//बिजौरी - सार छंद//
बरा बिजौरी देखत संगी, मुँह मा पानी आथे।
देखत पेट घलो भर जाथे, जब ये बड़ ममहाथे।।
छत्तीसगढ़ी तीज तिहारी, घर-घर देखव जाके।
पीठी दार उरिद सँग तिल्ली, रखथे घाम सुखाके।।
दार भात सँग खाके देखव, अड़बड़ बने सुहाथे।
बरा बिजौरी देखत संगी,.........
चौमासा के दिन बड़ सुग्घर, गिरथे रिमझिम पानी।
घर मा बबा डोकरी दाई, कहिथे बने कहानी।।
चुरकी मा वो धरे बिजौरी, मुसुर-मुसुर जब खाथे।
बरा बिजौरी देखत संगी,..............
स्वाद गजब के एखर जानौ, छप्पन भोग भुलाहू।
एक पइत जब मुँह मा जाही, खाके गुन ला गाहू।।
लालच लगे रथे खाये के, मन हा बड़ ललचाथे।
बरा बिजौरी देखत संगी,..............
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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