दशहरा परब विशेष छंदबद्ध रचना संग्रह
धर धनुस
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धर धनुस तैं राम बन जा।
मुरली वाले श्याम बन जा।
जाड़ कस अन्याय बर जी
कुनकुनावत घाम बन जा।
खास के दुनिया अलग हे
आदमी तैं आम बन जा।
थोरको तो मिलही राहत
हम लगाबो बाम बन जा।
खोंधरा मा आही पंछी
हर थकाशी शाम बन जा
आरती अरदास पूजा
सत सुमरनी नाम बन जा।
दु:ख कोनो ला मिलै झन
सुख के सउँहे धाम बन जा।
पोंछ आँसू दीन जन के
पुण्य अइसन काम बन जा।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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दोहा
अपन करेजा झाँकि हव , भीतर मन के मैल l
कतका रावन घट बसे, बइठे हवय अड़ैल ll
कागज लकड़ी बाँस के, पुतला बना जलाय l
घट भीतर रावन भरे , राम कहाँ ले आय ll
जलन बुराई ईरखा , मोह लोभ अउ काम l
दिन-दिन बाढ़त जात हे, कइसे मिलिही राम ll
आप सबो बुधियार मन ला विजय दशमी के गाड़ा-गाड़ा बधाई
दूजराम साहू *अनन्य*
निवास -भरदाकला (खैरागढ़)
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*मन के रावण मार दे (उल्लाला छंद)*
पुतला ला तै झन जला , मन के रावन मारदे ।
काम क्रोध मन मा बसे , सब ला बंबर बारदे।।
दानव घुमे हजार झन ,बहुरुपिया के भेष मा ।
बल ओखर निसदिन बढ़े ,राम कृष्ण के देश मा।।
धरले बाना हाथ मा , पापी मन ल संहार दे ।
पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।
बेटी मन के लाज ला , लूटय दानव रोज के।
खनके गड्ढा पाट दे ,बइरी मन ला खोज के ।।
ओखर मुड़ ला काट दे , जे मनखे रुप दाग हे ।
मनखे बन मनखे डसे , ओ जहरीला नाग हे ।।
बइरी मन के वंश ला, खउलत तेल म डारदे।
पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।
स्वारथ बर चोरी करै, उदिम करेओ लाख जी।
सोना के लंका घलो , जरके होगे राख जी।।
सत् के रद्दा छोड़के , जे अवघट मा जाय जी।
जघा जघा कांटा गडे़ , जिनगी नरक बनाय जी।।
कांटा बने समाज के , ओला जग ले टारदे ।
पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।
बृजलाल दावना
6260473556
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चौपाई छंद - राम आगमन
आज अवध के आही राजा।गात बधाई मंगल बाजा।।
लीप पोत घर अँगना द्वारी।बांँध पताका आमा डारी।।
जीव जुडा़वत हे महतारी।चउदह बरस टरे दिन कारी।।
राम लखन सीता सुकुमारी।जय जय कार करे नर नारी।।
राज सिंघासन सोहय पनही।राम अवध के राजा बनही।।
राज तिलक के होय तियारी।आज भाग जागे महतारी।।
राम लखन सीता मन भावँय। तीन लोक के राजा आवँय।।
सरस्वती हर धरे सितारा।सातो सुर के बरसे धारा।।
आय बहू बेटा बनवासी।दाई के दुख बनगे दासी।।
सोन थार आरती उतारय। खेवन खेवन राम पुकारय।।
शशि साहू
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कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")
रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।
रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।
रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।
अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।
धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।
नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।
रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।
अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।
झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।
छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।
मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।
नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।
रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।
रझरझ रझरझ पानी गिरे, होवय हाँहाकार।
होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।
दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।
जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।
का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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दोहा
थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।
आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।
घनाक्षरी
आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,
दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।
घर बन एक मान,जीव सब एक जान,
जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।
मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,
खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।
रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,
अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।
मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,
तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।
झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,
बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।
बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,
उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।
पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,
वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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[10/5, 3:22 PM] आशा देशमुख: रावण के गोठ,
राम के हुँकारू।
रावण बोले राम ला, सुन प्रभु मोरे बात।
मोला मारे बर इहाँ, काखर हे औकात।।
मोर नाभि के भीतरी, हावय अमरित कुंड।
बस पुतला ला लेसथे, ये मनखे के झुंड।।
मोर हवय दस दस मुड़ी, कोन जानथे मर्म।
सब कुछ जाने राम तंय, का हे धर्म अधर्म।।
जगह जगह रावण जले, बने हवंय सब राम।
साधु जैसे वेष हे, अउ आँखी मा काम।।
गोटी फेंके धर्म के, बैठे भूत भविष्य।
मछरी फाँसे रात भर, बगुला मन के शिष्य।।
अजर अमर रावण हवय, हर युग अउ हर काल।
बस मारे के चोचला, हे आडंबर ढाल।।
काखर मा बड़ शक्ति हे, हाँसत हे लंकेश।
अब भी रावण राज मा, जीयत हावय देश।।
आशा देशमुख
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: कुण्डलिया छंद -( मोला उही जलाय )
लोभ क्रोध मद मोह ला, जे अंतस नइ भाय ।
जेन भगत हे राम के, मोला उही जलाय ।।
मोला उही जलाय, जेन हे सत अनुरागी ।
मन ले सच्चा होय, होय झन तन ले दागी ।।
सदा रखय सत चाह, सुघर हो चिनहा पद के ।
बाॅऺंटे जन मा प्यार, लोभ नइ कोनों मद के ।।
सीना चीर दिखाय जे, हो जइसे हनुमान ।
अंतस सीता राम रख, सदा करॅऺंय गुणगान ।।
सदा करॅऺंय गुणगान, होय झन वो व्यभिचारी ।
नव दिन बर नइ काज, मान रख सदा ग नारी ।।
बन जा हरि के मीत, सिखावव जन जन जीना ।
गा मानवता गीत, दिखादव चाकर सीना ।।
कोन दशानन होत हे,जानौ सब इतिहास ।
कोन भला अउ हे बुरा, हिरदे हो आभास ।।
हिरदे हो आभास, चिन्हारी कर लव सुग्घर ।
राम नाम सिंगार, बना लव काया उज्जर ।।
हिरदे होवत साफ, जोर हरि आघू आनन ।
जान सबो इतिहास, कोन हे जगत दशानन ।।
देख उही हे राम जग, जे सत के अवतार ।
कबिरा देख बताय हे, इक वो तारनहार ।।
इक वो तारनहार, पूजथें मनखे जेला ।
हंसा सुमिरत जेन, पार हो जमों झमेला ।।
सबके पालनहार, नाम रट काम भगत हे ।
झन होवव मझधार, देख ले राम जगत हे ।।
छंदकार - राजकुमार बघेल
सेंदरी, बिलासपुर छ.ग.
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: दशहरा पर्व (रावण कौन)
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पाप बुराई जेखर मन मा,
रावण उही कहाथे।
झूठ लबारी अउ असत्य के,
गुन जे अब्बड़ गाथे।।
रावण तो ज्ञानी ध्यानी जी,
कोन पार ला पाइस।
एक पाप के कारण जग मा,
धारे-धार बहाइस।।
सबो जलादौ मिलके भुर्री,
अइसन करम निभाथे।
पाप बुराई जेखर मन मा,................
मन के मइल मिटावौ जम्मों,
राम असन बन जावौ।
दाई-दीदी-बहिनी मन के,
मिलके लाज बचावौ।।
कतको अत्याचारी बन के,
घूमत आँख दिखाथे।
पाप बुराई जेखर मन मा,................
लूट मार छिन-छिन मा करथे,
रावण जइसन मिलथे।
सड़क बाँध पुल जंगल जम्मों,
राक्षस बनके लिलथे।।
कलयुग के रावण ये मनखे,
लहू घलो पी जाथे।
पाप बुराई जेखर मन मा,..............
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
दशहरा पर्व (रावण कौन)
ReplyDelete~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पाप बुराई जेखर मन मा,
रावण उही कहाथे।
झूठ लबारी अउ असत्य के,
गुन जे अब्बड़ गाथे।।
रावण तो ज्ञानी ध्यानी जी,
कोन पार ला पाइस।
एक पाप के कारण जग मा,
धारे-धार बोहाइस।।
सबो जलादौ मिलके भुर्री,
अइसन करम निभाथे।
पाप बुराई जेखर मन मा,................
मन के मइल मिटावौ जम्मों,
राम असन बन जावौ।
दाई-दीदी-बहिनी मन के,
मिलके लाज बचावौ।।
कतको अत्याचारी बन के,
घूमत आँख दिखाथे।
पाप बुराई जेखर मन मा,................
लूट मार छिन-छिन मा करथे,
रावण जइसन मिलथे।
सड़क बाँध पुल जंगल जम्मों,
राक्षस बनके लिलथे।।
कलयुग के रावण ये मनखे,
लहू घलो पी जाथे।
पाप बुराई जेखर मन मा,..............
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
धारे धार बहाइस
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