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Friday, October 6, 2023

पितर देवता-चौपाई छंद*

 *पितर देवता-चौपाई छंद*


भादो बुलकिस कुँवार आगे।

पितर पाख मनभावन लागे।।

देव सरग के आगे जानौ।

लव आशीष पितर ला मानौ।।


हम ला दे हावय जिनगानी।

कुश दूबी धर देवौ पानी।।

ऋण पितर के छूटव भैया।

उँखर कृपा हे जीवन नैया।।


बरा बोबरा खूब खवावौ।

खीर पुड़ी के भोग लगावौ।।

तोर भला बर बड़ दुख पाइन।

रहि उपास तोला जेवाइन।।


अपन चैन ला करिन निछावर।

दर्द सहिन तोला पाये बर।।

धरके अँगरी ला रेंगाइन।

पढ़ा लिखाके योग्य बनाइन।।


झन पाखंड कभू तुम मानौ।

सरग देवता येला जानौ।।

इँखर लोक परलोक सँवारौ।

श्रद्धा फूल चढ़ा के तारौ।।


परम्परा सुरता के सुग्घर।

हमर बीच मा नइहे जेहर।।

गुण गाथा ला ओखर गावौ।

पावन संस्कृति अपन निभावौ।।


फेर ध्यान देहव तुम भाई।

जीयत जेखर बाबू दाई।।

भरपूर मान ओला देवौ।

बइठ तीर पीरा हर लेवौ।।


चाहे भाजी भात खवावौ।

संझा बिहना माथ नवावौ।।

धन दौलत नइ खोजय काँहीं।

मीठ बात बस इनला चाही।।


जीते जी तँय करले सेवा।

घर बइठे मिल जाही देवा।।

मान ददा दाई हर पाहीं।

सबो देव मन खुश हो जाहीं।।



🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा 

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा(छ.ग.)

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