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Monday, October 10, 2022

सुसकत हे जिनगानी*

 *सुसकत हे जिनगानी*

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*उरक-पुरक के बरसत हावय, रोज-रोज ये पानी।*

 *अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।।*


ढनगत हावय खड़े फसल हा, बादर रइथे ढाँके।

कनकट्टा मन कुढ़होवत हें, बाली मन ला फाँके।

 दुब्बर बर दू ठन असाड़ कस, होगे असो कहानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


 बढ़े प्रकोप तना छेदक के, चुहकत हावय माहो।

 पाना-पाना मुरझावत हे, झुलसा के हे लाहो।

 खैरा रोग धरे हे कसके, जी होगे हलकानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही,सिरजे हमर किसानी।


 महमाया हे माथ नवाये, छटकन लागे सरना ।

कइसे अब हरहुना लुवाही, निच्चट होगे मरना।

 इंद्रदेव हा काबर करथे,मँसमोटी- मनमानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


 नींद कहाँ परथे संसो मा, कइसे फसल बँचाबो।

 मँहगी खाद दवा के करजा, काला बेंच पटाबो।

अंतस खबसे दुख के खीला, सुसकत हे जिनगानी।

अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


चोवा राम ' बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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