आल्हा छंद आधारित गीत
अपने मन के ढोल ढमाका।
खींच तान के गावय राग।
रोज चोर हर घूमत हावय।
मानस मन अब जल्दी जाग।।
रूप चोर के बगुला जइसे,
कोन करय येकर पहिचान।
घात लगाये बइठे हावय,
झन रहिबे जी तँय अंजान।
हिरदे इंकर काजर कोठी,
दिखथे जइसे करिया नाग।
रोज चोर हर घूमत हावय,
मानस मन अब जल्दी जाग।।
कउन चोर हे कउन सिपाही,
चिटको नइये इँकरो भान।
चोर-चोर मौसेरा भाई,
गाँठ बाँधले तहूँ मितान।
झूठ मूँठ के मया दिखावय,
फोकट मा बाँटत हे ज्ञान।
रोज चोर हर घूमत हावय,
मानस मन अब जल्दी जाग।।
पाँच साल बर बदे मितानी,
संग चलावय धरके हाथ।
जब-जब बिपदा परे गाँव मा,
छोड़ चले मनखे के साथ।
सहीं बात हे सुनौ शिशिर जी,
बड़े मनुष के बड़का दाग।
रोज चोर हर घूमत हावय,
मानस मन अब जल्दी जाग।।
सुमित्रा शिशिर
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