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Monday, October 10, 2022

कुंडलिया छंद

 कुंडलिया छंद 


करहू कोनो झन कभू, रखहू संगी याद।

धन दौलत पद के नशा, करथे घर बरबाद।

करथे घर बरबाद, कभू झन आदी होहू।

नशा नास के मूल, नहीं जिनगी भर रोहू।

लगे कहू ये रोग, तड़फ के समझौ मरहू।

कहे ज्ञानु कविराय, नशा झन कोनो करहू।


ज्ञानु

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