प्रदीप छन्द (16-13)
*काबर पितर मनाथन*
काबर पितर मनाथन हम सब, सुनलौ सिरतो बात ला।
काबर कउँआ ला दोना मा, देथन हम सब भात ला।
वैज्ञानिक अउ धार्मिक दू हे, सुनव दुनों के मान्यता।
धार्मिक मनखे मन हर कहिथे, पुरखा के हावय नता।।
पिये रिहिस कउँआ हर अमरित, कहिथे वेद पुरान हा।
कउँआ तन मा सबो जीव के, रहि सकथे जी जान हा।
इही मान्यता के कारण जी, देथन हम सब भात ला।
पितर पाख मा भोज कराथन, कउँआ के बारात ला।।
ध्यान लगाके सुनव सबो झन, वैज्ञानिक आधार ला।
ऑक्सीजन देथे बर पीपर, दिन रतिहा संसार ला।
खाके बर पीपर फर कउँआ, शोधित करथे पेट मा।
करके बीट नवा बर पीपर, कउँआ देथे भेंट मा।।
कइसे भूलन भारतवासी, कउँआ के उपकार ला।
फर्ज हमर हे सदा बचाना, कउँआ के परिवार ला।
खीर-भात ला तेकर सेती, देथन हितवा जान के।
सच मा कउँआ हर दुनिया मा, काबिल हे सम्मान के।।
मोर मगज अनुसार सुनौ अब, मनखे सब संसार के।
भूखमरी के दिन होथे जी, महिना गजब कुँवार के।
हवे मोल बड़ कहिथें ज्ञानी, जग मा भोजन दान के।
लोगन मन सब पितर मनाथन, इही सबो ला जान के।।
प्यासे मन ला नीर पिलाना, हमर देश के नीत हे।
भूखे मन ला भोजन देना, इही सनातन रीत हे।
सबो जीव ला ईश्वर के जी, मूरत जग मा मान के।
सेवा करथन भारतवासी, अपन धरम हम जान के।।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
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