जरगे जइसे होरा||

रोवय लइका चिहुक बिदुक के,जुच्छा हावय थारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


गाॕव गली सब पारा पारा,जगमग दीया बरथे|

सबके घर अउ अॕगना चौरा,मन ला अड़बड़ हरथे||

ददा जुआ मा सब ला हारे,करथे झगरा गारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


नवा ओनहा बछर बीतगे,तन ला हावय ढांपे|

भरे जाड़ मा हाॕड़ा अब तो,अस बाती कस कांपे||

तन मन के सब खुशी हजागे,बाढे़ देख लचारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


शिवानी कुर्रे

हरदी विशाल बलौदा जांजगीर चाॕपा छग 🙏🙏

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 *सरसी छन्द - देवारी तिहार*


सबके घर जगमग होवय जी, अउ जिनगी आबाद ।

एसो के देवारी गूँजय, गीत खुशी के नाद ।।


माँ लक्ष्मी के कृपा पाय सब, धन के हो बरसात ।

झन राहय कोन्हों निर्धन बस, भागय करिया रात ।।


छोटे बड़का के भेद मिटय, जागय समता भाव ।

सुख दुख मा सब मीत मितानी, झन तो रहे दुराव ।।


प्रहरी बन सीमा रक्षा में, हे भारत के लाल ।

उनकर घर उजियारा दमके, छुवय कभू मत काल ।।


उन्नति के पथ में रेंगय जी, प्रगतिशील हो देश ।

हर मनखे समृद्ध होय इँहा, छुवय अगास प्रदेश ।।


टुकना भर भर मोर बधाई, झोंकव अबके साल ।

देवारी शुभ मंगलकारी, रहय सबो खुशहाल ।।


नंदकिशोर साव "नीरव"

लखोली, राजनांदगांव

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 आशा देशमुख: गीतिका छंद


देवारी के दीया


आय देवारी सुघर जी, पाँच दिन के ये परब। 

देख जगमग रात अइसन, चन्द्र के टूटे गरब।। 

सुख सहित सद्भाव सुम्मत, परघनी धन   धान के। 

हाथ लक्ष्मी हा धरे  शुभ लाभ सुख सम्मान के।।


 बैठ टुकनी मा सुआ रे, बोल सुख के राग ला। 

सुन बने धरबे सुआ ना, मन मया के पाग ला। 

भाग्य खेती हा लिखत हे, गाँव घर परिवार के। 

आस में कुम्हरा घलो हे, आय दिन उजियार के।।


बाहरी सुपली घलो मन, हाँस् के बूता करे। 

रंग मन करके पुताई, द्वार रंगोली भरे।।

सब डहर फूटे फटाका, हर शहर हर गाँव मा। 

हाट अउ व्यापार दुनिया, हे दिखे धन छाँव मा।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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 मनोज वर्मा: कुण्डलिया छंद


देवारी 


देवत हॅंव शुभकामना, झोकत जी जोहार।

सुख समृद्धि यश शांति नित, रहे सदा निज द्वार।।

रहे सदा निज द्वार, बिराजे रिद्धि सिद्धि हर।

लक्ष्मी करे निवास, सरसती पाय वृद्धि गर।।

संगी बने कुबेर, चले सब दुख ला खेवत।

देवारी शुभ होय, बधाई मॅंय हॅंव देवत।।


जिनगी जगमग होय जस, देवारी त्योहार।

करम दीयना बन बरे, मन के जाला झार।।

मन के जाला झार, बहारे लीपे जस घर।

निरमल रहे चरित्र, सजे जस भिथिया सुग्घर।।

तेल मया के डार, नता बड़ चमके बगबग।

सबके दिन शुभ होय, रहे अउ जिनगी जगमग।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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: *शंकर छंद*~~~*लछमी पूजा* 


राखव घर ला लीप पोत के, परब हावय खास ।

घर- घर आही लछमी दाई,  पुरन होही आस ।।

खोर गली के करव सफाई, चउँक सुग्घर साज ।

सुख सुम्मत धर संगे आही, बनाही सब काज ।।


बनही घर- घर लड्डू मेवा, खीर अउ पकवान ।

ध्यान लगाके पूजा करिहव, मिलय जी वरदान ।।

धन दौलत ले कोठी भरही,  लगाही भव पार ।

देवारी  के  परब  मनावव,  होय जगमग द्वार ।।


नरियर- फूल चढ़ावव संगी, जोर  दूनों  हाथ ।

किरपा करही लछमी दाई,  नवावव जी माथ ।।

लाही जग मा उजियारी ला, भगाही अँधियार ।

जम्मो जुरमिल खुशी मनावव, आय पावन वार ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग.)

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[ *सरसी छंंद*

*विषय-देवारी*

               *(१)*

जगमग दीया के देवारी, आथे बने तिहार।

लीप-पोत के फूल सजाथें, घर अँगना अउ द्वार।। 


सबो जलाथें देवारी मा, दीया ओरी-ओर।

गली-खोर दिखथे चकचक ले, चारों मुड़ा अँजोर।। 


लक्ष्मी दाई के पूजा कर, करथें सब गुणगान।

नरियर अउ फल-फूल चढ़ाके, लेथें धन वरदान।।

                    *(२)*


करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।

चीज अगरहा अब झन लेवव , जेकर नइ हे काम।। 


मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।

बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


झन फोड़व गा तुमन फटाका, पर्यावरण बचाव।

सबो सादगी ले देवारी, मिलके बने मनाव।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

   पाली जिला कोरबा 

      *सत्र १४*

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अश्वनी कोसरे 9: *चौपई छंद* 

 *देवारी परब* 


ईशर गौरा के जय बोल, बाजत हवय नगाड़ा ढोल|

गौरा गौरी के सिर ताज,बर बिहाव के सजही साज||


आज मनाबो परब उजास, घर अँगना सजगे हे खास|

जगमग जगमग जलही दीप, घर दुआर अँगना ला लीप||


गाँव गली मा हवय अँजोर, लइकन देख मचावँय शोर|

फूलझड़ी लटके हे खोर, पटकँय पटकन लइकन फोर ||


माँ लक्ष्मी के हवँय उपास, अन धन वैभव बर उल्लास|

देवारी बर सुमरन देव, मिटय भरम अउ जग के भेव||


सुरहुत्ती के सुग्घर योग, चउँर फरा ले लगही भोग|

चारो पहर अमावस रात, सुआ नाच देहीं सौगात||


सखी सहेली करहीं पोठ, सुख दुख अउ अंतस के गोठ|

थपक थपक के देहीं ताल, झन्नक झाँझर धरे मशाल||


बने बरसही मया असीस, जीयत राहँय लाख बरीष|

राउत नाचँय दोहा पार, मड़ई घुमहीं अँगना द्वार||


अइसन शुभ दिन परब तिहार, जोर धरे हे मया दुलार|

मनखे बर खुशहाली लाय, मन चाहा फल देवन आय||


छंदकार -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोंडी कवर्धा कबीरधाम

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1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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देवारी मा पानी(तातंक छंद)


रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।


हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।

छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।

खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।


काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।

बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।

फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।


चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।

काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।

काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।

खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।

मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

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//अन्नकूट-गोबर्धन// सार छंद*


अन्नकूट गोबर्धन पूजा,

                 हिन्दू   सबो   मनाथे।

देवारी के दूसर दिन मा,

                 ये तिहार जब आथे।।


घर के आगू गोबर ले के,

                      पुतरा एक बनाथे।

चारों कोती फूल मेमरी,

                    पर्वत घलो सजाथे।।

दूध, दही, गंगाजल, मँदरस,

                     करसा मा भर लाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा...............


कातिक एकम पाख अँजोरी,

                      महिमा गोबर्धन के।

बड़े बिहनिया करथे पूजा,

                     कृष्ण नंदनंदन के।।

परिक्रमा जे सात लगाथे,

                    घर मा धन भर जाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा..............


गरब इंद्र के टोर कृष्ण हा,

                     गोकुल गाँव उबारिन।

शुरू करिन गोबर्धन पूजा,

                    अन्न भोग लगवाइन।।

तइहा के ये परम्परा ला,

                    मिलके आज निभाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा...............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*सरसी छन्द* (महँगाई मा देवारी)🪔

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देवारी *सुरसुरी* असन मैं, मन मा धरे विचार। 

जिनिस बिसाये देवारी बर, गेंव हाट- बाजार।। 


उछलय *अनारदाना* जैसन, हाट देख मन मोर। 

हौंस भुलागे कीमत सुनके, लागिस झटका जोर।। 


मोरे मेरा कमती रुपिया, धरे रहिगेंव हाथ । 

भाव जानके *चकरी* जैसन,घुमगय मोरो माथ।। 


घरू जिनिस के का कहिबे जी, कनिहा देइस टोर। 

भाव सुनके कान मा होइस, *एटम बम* के शोर।। 


भारी महँगा सबो जिनिस हा, होगेंव मैं हताश। 

शौक उड़ागे ऊपर कोती, जस *राकेट* अकाश।। 


मोरो झोरा खाली आगय, महँगाई के मार। 

होके मैं *फुस्की फोटक्का*, लहुटेंव अपन द्वार।। 


मातु-पिता अउ गौमाता के, परेंव पाँव पखार। 

खपरा चीला खा मनायेंव, देवारी त्योहार।। 


🙏🙏धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा'🙏🙏

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(कुण्डलिया)


गणराजा के पाँव पर, करबो जै जोहार।

माता लक्ष्मी आय हे, लेबो चरन पखार।

लेबो चरन पखार,सुवा नाचत परघाबो।

राउत दोहा पार,चलौ सब खुशी मनाबो।

देवारी हे पर्व, घिड़कही कसके बाजा।

 देही असिस कुबेर,कृपा करही गणराजा



रिगबिग-रिगबिग प्रेम के, दियना करै अँजोर।

दुख के आँसू झन झरै, ककरो आँखी कोर।

ककरो आँखी कोर, उदासी हा मत छावै।

देश बनै खुशहाल,गरीबी उट्ठ परावै।

कोठी छलकै धान, करै धन सिगबिग-सिगबिग।

मन-डेरौंठी ज्ञान, जोत हा बगरै रिगबिग।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 त्रिभंगी छंद

विषय,,,,देवारी


देवारी आगे, सब ला भागे,कपड़ा पहिने,नवा नवा ।

मां लक्ष्मी जी के,पूजा करके,मंत्र जपे सब,लाख सवा ।।

रंगे रंगोली,हरियर लाली, घर ॲगना मा,रंग भरे ।

वो दीप जलाके,खुशी मनाके,मन के तम ला,दूर करे ।।


आगे देवारी,सुन‌ नर‌ नारी,दया‌ मया‌ के,दीप जला।

हे मन मा काला‌,बना उजाला ,सबके कर जी , रोज भला ।।

जल बाती बनके ,रहिले तनके,नवा नवा सब,भाव जगा।

आहे देवारी ,छोड़ लबारी, पर ऊपर झन, दोष लगा ।।


लिलेश्वर देवांगन

गुधेली बेरला

साधक--१०

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 //ईसरदेव-गौरा// आल्हा छंद गीत

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कातिक महिना धरम-करम के,

                  आवौ थोकन करौ हियाव।

ईसरदेव संग गौरा के,

                 जम्मों सुग्घर गुन ला गाव।।


देवारी के पहिली दिन सब,

                   फूल कुचरके ठउर बनाय।

देवारी के बाद रात भर,

                   माटी के पुतरा सिरजाय।।

बने सनपना साजे ईसर,

                   गौरा - गौरी  दर्शन  पाव।

कातिक महिना धरम-करम के.........


एक मुहल्ला ईसर राजा,

                     दूल्हा के बारात सजाय।

दूसर पारा गौरा रानी,

                    परम्परा के रीत निभाय।।

बाजा-गाजा फुटे पटाखा,

                 मिलके जम्मों खुशी मनाव।

कातिक महिना धरम-करम के.........


दरबर-दरबर चले बराती,

                   गौरा - गौरी  गीत  सुहाय।

हाथ-गोड़ मा साँट पिटावत,

                    टूरा पिल्ला मन हरषाय।।

बड़े बिहनिया होय विसर्जन,

                  नवा बछर बर सोर लमाव।

कातिक महिना धरम-करम के..........

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *गोवर्धन पूजा*

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(वीर छंद)

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वन परवत धरती के रक्षा, गोवर्धन के पूजा आय।

गौ माता के सोर-सरेखा, इही हमर संस्कार कहाय।।

गौ माता के अंग-अंग मा,सबो देव के हावय वास।

अमरित कस गौ गोरस देथे,गोबर खेती बर हे खास।।

जंगल हरियर चारा देथे,परवत भरे रतन के खान।

रुख-राई आक्सीजन देके, हमर बँचाथे सिरतो प्रान।।

द्वापर जुग मा गिरिधारी हा, देइस सब ला निर्मल ज्ञान।

जेन हमर नित पालन करथे, वो भुँइया हे सरग समान।।

मरम धरम के कृष्ण-कन्हैया, ब्रजवासी ला रहिस बताय।

छोंड़ इंद्र के मान-गउन ला, धरनी के पूजा करवाय।।

बिपदा ला मिलजुल के टारौ, कहिस सबो ला वो समझाय।

छाता कस परवत ला टाँगिन, जबर एकता के बल पाय।।

एक बनन अउ नेक बनन हम, भेदभाव ला देवन त्याग।

तभे जागही ये कलजुग मा, भारत माता के तो भाग।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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: *आल्हा छंद* अश्वनी कोसरे

गोवर्धन परब


लोक परब गोवर्धन पूजा, घर घर गौ के होवय मान|

हमर राज के खेती बारी, इँकर श्रम बिन बिरथा जान||


आज किसानन के हे पारी, गौ जेवन बर जुगत अपार|

परसादी ले सजगे थारी, भरे कलस जल ले औंछार||


हूम धूप दे गोरू गइया, पइँया लागँय बारम्बार|

माँ धरनी जस पर उपकारी, बाहन बल धन हे आधार||


नइया लगही पार सबो के, उपजाये हें फसल किसान|

सोन रंग धर दमक उठे हे, बँधिया डोली अउ खलिहान||


कोठी किरगा झलकन लागिन, खेत खार मा बलही पौर|

बियारा मा ढाँके खरही, कोठा मा गोधन के ठौर|


मालिक के घर अन धन आए, सोहर जस दाई के जान|

घँघड़ा पहिरे नाचत राउत,दहकत दफड़ा गुदुम निशान |


गाँव गली मा मंगल बेला, सजगे हे मड़ई बर खाम|

झूमँत हावँय नाचत मनखे, लागत हे वृंदावन धाम||


छंदकार -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोंड़ी कवर्धाकबीरधाम

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/भइया दूज// लावणी छंद

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कातिक महिना पाख अँजोरी,

                     दूज परब दिन आथे जी।

रक्षा बंधन के जइसे ही,

                       हिन्दू सबो मनाथे जी।।


एक कथा पौराणिक हावै,

                       सूरज  के पत्नी  छाया।

दूझन लइका यम अउ यमुना,

                     अब्बड़ हे इँखरो माया।।

पबरित परब मया बहिनी के,

                      भइया दूज कहाथे जी।

कातिक महिना पाख अँजोरी.........


सेवा अउ सत्कार धरम ला,

                       भाई के जे मन करथे।

ओखर तो डर भाव सबो ला,

                   यम भइया जी हा हरथे।।

परम्परा पुरखा सिरजाये,

                   मन मा खुशी समाथे जी।

कातिक महिना पाख अँजोरी...........


भाई अउ बहिनी के सुग्घर,

                     दया मया के बँधना जी।

एखर कारन भइया आथे,

                   बहिनी के घर-अँगना जी।।

जतका बनथे नेंग जोग ला,

                     बहिनी हाथ धराथे जी।।

कातिक महिना पाख अँजोरी..........

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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4 comments:

  1. अद्भुत रचना संग्रह हे गुरुदेव जी

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  2. बहुत सुंदर देवारी तिहार‌ के काव्य संकलन
    शुभ दीपावली 🙏

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