आल्हा छंद ~ बिजौरी
रखिया के बीजा ला दाई, कोर-कोर राखे अलगाय।
उरिद दार के पीठी मेलय, मेथी तिल अउ नून मिलाय।
गोल ईट चौकोर सहींके, अलग अलग आकार बनाय।
सफ्फा सूती के ओन्हा मा, दे जड़कल्ला घाम सुखाय।
खेड़-खेड़ ले जब सुख जावय, तब बरनी मा जतने जाय।
आवय मौका या पहुना तब, अँगरा या ते तेल तराय।
चूरय दार चेंच भाजी जब, देवय थारी दूइ सजाय।
खावय ते तब कहाँ अघावय, देखइया मन घलु ललचाय।
चुर्रुस चुर्रुस बजय बिजौरी, जाड़ काल मा गजब सुहाय।
का नोनी का बाबू ये हा, सबके मन ला अब्बड़ भाय।
एक बार जे मन पा जावँय, येखर खास अनोखा स्वाद।
बारम्बार बिजौरी आवय, खाने वाले मन ला याद।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू बोडराबाँधा (पाण्डुका)
No comments:
Post a Comment