~ पर्यावरण के दोहा ~
बने रही पर्यावरण, बने रही तब लोग।
लापरवाही ले सुनव, धरहीं कतको रोग।।
रक्षा बर ओजोन के, सदा रहव तइयार।
चंगा जिनगी के हमर, इही हरय आधार।।
भुँइया हा हरियर रहय, अइसे कदम उगाव।
किरिया खाके आप मन, हर दिन पेड़ लगाव।।
झिल्ली मन घातक हरय, करथें बड़ नुकसान।
असमय ये लेवत हवँय, गरुवा मन के प्रान।।
भुँइया बर झिल्ली हरय, करिया दाग समान।
कमती येला बउर के, मनखे बनव सुजान।।
खातू मन रासायनिक, खेत करत बर्बाद।
सुग्घर खेती के तभे, हिलत हवय बुनियाद।।
पर्यावरण बचाय बर, देवव सब सहयोग।
भुँइया ला सुग्घर रखव, बनके जियव निरोग।।
दोहाकार - श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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