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Sunday, October 8, 2023

आन लाइन बाजार-रोला छंद

 आन लाइन बाजार-रोला छंद


सजे हवै बाजार, ऑनलाइन बड़ भारी।

घर बइठे समान, बिसावत हें नर नारी।।

होवत हे पुरजोर, खरीदी मोबाइल मा।

छोटे बड़े दुकान, पड़त हावैं मुश्किल मा।


देवत रहिथें छूट, लुभाये बर ग्राहक ला।

घर मा दे पहुँचाय, तेल तरकारी तक ला।

साबुन सोडा साल, सुई सोफा सोंहारी।

हवै मँगावत देर, पहुँच जाथे झट द्वारी।।


शहर लगे ना गाँव, सबे कोती छाये हे।।

बाढ़त हावै माँग, बेर डिजिटल आये हे।

सबे किसम के चीज, ऑनलाइन होगे हें।

बड़े लगे ना छोट, सबे येमा खोगे हें।


होमशॉप फ्लिपकार्ट, अमेजन अउ कतको कन।

खुलगे हे बाजार, मगन हें इहि मा सब झन।।

सुविधा बढ़गे आज, राज हे पढ़े लिखे के।

तुरते होवै काम, जरूरत हवै सिखे के।।


जतिक फायदा होय, ततिक नुकसान घलो हे।

का बिहना का साँझ, रोज के हलो हलो हे।।

लोक लुभावन फोन, मुफत मा ए वो बाँटे।

जे चक्कर मा आय, तौन आफत ला छाँटे।।


बिना जान पहिचान, काखरो बुध मा आना।

खाता खाली होय, पड़े पाछू पछताना।।

करव सोंच विचार, झपावौ झन बन भेंड़ी।

पासवर्ड आधार, आय खाता के बेंड़ी।।


आघू करही राज, ऑनलाइन हटरी हा।

दिखही सबके ठौर, बँधे इँखरे गठरी हा।

लूटपाट ले दूर, रही के होवै सेवा।।

करैं बने जे काम, तौन नित पावैं मेवा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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