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Sunday, November 24, 2019

सार छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"



सार छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

जाति धरम मा बटगे मनखे, भेद लहू मा होगे।
मंदिर मस्जिद के फेरा मा,सोन चिरिइयाँ खोगे।।

सुमता के हे पेड़ सुखावत,कोंन रितोवय पानी।
इरखा चारी मा बीतत हे, मनखे के जिनगानी।।

अंधभक्ति के रोग बढ़े हे,आँख बँधाये पट्टी।
नीति धरम के बात इहाँ तो,लगथे सब ला खट्टी।।

कोंन दिशा मा जावत हावय,हमर देश के पीढ़ी।
रोजगार शिक्षा ला छोड़े,चढ़त धरम के सीढ़ी।।

धरम बड़े ना कभू करम ले,देव बड़े ना धामी।
बार बार मैं बोलत हावँव,बनव करम अनुगामी।।

संविधान ला पढ़ लिख समझौ,तब तो आगे बढ़हू।
बनके अफसर बाबू भाई,भाग देश के गढ़हू।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

10 comments:

  1. वाहःह बहुत सुघ्घर हे भाई
    सार छंद

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  2. बेहतरीन रचना बर बहुत बहुत बधाई

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  3. बहुते सुग्घर लगिसे आपके सार छंद

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  4. बहुत सुग्घर स्ंदेशप्ररक रचना सर

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  5. बहुत सुग्घर स्ंदेशप्ररक रचना सर

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  6. बहुत सुन्दर रचना सर जी

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  7. प्रणम्य गुरुदेव संग आप सबो ल बहुत बहुत धन्यवाद!!

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  8. वाह्ह वाह वाह्ह पात्रे भइया अब्बड़ सुग्घर सन्देश देवत सार छंद भइया बधाई 🙏🙏

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  9. मनखे मनखे समझँय भाई, फोकट के नइ खाना।
    बिरथा नइ जावय समझाई, श्रम से प्रीत लगाना।।
    नीतिपरक तँय कतका सुंदर,हस संदेस मढ़ाये।
    करम करे बर दिये प्रेरणा, आखर फूल चढ़ाये।।
    बहुत ही बढ़िया सार छंद भाई...
    👏👏👍👍👌👌🌹🌹🙏

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